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Lok Sabha Election: केंद्र की सत्ता में जब पहली बार काबिज हुई बीजेपी, सोनिया गांधी की राजनीति में हुई थी एंट्री

1998 में लोकसभा चुनाव के जो नतीजे सामने आए उससे त्रिशंकु की स्थिति बनी। भारतीय जनता पार्टी 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हिंदी पट्टी में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। उत्तर प्रदेश में जहां अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए पार्टी के आंदोलन ने गति पकड़ी थी उसे 85 में से 57 सीटें मिलीं।

By Versha Singh Edited By: Versha Singh Updated: Tue, 12 Mar 2024 08:16 AM (IST)
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Lok Sabha election 1998: जब यूं सत्ता में आई थी भाजपा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 1998 में लोकसभा चुनाव के जो नतीजे सामने आए उससे त्रिशंकु की स्थिति बनी। भारतीय जनता पार्टी 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हिंदी पट्टी में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। उत्तर प्रदेश में जहां अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए पार्टी के आंदोलन ने गति पकड़ी थी उसे 85 में से 57 सीटें मिलीं। मध्य प्रदेश में 30, बिहार में 20, गुजरात में 19 और कर्नाटक में 13 सीटों पर सफलता मिलीं। वहीं, कांग्रेस कुल 141 सीटें पर ही जीत हासिल कर सकी।

सोनिया गांधी का प्रवेश

इसी चुनाव से सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया। सोनिया गांधी के प्रवेश से पार्टी को मदद तो मिली, लेकिन वह उनके पक्ष में एक और सहानुभूति लहर पैदा करने में असफल रही, जैसा कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी की जीत के दौरान हुआ था। यहां तक कि दक्षिण भारत में भी, जहां कांग्रेस का गढ़ था, पार्टी अपनी छाप छोड़ने में विफल रही।

543 सीटों पर हुए चुनाव

  • 4,750 उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया
  • 1,493 उम्मीदवार थे राष्ट्रीय पार्टियों से
  • 1,915 निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में थे, जिनमें से केवल छह ही विजेता बने, जबकि 1898 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई

एक वोट से हार गई भाजपा

नतीजों के बाद भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। सहयोगियों के समर्थन से अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि, इसके लगभग एक वर्ष बाद अन्नाद्रमुक सांसदों ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जब केंद्र सरकार को सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा गया तब यह भारतीय संसद का सबसे प्रसिद्ध अविश्वास प्रस्ताव बन गया।

17 अप्रैल, 1999 को 270 के मुकाबले 269 वोट हासिल कर सरकार केवल एक वोट से हार गई। इससे पहले किसी भी सरकार ने एक वोट से अपना बहुमत नहीं खोया था और ऐसा दोबारा होने की संभावना कम ही दिखती है।

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