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पाकिस्तान में अब तक कोई PM पूरा नहीं कर सका कार्यकाल! सेना का है दबदबा, पढ़ें पड़ोसी मुल्क की सियासी कहानी

पाकिस्तान भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है जहां आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। पाकिस्तान को आजादी मिले 76 साल बीत चुके हैं। इस दौरान वहां पर 1956 से 1971 1977 से 1988 तक और फिर 1999 से 2008 तक सैन्य शासन रहा है। इस बार के आम चुनाव में भी वहां की सेना का कथित तौर पर हस्तक्षेप माना जा रहा है।

By Siddharth ChaurasiyaEdited By: Siddharth ChaurasiyaUpdated: Fri, 09 Feb 2024 12:24 PM (IST)
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पाकिस्तान में अब तक 21 प्रधानमंत्री बने हैं और 24 बार इस पद के लिए शपथ ली गई है।

जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। पाकिस्तान भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है, जहां आज तक किसी भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। पाकिस्तान को आजादी मिले 76 साल बीत चुके हैं। इस दौरान वहां पर 1956 से 1971, 1977 से 1988 तक और फिर 1999 से 2008 तक सैन्य शासन रहा है। इस बार के आम चुनाव में भी वहां की सेना का कथित तौर पर हस्तक्षेप माना जा रहा है।

पाकिस्तान में गुरुवार (8 फरवरी) को हिंसा की छिटपुट घटनाओं के साथ आम चुनाव के लिए मतदान हुआ और उसके तुरंत बाद मतगणना शुरू हो गई। पाकिस्तान निर्वाचन आयोग (ईसीपी) ने मतदान के समाप्त होने के 10 घंटे से अधिक समय बाद शुक्रवार देर रात चुनावों के नतीजों की घोषणा करनी शुरू की। पाकिस्तान चुनाव आयोग के मुताबिक, नेशनल असेंबली की सीटों के लिए कुल 5,121 उम्मीदवार और चार प्रांतीय विधानसभाओं के लिए 12,695 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जानकारी के अनुसार, 265 सीटों पर हुए चुनाव में इमरान की पार्टी पीटीआई, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) को कड़ी टक्कर दे रही है। ये दोनों पार्टियां 47 सीटों पर आगे चल रही है।

पाकिस्तान में अब तक 21 प्रधानमंत्री बने हैं और 24 बार इस पद के लिए शपथ ली गई है। पड़ोसी मुल्क ने चार बार तख्तापलट का सामना किया है। पाकिस्तान में पीएमएल-एन नेता नवाज शरीफ सबसे ज्यादा यानी तीन बार पीएम बन चुके हैं। उनके तीनों कार्यकाल की अवधि को जोड़ दिया जाए तो यह 9 वर्ष 179 दिन का रहा है।

पाकिस्तान में सेना ही सबकुछ

1947 से ही पाकिस्तान एक तरह से सेना के शासन में ही रहा है, या तो देश सीधा सेना के शासन में होता था, या फिर सेना के अफसर ऐसा तरीका निकालते कि सरकार को उनके साथ सांठगांठ कर चलना पड़ता है। पाकिस्तान की सेना का मानना है कि वो पाकिस्तान के अस्तित्व का केंद्र हैं। बंटवारे के बाद पाकिस्तान में दूरदर्शी नेताओं की कमी खलने लगी। मोहम्मद अली जिन्नाह के देहांत के बाद देश सेना के हवाले हो गया।

भारत और पाकिस्तान की सेनाएं एक ही ब्रिटिश परंपरा से पैदा हुई थीं, लेकिन आजादी के बाद के 69 वर्षों में वे अपनी-अपनी राजनीति में बहुत अलग-अलग पदों पर आसीन हो गए। दरअसल, आजादी के 69 वर्षों में से लगभग आधे समय तक पाकिस्तान पर उसकी शक्तिशाली सेना का शासन रहा है। प्रत्येक लोकतांत्रिक बिखराव के बाद सैन्य शासन की एक विस्तारित अवधि आई है।

पाकिस्तान में पहला दूसरा तख्तापलट

पाकिस्तानी सेना की स्थापना अगस्त 1947 में हुई थी। इस की नींव ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने रखी थी। पाक सेना के पहले प्रमुख ब्रिटिश जनरल फ्रैंक मेस्सर्वी थे। पाकिस्तानी सेना ने पहला तख्तापलट साल 1958 में राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के खिलाफ हुआ। पाक सेना के जनरल अयूब खान ने तख्तापलट किया था। 1969 में अयूब खान के बाद जनरल याह्या खान शीर्ष पद पर काबिज हुए, वो तब तक काबिज रहे जब तक पाकिस्तान भारत से युद्ध हार नहीं गया।

