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सद्दाम हुसैन ऐसी शख्सियत जिसने करवाई थी 148 लोगों की हत्या, अपने खून से लिखवाई थी 605 पन्नों की कुरान

सद्दाम हुसैन का जन्म अप्रैल 1937 में तिकरित गांव में हुआ था। 20 साल की उम्र में ही हुसैन ने बाथ पार्टी की सदस्यता हासिल कर ली थी। 1979 में सद्दाम हुसैन राष्ट्रपति बन गए और तब तक रहे जब तक अमेरिका ने इराक पर हमला नहीं कर दिया।

By Versha SinghEdited By: Versha SinghUpdated: Fri, 28 Apr 2023 04:48 PM (IST)
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तानाशाह सद्दाम हुसैन ऐसी शख्सियत जिसने करवाई थी 148 लोगों की हत्या
नई दिल्ली। Saddam Hussain : सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल 1937 को इराक के तिकरित स्थित एक गांव में हुआ था। बगदाद में सद्दाम हुसैन ने कानून की पढ़ाई की थी। बता दें कि सद्दाम हुसैन ने 1957 में सिर्फ 20 साल की उम्र में बाथ पार्टी की सदस्यता हासिल कर ली थी। ये पार्टी अरब में राष्ट्रवाद का अभियान चला रही थी, जो आगे चलकर 1962 में इराक में हुए सैन्य विद्रोह की वजह बना, सद्दाम हुसैन भी इस विद्रोह का हिस्सा थे।

कौन थे सद्दाम हुसैन (who is saddam hussain)

सद्दाम हुसैन दो दशक से अधिक समय तक इराक के शासक थे। सद्दाम हुसैन का जन्म साल 1937 के अप्रैल महीने में इराक के उत्तर में स्थित तिकरित के एक गाँव में हुआ था।

साल 1957 में हुसैन ने बाथ पार्टी की सदस्यता ली जो अरब राष्ट्रवाद के एक समाजवादी रूप का अभियान चला रही थी। साल 1962 में इराक में विद्रोह हुआ और ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने ब्रिटेन के समर्थन से चल रही राजशाही को हटाकर सत्ता अपने कब्जे में कर ली। 

1968 में फिर विद्रोह शुरु हुआ और इस बार 31 वर्षीय सद्दाम हुसैन ने जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर सत्ता पर कब्जा कर लिया।

उन्होंने वर्ष 1980 में नई इस्लामिक क्रांति के प्रभावों को कमजोर करने के लिए पश्चिमी ईरान की सीमाओं में अपनी सेनाएँ भेज दी थीं। इसके बाद 8 सालों तक चले युद्ध में लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।

खुद को किया था 5वां राष्ट्रपति घोषित

बता दें कि 1979 में सद्दाम हुसैन ने खराब स्वास्थ्य के नाम पर जनरल बक्र को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया था। जब बक्र ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया तो सद्दाम हुसैन ने खुद को देश का 5वां राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। जिसके बाद सत्ता संभालने की जिम्मेदारी हुसैन के हाथों में थी। अपना पद संभालने के बाद ही सद्दाम ने अपने प्रतिद्वंद्वियों की हत्या करनी शुरू कर दी थी।

वहीं, एक बार की बात है जब एक यूरोपीय पत्रकार ने सद्दाम हुसैन से पूछा था कि इराक की सरकार के अपने विरोधियों को मारने की बात सच है क्या? इस सवाल के जवाब में सद्दाम हुसैन ने बिना हिचकिचाए कहा कि ‘निश्चित रूप से। आप क्या अपेक्षा करते हैं? जब वे आपकी सत्ता का विरोध कर रहे हों?'

जब शुरु हुआ था इराक-ईरान युद्ध

ईरान के साथ इराक ने 8 साल तक युद्ध लड़ा. इस युद्ध में लाखों लोगों की जान गई. 1988 में दोनों देशों के बीच युद्ध विराम हुआ.

सद्दाम हुसैन खुद को सभी लोग अब अरब देशों का सबसे रसूखदार प्रमुख समझने लगे थे। इराक अरब देशों में प्रभावशाली होता जा रहा था। ये 1980 का समय था। पड़ोसी ईरान में इस्लामिक क्रांति शुरू हुई थी। इस क्रांति को कमजोर करने के लिए इराक ने पश्चिमी ईरान में सेना उतार दी थी। जिसके बाद इराक-ईरान युद्ध शुरु हुआ था। ईरान के साथ इराक ने 8 साल तक युद्ध लड़ा था। इस युद्ध में लाखों लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी।

जुलाई 1982 में सद्दाम हुसैन के ऊपर एक आत्मघाती हमला किया गया था। इस हलमे का बदना लेने के लिए सद्दाम हुसैन ने शिया बाहुल्य दुजैल गांव में 148 लोगों की हत्या करवा दी थी। मानवाधिकार उल्लंघन के ऐसे कई मामलों के बावजूद अमेरिका ने इन हमलों में सद्दाम हुसैन का साथ दिया था।

ईरान के साथ साल 1988 में युद्धविराम घोषित हो गया था लेकिन सद्दाम अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए अपनी ताकत को और अधिक बढ़ाने में लगे हुए थे। सद्दाम ने लंबी दूरी की मिसाइलों, परमाणु हथियार, जैविक और रासायनिक हथियारों को विकसित करना शुरू कर दिया था।

