चीन के उइगरों की तरफ से आंखें मूंदने वाले तुर्की राष्ट्रपति इर्दोगन ने UNGA में क्यों उठाया कश्मीर मसला, जानें- क्या हो सकती है मंशा
तुर्की राष्ट्रपति इर्दोगन ने यूएन महासभा में कश्मीर मुद्दे का मसला उठाकर अपनी जिस मंशा को दुनिया के सामने जगजाहिर किया है वो काफी खास है। ऐसा करके वो मुस्लिम देशों का मसीहा बनने का ख्वाब देख रह हैं। हालांकि चीन के उइगरों से उन्होंने आंखें फेर रखी हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 22 Sep 2022 04:54 PM (IST)
नई दिल्ली (आन्लाइन डेस्क)। संयुक्त राष्ट्र की 77वीं महासभा में तुर्की के राष्ट्रपति ने कश्मीर का मसला छेड़ कर उसको अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की जो कोशिश की है उससे कुछ देश जरूर खुश हुए होंगे। इनमें पहला नाम पाकिस्तान का है तो दूसरा चीन का। पाकिस्तान का इसलिए क्योंकि वो शुरू से ही इसको एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बताता आया है और चीन इस मुद्दे के उठने से इसलिए खुश हुआ होगा क्योंकि ये उसकी प्रेशर पालिटिक्स का हिस्सा हो सकता है।
राष्ट्रपति इर्दोगन के भाषण से हैरान है भारत
बहरहाल, तुर्की के राष्ट्रपति रेसैप तैयप इर्दोगन ने जिस तरह से इस मुद्दे को उठाया वो भी काफी हैरान करने वाला रहा है। आपको बता दें कि कुछ ही दिन पहले तुर्की के राष्ट्रपति इर्दोगन ने उजबेकिस्तान के समरकंद में शंधाई सहयोग संगठन के सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। हालांकि ये मुलाकात इस संगठन का सदस्य बनने के लिए लिए भारत के समर्थन को हासिल करने के लिए थी। इस मुलाकात के कुछ दिन बाद ही तुर्की राष्ट्रपति का कश्मीर पर दिया बयान कुछ संकेत जरूर दे रहा है।
मुस्लिम देशों में छवि को मजबूत करने की चाहत
आपको बता दें कि पाकिस्तान के साथ तुर्की भी इस्लामिक सहयोग संगठन का सदस्य है। इस संगठन का नेतृत्व सऊदी अरब करता है जो भारत का बड़ा व्यापारिक सहयोगी भी है। भारत अपनी जरूरत का सबसे अधिक तेल सऊदी अरब से ही खरीदता है। ऐसा नहीं है कि तुर्की ने कश्मीर पर पहली बार कोई बयान दिया हो, बल्कि इससे पहले भी वो पाकिस्तान के इशारे पर ऐसा कर चुका है। इसकी दो बड़ी वजह हो सकती हैं। पहली वजह तुर्की विश्व के मुस्लिम देशों में अपनी छवि को मजबूत करना चाहता है। दूसरा पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को वो उस हद तक ले जाना चाहता है जहां पर वो उसके लिए कुछ भी करने से न चूके।सऊदी अरब का रुतब
वहीं दूसरी तरफ इस्लामिक सहयोग संगठन में सऊदी अरब का रुतबा काफी बड़ा है। ओआईसी अकसर कश्मीर पर बयान देने से बचता नजर आया है। इसका उदाहरण इमरान का वो बयान है जिसमें उन्होंने ऐसा न करने को लेकर ओआईसी की आलोचना तक कर डाली थी। यहां पर एक बात और ध्यान देने वाली है। वो ये कि पूर्व में पाकिस्तान मलेशिया के साथ मिलकर ओआईसी के इतर एक संगठन बनाने की कोशिश कर रहे थे। इसमें तुर्की को अपने पक्ष में करने में पाकिस्तान कामयाब रहा था। हालांकि, दबाव के चलते पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम इमरान खान मलेशिया नहीं जा सके थे। इसके बावजूद माना जा रहा है कि अंदरखाने इसकी कवायद कहीं न कहीं चल रही है।
छवि बदलने की कवायद
कश्मीर पर दिए बयान की एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है तुर्की विश्व स्तर पर अपनी छवि को न सिर्फ मजबूत करना चाहता है बल्कि अपनी छवि को बदलना भी चाहता है। तुर्की खुद को एक ताकतवर राष्ट्र के रूप में विश्व के सामने रखना चाहता है। हाल के कुछ माह के दौरान तुर्की ने जिस तरह से विश्व स्तर पर बर्ताव किया है वो इसकी कहानी को बयां भी कर रहा है। रूस और यूक्रेन के बीच अनाज डील को लेकर भूमिका की बात हो या फिर एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की बात हो या फिर चीन और रूस से अपने संबंधों को दोबारा मजबूती से लिखने की कवायद।