Supreme Court: राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे थे? बिलों की मंजूरी लटकाए रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने किया सवाल
राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी न देने और मामला लटकाए रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फिर सवाल उठाए। पीठ ने कहा कि ये मामले सुप्रीम कोर्ट क्यों आने चाहिए। हालांकि बाद में कोर्ट ने विधानसभा द्वारा 10 विधेयक दोबारा पारित कर मंजूरी के लिए भेजे जाने की बात पर मामले में आगे राज्यपाल के फैसले का इंतजार करने के लिए तमिलनाडु की याचिका पर सुनवाई टाल दी।
कब होगी अगली सुनवाई?
कोर्ट ने केरल में राज्यपाल पर विधेयकों को मंजूरी न देने और लटकाए रखने का आरोप लगाने वाली केरल सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार और राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने मामले को 24 नंवबर को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश देते हुए अटार्नी जनरल से मामले की सुनवाई में मदद करने का अनुरोध किया है। ये आदेश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने तमिलनाडु और केरल सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिये।राज्यपाल के पास आठ विधेयक सात से 21 महीनों से मंजूरी के लिए लंबित हैं। राज्यपाल के विधेयकों को मंजूरी न देने से लोगों के अधिकारों की अवहेलना हो रही है।
केंद्र सरकार और राज्यपाल कार्यालय को नोटिस जारी
कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद याचिका पर केंद्र सरकार और राज्यपाल कार्यालय को नोटिस जारी किया और केस शुक्रवार को लगाने का निर्देश दिया। इसके बाद तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई का नंबर आया। पिछली सुनवाई 10 नंवबर को तमिलनाडु सरकार की याचिका पर नोटिस जारी करते समय ही कोर्ट ने टिप्पणी में राज्यपाल की निष्क्रयता को गंभीर चिंता का विषय बताया था।पीठ ने राज्यपाल की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर वेंकेटरमणी से कहा कि इस नोट के मुताबिक, राज्यपाल ने 13 नवंबर को लंबित विधेयकों पर निर्णय लिया है। कोर्ट ने कहा कि हमारा नोटिस जारी करने का आदेश 10 नवंबर का था। बिल जनवरी 2020 से लंबित थे, इसका मतलब है कि कार्रवाई कोर्ट के आदेश के बाद हुई। राज्यपाल पिछले तीन सालों से क्या कर रहे थे? ये मामले सुप्रीम कोर्ट में क्यों आने चाहिए? पीठ की ओर से किये गए सवालों पर अटार्नी जनरल ने कहा कि विवाद सिर्फ उन विधेयकों को लेकर से संबंधित है, जो राज्य विश्वविद्यालय में कुलपतियों की नियुक्ति के राज्यपाल के अधिकार छीनने की बात करते हैं।एक महीने पहले राज्यपाल के पास 15 विधेयक लंबित थे जिसमें से दस विधेयक उन्होंने अपनी सहमति रोके रखते हुए वापस भेज दिये हैं और विधानसभा ने दोबारा सत्र बुलाकर 18 नवंबर को वे दस विधेयक दोबारा पारित किये हैं और फिर से राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजे गए हैं और पांच पहले से लंबित हैं।
अटार्नी जनरल ने दी यह दलील
उन्होंने कहा कि ये महत्वपूर्ण मुद्दा है इसलिए इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। जब कोर्ट ने कहा कि कुछ बिल 2020 से लंबित हैं तीन साल से राज्यपाल क्या कर रहे थे? तो अटार्नी जनरल का कहना था कि वर्तमान राज्यपाल आरएन रवि ने नवंबर 2021 में पदभार संभाला है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी थी कि मुद्दा यह नहीं है कि क्या किसी विशेष राज्यपाल ने देरी की, बल्कि यह है कि क्या सामान्य तौर पर संवैधानिक कार्यों को करने में देरी हुई है। यह भी पढ़ें: राज्यपाल के खिलाफ केरल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिसतमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने राज्यपाल द्वारा दस बिलों को वापस करते वक्त कोई कारण न दिये जाने का भी मुद्दा उठाया गया। राज्य सरकार का कहना था कि राज्यपाल को कारण बताना चाहिए था उन्होंने सिर्फ इतना लिखा कि मंजूरी रोक ली गई। इसके बाद विधानसभा ने दोबारा दस विधेयक पारित किये।क्या बिल को दबाकर बैठ सकते हैं राज्यपाल?
चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के मुताबिक, राज्यपाल या तो बिल को मंजूरी दें, या रोक लें, या फिर राष्ट्रपति को विचार के लिए भेजें। उन्होंने पूछा कि क्या राज्यपाल बिल को दबाकर बैठ सकते हैं। सिंघवी ने कहा,तमिलनाडु की ओर से ही पेश वकील पी. विल्सन ने कहा कि अगर राज्यपाल को अनिश्चितकाल के लिए बिलों को रोकने की अनुमति दी जाएगी तो व्यवस्था पंगु हो जाएगी। चीफ जस्टिस ने फिर पूछा कि क्या बिल दोबारा पारित होकर आने के बाद राज्यपाल उन्हें राष्ट्रपति को भेज सकते हैं? सिघवी ने कहा कि नहीं अब उनके लिए यह रास्ता नहीं खुला है। वह अपने विकल्प का इस्तेमाल कर चुके हैं।जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दोबारा पारित होकर आने के बाद तो वे बिल मनीबिल की तरह हो जाएंगे जिन्हें मंजूरी देनी होगी। हालांकि, पीठ ने यह भी कहा कि कभी कभी ऐसा हो सकता है कि विधानसभा ऐसा बिल पास करे जिसे पास करने का उसे अधिकार न हो यानी वह सक्षम न हो जैसे आयकर के बारे में बिल पास कर दे तो राज्यपाल कह सकते हैं कि विधानसभा को यह बिल पास करने का अधिकार नहीं है।नहीं। अनुच्छेद 200 के मुताबिक, उन्हें जल्दी से जल्दी वापस भेजना चाहिए। राज्यपाल के पास पॉकेट वीटो नहीं हो सकती।