क्या है राजद्रोह कानून, इतिहास से वर्तमान तक क्या बदला; कानून की वैधता को क्यों चुनौती दे रहीं याचिकाएं?
भारत में पुलिस भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धाराओं में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करती है। IPC की धाराओं के तहत अदालत में आरोपियों के खिलाफ मुकदमें चलते हैं। तो आइए पहले जानतें हैं कि आखिर IPC क्या होता है।
By Ashisha Singh RajputEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Mon, 01 May 2023 07:23 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Sedition law : किसी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई सारे कानून बनाए गए हैं। यह कानून अपराधों को कम करने के साथ नागरिकों को सुरक्षा और न्याय प्रदान करता है। इसमें से एक राजद्रोह कानून है। भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 124A में राजद्रोह कानून का उल्लेख किया गया है।
क्या है भारतीय दण्ड संहिता
भारत में पुलिस भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धाराओं में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करती है। IPC की धाराओं के तहत अदालत में आरोपियों के खिलाफ मुकदमें चलते हैं। तो आइए पहले जानतें हैं कि आखिर IPC क्या होता है। भारतीय दण्ड संहिता (INDIA PENAL CODE) ब्रिटिश काल में सन् 1860 में लागू हुई थी। भारतीय दण्ड संहिता भारत के अन्दर देश के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए अपराधों की परिभाषा बताती है। इसके सात ही IPC यह भी बताती है कि अपराध करने पर दोषी को क्या दंड मिलेगा। बता दें कि यह संहिता भारत की सेना पर लागू नहीं होती है।क्या है राजद्रोह कानून? (Sedition Law)
राजद्रोह एक अपराध है, जिसका भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 124A में उल्लेख किया गया है। IPC में यह राजद्रोह कानून से परिभाषित किया गया है। यह कानून कहता है कि अगर कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्हों का या संविधान का अपमान करता है या फिर उसे नीचा दिखाने का प्रयास करता है, या सरकार विरोधी सामग्री बोलता- लिखता या अन्य लोगों को उकसाता है तो उसके खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज हो सकता है। राजद्रोह एक संगीन अपराध है, यह सरकार की अधिकृतता और अखंडता को ध्वस्त करता है।
राजद्रोह के लिए क्या है सजा
- राजद्रोह एक गैर जमानती अपराध है। इस धारा 124A के तहत सजा तीन साल तक के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक है
- कारावास के साथ इस कानून के तहत जुर्माना भी जोड़ा जा सकता है।
- राजद्रोह कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यानी की जिसपर यह यह धारा लगती है, वह कभी भी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता है।
- आरोपित व्यक्ति को को आजीवन अपने पासपोर्ट के बिना रहना पड़ता है और आवश्यकता पड़ने पर हर समय अदालत में पेश होना पड़ता है।
भारत में राजद्रोह कानून का इतिहास
राजद्रोह कानून पहली बार भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा 1870 में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के रूप में पेश किया गया था। शुरुआत में राजद्रोह कानून का प्राथमिक उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दबाना और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ असंतोष की किसी भी आवाज को चुप कराना था। इसका सबसे उल्लेखनीय मामला 1908 में बाल गंगाधर तिलक का "मराट्टा" समाचार पत्र में उनकी कथित संलिप्तता के लिए मुकदमा था, जिस पर राजद्रोह को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया था। इसके लिए तिलक को छह साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।