White Paper Parliament: संप्रग काल में एक के बाद एक घोटालों ने किया विकास को बाधित, जानिए घोटालों की पूरी लिस्ट
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जारी श्वेत पत्र में मोदी सरकार ने आरोप लगाया है कि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान एक के बाद एक बड़े घोटाले हुए। श्वेत पत्र के दूसरे भाग को पूरी तरह से घोटाले को समर्पित कर सरकार ने संप्रग काल के दौरान हुई वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के उद्देश्य से लिए गए फैसलों को उजागर किया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जारी श्वेत पत्र में मोदी सरकार ने आरोप लगाया है कि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान एक के बाद एक बड़े घोटाले हुए। श्वेत पत्र के दूसरे भाग को पूरी तरह से घोटाले को समर्पित कर सरकार ने संप्रग काल के दौरान हुई वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के उद्देश्य से लिए गए फैसलों को उजागर किया है।
श्वेत पत्र में मनमोहन सिंह सरकार के 15 हाईप्रोफाइल घोटालों को गिनाते हुए ध्यान दिलाया गया है कि इन घोटालों के खिलाफ अन्ना हजारे के नेतृत्व में शुरू हुए अनशन ने जनआंदोलन का रूप ले लिया था। श्वेत पत्र में मोदी सरकार ने याद दिलाया है कि मनमोहन सिंह सरकार के 10 सालों में किस तरह से प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन से लेकर सरकारी खरीद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी अहम खरीद तक में घोटाले हुए।
सरकारी खजाने को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ
इसकी वजह से जहां सरकारी खजाने को लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, वहीं इसने आम जनता के भरोसे को भी हिला दिया। सीएजी की रिपोर्ट से लेकर जांच एजेंसियों की कार्रवाई और अदालती सुनवाई तक में इन घोटालों की गूंज चारों ओर सुनाई दे रही थी। सीएजी ने कोयला घोटाले में 1.86 लाख करोड़ रुपये और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ रुपये का सरकारी खजाने को नुकसान होने का अनुमान लगाया था।पॉलिसी पैरालाइसिस की स्थिति पैदा हुई
श्वेत पत्र के अनुसार ये घोटाले सिर्फ आरोप भर नहीं थे, बल्कि एजेंसियों की जांच के बाद अदालती सुनवाई में इनमें शामिल दोषियों को सजा भी हो रही है। श्वेत पत्र के अनुसार घोटाले और एजेंसियों द्वारा उनमें शामिल हाईप्रोफाइल आरोपितों के खिलाफ की गई कार्रवाई ने मनमोहन सरकार में पॉलिसी पैरालाइसिस (नीतिगत पंगुपन) की स्थिति पैदा कर दी।निवेशकों के विश्वास को झटका लगा
घोटाले के कारण 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खदानों के आवंटन को सु्प्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने से निवेशकों के विश्वास को झटका लगा और वे भारत की बजाय विदेश में निवेश की ओर रुख करने लगे। एजेंसियों के डर से अधिकारी फैसला लेने में डरने लगे और परिणामस्वरूप विकास परियोजनाओं से लेकर रक्षा उत्पादों की खरीद तक के फैसले नहीं लिए जा सके।