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बापू के आखिरी लम्हों की वो कहानी, जो इतिहास के पन्नों में काला अध्याय बन गया

नाथूराम गोडसे लोगों को हटाते हुए बापू के सामने आ गया। उसने बापू के पांव छूकर आशीर्वाद लिया। इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास के पन्नों में काले अध्याय के रूप में दर्ज हो गया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 30 Jan 2019 10:01 AM (IST)
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बापू के आखिरी लम्हों की वो कहानी, जो इतिहास के पन्नों में काला अध्याय बन गया

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। राष्ट्रपति महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और अनशन के माध्यम से अपनी बात मनवाने के सिद्धांतों को पूरी दुनिया में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। गांधीजी ने अपने जीवनकाल में कई अनशन किए और अंग्रेजों से लेकर आजाद भारत की राजनीतिक सत्ता तक को इस अहिंसात्मक हथियार के जरिए झुकाते रहे। हालांकि, एक समय ऐसा भी आया था जब खुद महात्मा गांधी ने अनशन के प्रति अरुचि दिखाई थी।

1947 में भारत और धर्म के आधार पर बने पाकिस्‍तान के बीच एक ऐसी लकीर खिंच गई थी, जिसने सरहदों को बांटने के अलावा लोगों को भी बांट कर रख दिया था। रातों-रात लोगों के पैरों तले जमीन निकल चुकी थी और वो बेघर होकर सड़क पर आ चुके थे। देश का बंटवारा क्‍या हुआ लोग ही बेगाने हो रहे थे। हर तरफ जल्‍द से जल्‍द अपने को महफूज करने की होड़ में लोग अपना कहने लायक मुहल्‍ला या जमीन तलाश कर रहे थे, जहां वह खुद को बचा सकें। घर जल रहे थे और सड़कों पर हत्‍याओं का नंगा नाच चल रहा था। पूरा देश जल रहा था। पाकिस्‍तान से भारत आने वाली ट्रेनों में जिंदा लोग कम होते थे तो ऐसा ही हाल यहां से वहां जाने वाली ट्रेनों का था। राजनीतिज्ञ जानते हुए भी इस हिंसा से पूरी तरह से हैरान थे और इसको रोकने के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं था।

राजनीतिक गलियारों में तहलका
ऐसे में इस हिंसा और राजनीति से खिन्‍न महात्‍मा गांधी ने आमरण अनशन करने की बात कहकर सभी को हैरान और परेशान कर दिया था। बापू का कहना था कि जब तक हिंसा नहीं रुकेगी तब तक वह अन्‍न या जल की एक बूंद भी गले के अंदर नहीं करेंगे। इस फैसले ने राजनीतिक गलियारों में भी तहलका मचाने का काम किया था। बापू को ऐसा करने से रोकने के लिए एक-एक करके सभी नेता उनसे मिल रहे थे और अनशन तोड़ने की अपील कर रहे थे। लेकिन बापू का एक ही जवाब था, जब तक हिंसा नहीं रुकेगी, तब तक वह भी अनशन नहीं तोड़ेंगे। उस वक्‍त देश एक अजीब स्थिति से जूझ रहा था, लेकिन बापू के अनशन के आगे हिंसा ज्‍यादा देर तक सिर नहीं उठा सकी और शांत हो गई।

बेमियादी अनशन का ऐलान
12 मई 1948 को एक बार फिर से उन्‍होंने बेमियादी अनशन का ऐलान कर सभी को चौंका दिया था। कोई ये नहीं जानता था कि जनवरी का ये माह बापू पूरा नहीं गुजार सकेंगे। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आजाद और सरदार पटेल ने बापू से अनशन न करने की अपील की थी, लेकिन बापू नहीं माने। उनका कहना था कि करना है या मरना है। 18 जनवरी तक भी बापू को मनाने और उनके न मानने का सिलसिला अनवरत चलता रहा। इसी दिन बापू से मिलने पहुंचे डॉक्‍टर राजेंद्र प्रसाद ने गाँधी को विश्वास दिलाया कि सभी वर्गों ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने और तत्‍काल हिंसा रोकने की उनकी अपील मान ली है।

बम धमाके से दहशत
20 जनवरी 1948 को बापू जहां प्रार्थना कर रहे थे वहां से कुछ दूरी पर एक बम धमाका हुआ। इस धमाके ने वहां मौजूद लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर दी थी। लेकिन बापू वहीं एकाग्रचित होकर डटे रहे। यह उन लोगों को जवाब था जो डर फैलाकर उन्‍हें मार्ग से हटाना चाहते थे। 26 जनवरी को बापू का मौन व्रत था, लेकिन वह अपनी बात संकेतों के जरिए अपने सहयोगियों को बता रहे थे। इसी दिन बापू ने कांग्रेस वरिष्‍ठ सदस्‍यों के साथ हुई बैठक में उन्‍होंने कांग्रेस के राजनीतिक स्‍वरूप को खत्‍म करने की अपील की थी। इससे पूर्व कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में उन्‍होंने देश में फैली हिंसा पर गहरी चिंता भी व्‍यक्‍त की थी।

30 जनवरी 1948
30 जनवरी 1948 की शुरुआत आम दिन की तरह ही हुई थी। बापू ने सुबह प्रार्थना की और अपना दैनिक काम निपटाकर अपने दोस्‍त के परिवार से मुलाकात की। इसके बाद वह सरदार पटेल से विचार-विमर्श करते रहे। इस बीच में उन्‍हें ये ही याद नहीं रहा कि प्रार्थना सभा का वक्‍त निकल रहा है। उनकी सहयोगी आभा ने भी उन्‍हें नहीं टोका था।

आखिरकार पटेल की बेटी ने बातचीत को रोकते हुए बताया कि बापू के प्रार्थना सभा का वक्त हो गया है। बापू हमेशा की तरह ही बाहर आए और सभी का अभिवादन स्‍वीकार किया। इसी बीच आभा को प्रार्थना सभा में देरी से पहुंचने के लिए उनकी डांट भी सहनी पड़ी। उसी वक्‍त भीड़ में मौजूद नाथूराम गोडसे लोगों को हटाते हुए ठीक बापू के सामने आ गया। उसने पहले प्रणाम किया फिर नीचे झुक गया। सभी को लगा कि वह शायद बापू के पांव छूकर आशीर्वाद लेने वाला है, हुआ भी ऐसा ही। हालांकि, इसके बाद जो हुआ उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। पैर छूकर वह तेजी से उठा तो उसके हाथों में पिस्‍तौल थी। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसने तीन गोलियां बापू के सीने में दाग दीं। इसके बाद से अब तक ये दिन इतिहास के पन्नों में किसी काले अध्याय की तरह दर्ज है।