पाकिस्तान में दूसरा तख्तापलट

फिर जुल्फिकार अली भुट्टो ने सत्ता संभाली, जो प्रधानमंत्री बने। उन्हें 1979 में जनरल जिया उल हक ने हटाया और फांसी दे दी गई। जिया उल हक ने पाकिस्तान पर सबसे पहले कड़ा शासन किया। उसने तानाशाह की तरह पाकिस्तान पर राज किया। देश में मार्शल लॉ लागू किया। संविधान की मर्यादा को तार-तार किया। नेशनल और स्टेट असेंबली को भंग किया। राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाया। चुनावों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया। जनरल जिया उल-हक की 1988 में एक विमान दुर्घटना में मौत हुई, हालांकि उसने पहले ही 1985 में ही तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद खान के नेतृत्व में सरकार बनाने की अनुमति दी थी।

तीसरा तख्तापलट

इसके बाद 1997 में आम चुनाव हुए, नवाज शरीफ देश के पीएम बने। उन्होंने जनरल परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख बनाया गया। लेकिन धीरे-धीरे नवाज और मुशर्रफ के बीच दूरियां बढ़ती गईं। मुशर्रफ नवाज से अधिक ताकतवर हो गए। कहा जाता है कि जनरल मुशर्रफ ने नवाज से बिना पूछे ही कारगिल का युद्ध छेड़ दिया था। 2 साल बाद ही मुशर्रफ ने तख्तापलट करके नवाज को सत्ता से हटा दिया।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 से 2015 के बीच पाकिस्तान की सेना की संपत्ति में 78 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2016 तक, पाकिस्तान में सशस्त्र बलों ने 50 से अधिक वाणिज्यिक संस्थाओं को चलाया, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन और 30 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के रियल एस्टेट उद्योग शामिल थे। उनकी व्यावसायिक संपत्ति का मूल्य 40 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से अधिक है।

पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और सेना के प्रवक्ता जनरल असीम सलीम बाजवा समेत शीर्ष सैन्य अधिकारियों पर बड़े आर्थिक लाभ उठाने के आरोप लगते आए हैं। बाजवा परिवार छह साल के भीतर ही देश के अरबपतियों में शामिल हो गया। बेहेरा ने बताया कि "मंदी झेल रहे पाकिस्तान में सेना के परिवारों और अफसरों के लिए कोई मंदी नहीं आती।”

जनरल असीम सलीम बाजवा और उनके भाई ने एक बड़ा कारोबार खड़ा किया है। इसमें चार देशों में कुल 133 रेस्तरां शामिल थे। पैंडोरा पेपर खुलासे में भी पाक सेना के कई बड़े अफसरों का नाम शामिल था।

पाकिस्तान के चुनावों पर सेना का साया

पाकिस्तान में राजनीति शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान से काफी प्रभावित रही है, जिसने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से देश पर अपना नियंत्रण बनाए रखा है। यह किसी भी राजनीतिक दल के नेतृत्व के लिए सत्ता हासिल करने को सहमति लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हफ्ता है। इसके लिए वर्तमान सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर के नेतृत्व में सैन्य प्रतिष्ठान ने इस प्रक्रिया पर अधिक नियंत्रण हासिल कर लिया है।

पाकिस्तान को बंटवारे के बाद अंग्रेजों से विरासत में एक अनुशासित सेना मिली थी। 1951 तक ब्रिटिश जनरल पाकिस्तान की सेना का नेतृत्व करते रहे। इसके बाद सेना की कमान जनरल अयूब खान को सौंप दी गई थी। जानकारों का कहना है कि एक तरफ पाकिस्तान का संविधान लिखने में देरी हो रही थी, वहीं सेना अपनी पकड़ देश में मजबूत करती जा रही थी।

पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार शाहजेब जिलानी का कहना है, "सिविल मिलिट्री नौकरशाही सेना के दबदबे की खास वजह रही है। चूंकि, पाकिस्तान लंबे-लंबे अरसे तक सीधा सेना के अधीन रहा है, इस वजह से भी वहां लोकतंत्र कभी पनप नहीं पाया।”

इससे पहले, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान की सेना ने दशकों से राजनीति में हस्तक्षेप किया है और वादा किया कि संस्था खुद को देश के लोकतांत्रिक कामकाज से दूर रखेगी।