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सिर्फ जमीन का टुकड़ा भर है येरूशलम या है कुछ और खास, जिस पर मर मिटने को तैयार रहते हैं फलस्‍तीन-इजरायल

येरूशलम पर फलस्‍तीन और इजरायल के बीच तनाव का पुराना इतिहास है। ये जगह तीन धर्मों को मानने वाालों के लिए बेहद पवित्र है। यही वजह है कि इस पर कोई भी अपना दावा नहीं छोड़ना चाहता है।

By Jagran NewsEdited By: Kamal VermaUpdated: Tue, 18 Oct 2022 04:40 PM (IST)
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तीन धर्मों को मानने वालों के लिए पवित्र जगह है येरूशलम
नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्‍यता वापस करने के आस्‍ट्रेलिया के फैसले ने एक बार फिर इस मुद्दे को भड़काने का काम किया है। इस पर विश्‍व के देशों की राय भी एक समान नहीं है। कुछ इसको लेकर इजरायल के समर्थन में हैं तो कुछ विरोधी हैं तो कुछ की राय बिल्‍कुल ही अलग है। इस मुद्दे पर फलस्‍तीन और इजरायल दोनों ही झुकने को तैयार नहीं हैं और दोनों ही इसको अपनी राजधानी और अपने लिए एक पवित्र जगह बताते हैं। ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर येरूशलम में ऐसा क्‍या खास है जिस पर दोनों ही देश अपना न तो रुख बदलने को तैयार हैं न ही कोई समझौते को ही तैयार होते हैं।

दशकों पुराना है येरूशलम का मुद्दा 

येरूशलम का मुद्दा दोनों के बीच तभी से है जब से इजरायल फलस्‍तीन से अलग होकर एक आजाद राष्‍ट्र के रूप में अस्तित्‍व में आया। तब से लेकर आज तक ये मुद्दा गरमा रहा है।

इसाई, मुस्लिम और यहूदियों के लिए पवित्र नगरी 

आपको बता दें कि ये एक ऐसी जगह है जो दुनिया के सबसे पुराने नगरों में से एक है। इतना ही नहीं ये दुनिया में तीन धर्मों को मानने वालों के लिए बेहद पवित्र जगह है। इनमें यहूदी, इसाई और मुस्लिम शामिल हैं। यही वजह है कि इस्‍लाम बहुल फलस्‍तीन के लिए और यहूदी बहुल इजरायल के लिए ये पवित्र स्‍थल है। यहां पर Jewish लोगों की मौजूदगी अधिक है। ये करीब 61 फीसद हैं और इस्‍लाम को मानने वाले अरब करीब 38 फीसद हैं।

कई बार हुए येरूशलम पर हमले 

इस जगह के इतिहास की बात करें तो ये दो बार उजड़ कर फिर बसा था। इस पर करीब 52 बाहरी लोगों ने हमला किया और इसको बर्बाद किया। अलग-अलग समय पर इसके नाम भी इतिहास में बदलते रहे हैं। जैसे कभी सिटी आफ डेविड, Urusalim वगैरह-वगैरह। Judah शासन का ये केंद्र रहा। 1538 में यहां पर सिटी आफ वाल्‍स का निर्माण करवाया गया। उस वक्‍त इस पर ओटोमन साम्राज्‍य के सुलेमान का राज था। ये दीवार आज अर्मेनियत, क्रिस्चियन, जुविश और इस्‍लाम को अलग भी करती है। हर किसी के लिए ये पवित्र भी है।

हिब्रु में लिखी बाइबल में इसका जिक्र  

हिब्रु में लिखी बाइबल में इसके किंग डेविड द्वारा जीतेन का जिक्र किया गया है। किंग सोलोमन ने यहां पर एक पवित्र मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसे बाद में रोमन साम्राज्‍य ने नष्‍ट कर दिया था। इस्‍लाम धर्म में सुन्‍नी समुदाय के लिए ये जगह मक्‍का और मदीना के बाद धरती पर तीसरी सबसे पवित्र जगह है। कहा जाता है कि यहां पर इब्राहिम ने अपने बेटे को कुर्बान कर ऊपर वाले से बात की थी।

इसाइयों के लिए यीशु से जुड़ी जगह 

इसाई धर्म में इस जगह की खासियत इसलिए बेहद खास है क्‍योंकि इसका ताल्‍लुक यीशु के बचपन से है। इस्‍लाम में इस जगह का ताल्‍लुक मोहम्‍मद साहब से बताया जाता है। कहा जाता है कि यही सं हजरत मोहम्‍मद साबह जन्‍नत गए थे। वहीं Mandaeasns को मानने वाले मानते हैं कि उनके Chief prophet John the Baptist का जन्‍म यहीं पर हुआ था। यीशु के जन्‍म के बाद वे यहां से चले गए थे।

अल-हरम और अल-अक्‍सा मस्जिद 

यहां पर करीब 158 गिरजाघर और करीब 73 मस्जिद हैं। इस्‍लाम को मानने वालों के लिए यहां पर उनकी पवित्र अल-हरम मस्जिद है। इसको गोल्‍डन टैंपल और डोम आफ द राक भी कहा जाता है। इसके पास में अल-अक्‍सा मस्जिद है। वहीं पश्चिमी दीवार यहूदियों के लिए बेहद पवित्र है। आपको हैरानी होगी कि एक किमी के दायरे में ये सभी कुछ सिमटा हुआ है। इसी दायरे में इसाई धर्म के मानने वालों के लिए पवित्र चर्च भी है। जिस सोलोमन मंदिर को रोमन साम्राज्‍य ने नष्‍ट कर दिया था उसको सिनेगाग कहा जाता था। अब इसकी केवल दीवार ही बची है।  

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