सद्दाम के शासनकाल में कई नरसंहार हुए और हजारों लोग मारे गए। इस बीच ईरान के खिलाफ युद्ध का इराक की इकोनॉमी पर भी काफी निगेटिव असर पड़ा था। इससे उबरने के लिए सद्दाम को तेल के दामों को बढ़ाने की जरूरत होने लगी।

सद्दाम ने अपने खून से लिखवाई थी 'कुरान'

1990 के दशक में सद्दाम हुसैन ने अपने खून से कुरान लिखवाई थी। द गार्डियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक सद्दाम ने अल्लाह के प्रति कृतज्ञता जताने के लिए 2 सालों के दौरान अपना 27 लीटर खून देकर उसे स्याही के रूप में प्रयोग करवा कर कुरान के सभी 114 अध्यायों को 605 पन्नों में लिखवाया था।

इन सभी 605 पन्नों को लोग देख सकें, इसके लिए इन्हें शीशे के केस में सजा कर रखा गया था। सद्दाम हुसैन की जीवनी लिखने वाले कॉन कफलिन ने भी ब्लड कुरान के बारे में लिखा है।

'ब्लड कुरान' के नाम से चर्चित इस कुरान को बगदाद की एक मस्जिद में रखा गया था। 2006 में सद्दाम को फांसी दिए जाने के बाद इस कुरान के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई थी।

कुवैत पर किया था हमला

अगस्त 1990 में सद्दाम ने तेल के दामों को कम करने और नीचे गिराने के लिए कुवैत को दोषी ठहराया था। इसके बाद सद्दाम हुसैन ने अपनी सेना को कुवैत पर हमले करने का आदेश दे दिया था। 2 अगस्त 1990 को कुवैत पर कब्जे के लिए इराकी सेना चल पड़ी।

मात्र 6 घंटे में ही इराकी सेना ने कुवैत पर कब्जा कर लिया। अमेरिका ने इराक को तुरंत कुवैत खाली करने के लिए कहा था। लेकिन सद्दाम हुसैन ने अमेरिका की एक बात भी नहीं सुनी और कुवैत को इराक का 19वां प्रांत घोषित कर दिया।

पहले ईरान और फिर कुवैत पर हासिल हुई जीत ने सद्दाम हुसैन के मनोबल को और अधिक बढ़ा दिया। अगले ही दिन यानी 3 अगस्त 1990 को इराक ने सऊदी अरब की सीमा पर अपनी सेना तैनात कर दी।

इराकी सेना को कुवैत से निकालने के लिए अमेरिका की अगुआई में 28 देशों का गठबंधन हुआ। कुवैत की मुक्ति के लिए जनवरी 1991 में इराक के खिलाफ जंग शुरू हुई थी। अमेरिका के हवाई हमले से इराक को काफी नुकसान हुआ और उसे कुवैत से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

इस संघर्ष के दौरान हजारों इराकी सैनिक मारे गए और पकड़े भी गए। इराक के कई तेल के कुंओं में आग लगा दी गई जिसकी वजह से उसे भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।

होटल के टाइल्स पर जॉर्ज बुश की तस्वीर

खाड़ी युद्ध के बाद बगदाद में पांच सितारा अल रशीद होटल बनवाया गया था। कहा जाता है कि सद्दाम हुसैन के कहने पर होटल के मुख्य गेट के हॉल के टाइल्स में उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश की तस्वीर बनाई गई थी।

इस होटल में दुनिया के बड़े नेता आते थे और उन्हें बुश की तस्वीर को अपने जूतों से रौंदते हुए जाना पड़ता था। इस तस्वीर में अंग्रेजी और अरबी में 'बुश इज क्रिमिनल' लिखा था।

2003 में इराक पर अमेरिकी सैनिकों के कब्जे के बाद इस तस्वीर को नष्ट कर दिया गया। वहीं 2008 तक इसे पूरी तरह से हटा दिया गया था।

इराक को बताया एक बड़ा 'खतरा'

कुवैत पर कब्जा करने पर इराक पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए थे, इससे उसकी अर्थव्यवस्था और खराब होने लगी थी। साल 2000 में अमेरिका में जॉर्ज बुश की सरकार बन गई थी, सरकार बनने के बाद उन्होंने सद्दाम हुसैन पर दबाव और बढ़ा दिया था।

अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इराक को एक बड़ा 'खतरा' बताने लगे थे। इसके बाद अमेरिका इराक में सत्ता परिवर्तन की बात करने लगा। 2002 में संयुक्त राष्ट्र की टीम ने इराक का दौरा भी किया था। इस दौरान इराक ने कई खतरनाक मिसाइलों को खत्म भी किया, लेकिन बुश की टेंशन कम नहीं हुई।

इन सबके बाद 19 मार्च, 2003 को अमेरिका ने इराक पर हमला कर दिया था। अमेरिकी सेना इराक की राजधानी बगदाद की ओर तेजी से बढ़ रही थी। 9 अप्रैल 2003 को सद्दाम हुसैन की सरकार को गिरा दिया गया लेकिन सद्दाम हुसैन तब भी पकड़ में नहीं आ सके।

13 दिसंबर 2003 को सद्दाम हुसैन को अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ लिया था। वो तिकरित में एक घर में छिपे हुए थे। इसके बाद उन पर कई मुकदमे चलाए गए। दुजैल नरसंहार (148 लोगों की हत्या) के मामले में सद्दाम हुसैन को 5 नवंबर 2006 को मौत की सजा सुनाई गई। 30 दिसंबर 2006 को सद्दाम हुसैन को बगदाद में फांसी पर लटका दिया गया था।