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क्‍या है मतांतरण, कैसे और किन लोगों को बनाया जा रहा निशाना; सुप्रीम कोर्ट ने क्‍यों कहा- केंद्र गंभीरता से ले

मतांतरण कराने वालों के निशाने पर आमतौर पर बेहद गरीब तबका होता है। इसकी विवशता और गरीबी का लाभ उठाकर उन्हें धर्म बदलने के लिए बाध्य किया जाता है। भारत में मतांतरण इसलिए भी बेहद गंभीर मुद्दा है क्‍योंकि यहां हिंदू आस्था और विश्वास की जड़ें कहीं गहरी रही हैं।

By TilakrajEdited By: Updated: Mon, 28 Nov 2022 01:22 PM (IST)
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मतांतरण को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2015 में ही अपना पक्ष साफ कर दिया था।
नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। मतांतरण यानि मत में परिवर्तन होने की क्रिया या भाव को मत परिवर्तन, धर्म परिवर्तन कहते हैं। धर्मांतरण किसी ऐसे नये धर्म को अपनाने की प्रक्रिया है, जो धर्मांतरित हो रहे व्यक्ति के पिछले धर्म से भिन्न हो। अगर कोई व्‍यवक्ति बिना किसी लालच, धोखे या दबाव के मतांतरण करता है, तो कोई परेशानी की बात नहीं है, क्‍योंकि सभी को अपना मत चुनने का अधिकार भारत का संविधान देता है। हालांकि, धोखे और दबाव में करवाए जा रहे मतांतरण कानूनन अपराध हैं। सुप्रीम कोर्ट ने धोखे और दबाव में करवाए जा रहे मतांतरण के मामलों पर गहरी चिंता व्‍यक्‍त की है। साथ ही केंद्र सरकार को इसे रोकने का निर्देश दिया है। भारत के मूल स्वभाव और उसकी प्रकृति बदलने के इरादे से जो मतांतरण हो रहा है, वह राष्ट्र जीवन के लिए दीमक की तरह है।

ऐसे एक बार फिर गर्माया मतांतरण का मुद्दा

  • पिछले कुछ दिनों से भोपाल, मेरठ सहित कई शहरों से जबरन मतांतरण की खबरें आई हैं। इस बीच जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर वरिष्‍ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक याचिका दायर की है।
  • अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में धर्म परिवर्तनों के ऐसे मामलों को रोकने के लिए अलग से कानून बनाए जाने की मांग की गई है।
  • अपील में आग्रह किया गया है कि धर्म परिवर्तन पर अगल से कानून लाना संभव न हो तो इसे इस अपराध को भारतीय दंड संहिता (IPC) में शामिल किया जाए।
  • मतांतरण का मुद्दे किसी एक शहर या राज्‍य से जुड़ा नहीं है। देश के लगभग हर राज्‍य में मतांतरण के मामले सामने आ चुके हैं। अश्विनी उपाध्‍याय की याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया है। साथ ही इस पर गंभीरता से विचार करने की मांग की गई है।
  • याचिका में कहा गया है कि धमकी देकर, धोखे से, उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से मतांतरण संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा- मतांतरण का मुद्दे बेहद गंभीर

  • याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मतांतरण को बेहद गंभीर मुद्दा बताया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में दखल देने को कहा है।
  • कोर्ट ने कहा है कि मतांतरण को रोकने के लिए केंद्र सरकार को पूरी ईमानदारी से कोशिश करनी चाहिए।
  • देश के सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने इस बात की चेतावनी भी दी कि अगर जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया, तो देशभर में बेहद विकट परिस्थितियां भविष्‍य में सामने आ सकती हैं।
  • कोर्ट ने कहा कि जबरन मतांतरण न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ, बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकता है। ऐसे में केंद्र सरकार को इस पर गंभीतरता दिखाई चाहिए।

देश के इन क्षेत्रों सामने आते हैं सबसे ज्‍यादा मतांतरण के मामले

केंद्र सरकार भी मतांतरण को लेकर अनभिज्ञ नहीं है। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि मतांतरण के सबसे ज्‍यादा मामले आदिवासी इलाकों से सामने आते हैं। आदिवासी लोगों को लालच देकर उनका मतांतरण कराने के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। इन क्षेत्रों को मतांतरण का गढ़ माना जाता है। ऐसे में इन इलाकों में मतांतरण को रोकना बेहद जरूरी है।

क्‍या है मतांतरण या धर्म परिवर्तन?

