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Rohingya Refugees: कौन हैं रोहिंग्या, जिन्हें भाजपा ने बताया 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के लिए खतरा! जानें इन्हें लेकर क्यों मचा है बवाल!

Rohingya Refugees केंद्र की भाजपा सरकार रोहिंग्या प्रवासियों के अवैध घुसपैठ के खिलाफ हमेशा सख्त रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने भारत में रोहिंग्या लोगों की मौजूदगी को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था

By Aditi ChoudharyEdited By: Updated: Thu, 18 Aug 2022 02:51 PM (IST)
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कौन हैं रोहिंग्या, जिन्हें भाजपा ने बताया 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के लिए खतरा!

नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Rohingya Refugees केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार को शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी के ट्वीट पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि दिल्ली में रोहिंग्या प्रवासियों को ईडब्लूएस श्रेणी के फ्लैट में शिफ्ट कराने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार से रोहिंग्या मुसलमानों को यथास्थिति रखने का निर्देश देते हुए मंत्रालय ने कहा कि अवैध प्रवासी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं।

रोहिंग्या शरणार्थी को लेकर हुए इस पूरे विवाद के बाद रोहिंग्या के अस्तित्व की चर्चा फिर से तेज हो गई है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर रोहिंग्या कौन हैं और इनकों लेकर राजनीति क्यों हो रही है। आइए देखें क्या है पूरा मामला-

कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान?

रोहिंग्या मुसलमानों का एक समुदाय है। म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की एक बड़ी आबादी रहती है। मगर दशकों से म्यांमार में इन्हें भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार होने पड़ रहा है। रोहिंग्या मुसलमान दावा करते हैं कि वे म्यांमार के मुस्लिमों के वंसज है। मगर म्यांमार इन्हें बंग्लादेशी घुसपैठिया बताता है।

अंग्रेजी शासन के दौरान बंग्लादेश से इनके म्यांमार आकर बसने का दावा किया जाता है। इधर, म्यांमार की सीमा से सटा बांग्लादेश रोहिंग्या समुदाय को अपना मानता ही नहीं है, जिस कारण इन्हें किसी भी देश की नागरिकता नहीं मिल सकी।

म्यांमार में रोहिंग्या का हुआ शोषण

साल 1948 में अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद म्यांमार में बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ गया। सरकार भी बहुसंख्यक के साथ रही। म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया और रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध बंगाली करार देते हुए उनसे नागरिक दर्जा छिन लिया था।

बड़े पैमाने पर हुआ पलायन

साल 2012 में म्यांमार के रखाइन राज्य में सांप्रदायिक हिंसा भड़की और सैंकड़ों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमानों की हत्या कर दी गई। म्यांमार सरकार, सेना और बहुसंख्यक बौद्ध आबादी पर इनके शोषण का आरोप लगा। जान बचाने के लिए बड़े पैमाने पर रोहिंग्या मुसलमानों का सीमा से सटे देशों में पलायन शुरू हुआ।

आंकड़ों की मानें तो इस दौरान करीब 7 लाख से अधिक रोहिंग्या जान बचाने की फिराक में म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश की तरफ भाग गए। बांग्लादेश के रास्ते हजारों की संख्या में रोहिंग्या भारत में भी अवैध तरीके से घुसपैठ कर गए और रहने लगे।

भारत में हजारों की संख्या में रोहिंग्या

भारत में लगभग 16,000 UNHCR-प्रमाणित रोहिंग्या शरणार्थी हैं। मगर सरकारी आंकड़े के अनुसार, भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों का आंकड़ा 40,000 से अधिक है। देश में जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान समेत कई राज्यों में इस वक्त रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं।

रोहिंग्या को लेकर भारत सरकार सख्त

केंद्र की भाजपा सरकार रोहिंग्या प्रवासियों के अवैध घुसपैठ के खिलाफ हमेशा सख्त रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने भारत में रोहिंग्या लोगों की मौजूदगी को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था।

बुधवार को रोहिंग्या मुद्दे (Rohingya Issue) पर भाजपा ने कहा कि अवैध प्रवासी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और केंद्र की मोदी सरकार इस मसले पर कभी समझौता नहीं करेगी। बता दें कि रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस भेजने के लिए भारत सरकार म्यांमार से संवाद कर रही है, लेकिन वापसी तक उन्हें डिटेंशन सेंटर में रहना होगा।