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अंडर-19 विश्व कप विजेता कप्तान यश ढुल का मंत्र, हार न मानने का जज्बा जरूरी

यह करिश्माई प्रदर्शन यह साबित करता है कि यदि हमें अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है और उसे लेकर हमारे भीतर आत्मबल है तो राह में चाहे जितनी मुश्किलें और अवरोध आयें जीत का जज्बा कभी कम नहीं होता।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 12 Feb 2022 12:09 PM (IST)
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भारतीय युवा टीम के जांबाजों ने अपने जज्बे से हर मुश्किल को जीत कर इतिहास रच दिया।

रिकार्ड पांचवीं बार भारत को अंडर-19 विश्व कप क्रिकेट का खिताब दिलाने में अहम योगदान करने वाले कप्तान यश ढुल की राह इतनी आसान नहीं रही। फाइनल से पहले पांच साथियों सहित खुद कोरोना संक्रमित होने के बावजूद यश न हताश हुए और न निराश। उन्होंने खुद को प्रेरित करने के साथ-साथ टीम को भी दबाव के बीच सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित किया। नतीजा, टीम ने सबको चौंकाते हुए दमदार प्रदर्शन कर खिताब फिर भारत की झोली में डाल दिया। आखिर क्यों जरूरी है हार न मानने का जज्बा, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव...

कप्तान यश ढुल की अगुवाई में अंडर-19 विश्व कप खेलने वेस्टइंडीज गई भारतीय टीम के युवा धुरंधरों से देश को पहले से ही बड़ी उम्मीदें थीं। टीम ने ग्रुप मैचों में शानदार शुरुआत भी की थी। टीम कप जीतने के अपने लक्ष्य की ओर उत्साह से बढ़ ही रही थी कि अचानक उसकी राह में ग्रहण लग गया। कप्तान यश ढुल और उपकप्तान शेख रशीद सहित कुछ छह खिलाड़ियों को कोविड पाजिटिव पाये जाने के कारण क्वारंटाइन में जाना पड़ा। टीम के साथ-साथ देशवासियों के लिए भी यह बड़ा धक्का था। सवाल था कि अब आगे क्या होगा? क्योंकि वेस्टइंडीज गई भारतीय टीम में कुल 17 खिलाड़ी थी, जिसमें से छह पाजिटिव होने के कारण बाहर थे।

अब सारा दारोमदार बाकी बचे 11 खिलाड़ियों पर था। इसके बाद जो हुआ, उस सहसा कोई भरोसा नहीं कर सकता। ग्रुप के अगले ही मैच में इन 11 शूरवीरों ने हर तरह की निराशा और आशंकाओं को धता बताते हुए आयरलैंड को बुरी तरह धोया और इसके बाद टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। टीम सेमीफाइनल में पहुंच गई और तब तक यश ढुल सहित बाकी खिलाड़ी भी ठीक होकर टीम से जुड़ गए। इसके बाद तो जो धमाल मचा, उसे दुनिया देखती रह गई। सेमीफाइनल में तगड़ी माने जाने वाली आस्ट्रेलियाई टीम को धूल चटाई, जिसमें कोविड से उबरने के बाद कप्तान यश ढुल ने शतक ठोंका। फाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए भारतीय टीम ने हर विभाग में उसे पछाड़ा। इसमें हरफनमौला प्रदर्शन करते हुए राज बावा ने पांच विकेट चटकाकर न सिर्फ इंग्लैंड की कमर तोड़ी, बल्कि कीमती 35 रन भी बनाए और फाइनल के ‘मैन आफ द मैच’ बने।

आत्मविश्वास का साथ : दरअसल, भारत की इस अंडर-19 टीम के खिलाड़ियों को जीत इसी वजह से मिली, क्योंकि उनके आत्मविश्वास का स्तर काफी ऊंचा था। इस जीत से हम आप भी सबक ले सकते हैं। यह सिर्फ खेल की बात ही नहीं है। किसी भी क्षेत्र में कामयाबी के लिए इसी तरह के आत्मविश्वास की जरूरत होती है। लेकिन सच यह भी है कि अपने आप पर यह भरोसा सिर्फ सोचने और सपने देखने से नहीं आता। इसके पीछे लंबा और कठिन संघर्ष होता है। अपनी कमजोरियों को दूर करने पर अनवरत काम करते हुए अपनी प्रतिभा के स्तर को लगातार ऊंचा उठाने की दिशा में काम करना होता है।