  • मतांतरण या धर्म परिवर्तन उसे कहते हैं, जब कोई शख्‍स अपने धर्म को छोड़कर किसी दूसरे विशेष धार्मिक संप्रदाय के साथ जुड़ जाता है। इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं।
  • कई बार किसी 'विशेष जाति' के लोग, जो ये महसूस करते हैं कि समाज में उन्‍हें उचित दर्जा नहीं मिल रहा है, तो वे मतांतरण कर लेते हैं।
  • मतांतरण के बाद शख्‍स अपनाए गए धर्म की आस्‍था और मान्‍यताओं का पालन करने लगता है।
  • भारत का संविधान ये अधिकार देता है कि कोई भी नागरिक किसी भी धर्म या साम्‍प्रदाय को अपना सकता है।

जबरन ऐसे कराया जाता है मतांतरण

  • मतांतरण कराने वालों के निशाने पर आमतौर पर बेहद गरीब तबका होता है। इसकी विवशता और गरीबी का लाभ उठाकर उन्हें धर्म बदलने के लिए बाध्य किया जाता है।
  • संविधान में सभी को अपने मत-मजहब के प्रचार की स्वतंत्रता है, लेकिन इसका अनुचित लाभ उठाया जा रहा है। प्रचार के नाम पर अन्य को बरगलाने की स्वतंत्रता किसी को नहीं दी जा सकती है।
  • कई राज्यों में गरीब आदिवासियों और अनुसूचित जाति के लोगों को बहकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए विवश करने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
  • कई बार लोग को धोखा देकर या लालच देकर भी मतांतरण कराया जाता है।
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मतांतरण रोकने के लिए कई राज्यों ने अपने हाथ में ली कमान

मतांतरण को लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2015 में ही अपना पक्ष साफ कर दिया था। तब केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा कि जबरन मतांतरण पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून नहीं बनाया जा सकता है। कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में कानून बना सकते हैं। वैसे बता दें कि सबसे पहले 1967 में ओडिशा इस संबंध में कानून लाने वाला पहला राज्य बन गया था। 1968 में मध्य प्रदेश और 1978 में अरुणाचल प्रदेश ने इस संबंध में कानून बनाया। उत्‍तर प्रदेश सरकार भी ऐसा कानून ला चुकी है।

राष्ट्रीय स्तर पर भी हुआ मतांतरण रोकने के लिए कानून बनाने का प्रयास

  • भारत में जबरन मतांतरण पर रोक के लिए कई बार कानून लाने का प्रयास हुआ है, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई। अब सुप्रीम कोर्ट भी इस पर गंभीर नजर आ रहा है।
  • सन् 1954 भारतीय मतांतरण (नियमन एवं पंजीकरण) विधेयक लाया गया। इसमें मिशनरियों के लिए अनिवार्य लाइसेंस और धर्म बदलने की स्थिति में सरकारी कार्यालय में पंजीकरण कराने का प्रविधान किया गया। हालांकि, संसद में इस विधेयक को बहुमत का समर्थन नहीं मिल पाया।
  • इसके लगभग छह साल बाद 1960 पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक लाया गया। इसका लक्ष्य किसी अभारतीय धर्म में किसी के मतांतरित होने पर लगाम लगाना था। इस्लाम, ईसाई और यहूदी समेत कुछ धर्मों को इस श्रेणी में रखा गया था।
  • 1979 धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक लाया गया। इसमें किसी अन्य धर्म में मतांतरित होने पर आधिकारिक रूप से रोक का प्रविधान किया गया था। ये विधेयक भी कानून का रूप नहीं ले सका।
भारत में मतांतरण इसलिए भी बेहद गंभीर मुद्दा है, क्‍योंकि यहां हिंदू आस्था और विश्वास की जड़ें कहीं गहरी रही हैं। हमारी आस्था को कुचलने वाला कोई भी काम राष्ट्र जीवन को दुष्प्रभावित करता है। कनाडा में तो ईसाई मिशनरियों ने वहां के मूल निवासियों, जिन्हें रेड इंडियंस कहते हैं, उनके पूरे अस्तित्व को ही लगभग समाप्त कर दिया। भारत के मूल स्वभाव और उसकी प्रकृति बदलने के इरादे से जो मतांतरण हो रहा है, वह राष्ट्र जीवन के लिए दीमक की तरह है। ऐसे में मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए सरकार को भी सजग होना होगा और समाज को भी।

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