दबाव के बीच संतुलन : अंडर-19 टीम की यह जीत कोई मामूली विजय नहीं है। बेशक इस टीम को पहले से विश्व कप की जीत का प्रबल दावेदार बताया जा रहा था, पर जिस तरह से बीच राह में कोविड ने बाधाएं पैदा कीं, उससे टीम के सदस्यों के खेल का तारतम्य, उनकी एकाग्रता और उनका उत्साह भंग हो सकता था। पर कप्तान और टीम के अन्य सदस्यों ने मुश्किल हालात को खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने इसे बहुत सहजता से लिया, इसीलिए इससे जल्दी उबर भी गए। अक्सर यह देखा जाता है कि दबाव और कठिन समय में ज्यादातर टीमें मनोवैज्ञानिक दबाव में आकर बिखर जाती हैं, जिससे अक्सर आसान बाजी भी उनके हाथ से निकल जाती है। खेल और अन्य प्रतिस्पर्धाओं में दबाव के बीच संतुलन बनाकर रखना और जीत की राह पर आगे बढ़ना सबसे चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए लंबी साधना करनी होती है।

जीत के सबक : कोरोना ने पढ़ाई, रोजगार, नौकरी और सेहत के मामले में अधिकतर लोगों को दर्द दिया है, पर सच यह भी है कि इसे दुनियाभर के देशों के लोगों को झेलना पड़ा है। इस दर्द और मुश्किल के बावजूद मन में उम्मीद रखते हुए इन सबसे उबरने का रास्ता खोजना होगा। आपमें सीखने-जानने की ललक है, तो आप बीते समय को कोसने के बजाय आगे की ओर देखेंगे और बदलते वक्त के मुताबिक खुद को ढालते हुए नये अवसर तलाशेंगे। न तो खुद को कोसें और कमतर मानें, न ही परिस्थितियों को दोष दें, इसके बजाय आप आने वाले समय का आकलन करते हुए अपने आप में बदलाव लाने का प्रयास करें। अपनी क्षमताओं को निखारते हुए, नई चीजें सीखते हुए अवसरों की खोज करेंगे, तो कहीं न कहीं जरूर अपने लिए अनुकूल जगह की तलाश कर लेंगे।

कमजोरियों से पाएं पार : किसी भी लक्ष्य को हासिल करने की राह पर आगे बढ़ते समय अक्सर इस बात का डर होता है कि हम कहीं आत्ममुग्धता और अतिआत्मविश्वास के शिकार न हो जाएं। ऐसा तब होता है, जब हम कभी आत्म-मूल्यांकन नहीं करना चाहते। यह स्थिति हमारे लिए ही घातक होती है, क्योंकि जब हम अपना मूल्यांकन करके अपनी कमजोरियां नहीं जानेंगे, तो उसे कभी दूर भी नहीं करेंगे। ऐसे में हम बार-बार वहीं गलतियां करेंगे, जिसका परिणाम असफलता के रूप में ही सामने आएगा। इस स्थिति से बचने के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम जब अपनी रुचि का लक्ष्य करके उसे पाने की दिशा में कदम बढ़ाएं, तो नियमित अंतराल पर अपने प्रयासों की समीक्षा भी करते रहें। इससे हमें अपनी ताकत के साथ अपनी कमजोरियों/कमियों के बारे में भी पता लग सकेगा और तब हम समय रहते उन्हें दूर भी कर सकते हैं। इससे कामयाबी पाने की प्रतिशतता भी अपेक्षाकृत बढ़ जाएगी।

जुनून सीखने-जानने का : आपकी रुचि जिस भी क्षेत्र में हो या फिर आप जिस भी क्षेत्र में पढ़ाई करना या करियर बनाना चाहते हों, उसमें पूरी तरह डूबने का उपक्रम करें। उससे संबंधित चीजों को जानने-सीखने का हरसंभव जतन करें। किसी कोर्स के माध्यम से अपनी योग्यता बढ़ा सकते हैं, तो ऐसा करने से भी परहेज न करें। आज के समय में सामान्य जानकारी से पहचान मिलनी मुश्किल है। अपनी रुचि के क्षेत्र में जुनून के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे, तो कहीं न कहीं कामयाबी अवश्य मिलेगी।