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जीवन क्यों है अनमोल उपहार और जानें कैसे नियमित अभ्यास के संकल्प से इसे और सार्थक बना सकते

जीवन किसी कैमरे की तरह है आप जिस पर फोकस करेंगे वह तस्वीर उतनी अच्छी होगी। जब हम इसे केवल दर्द भरा संघर्ष मानेंगे तो यह एहसास मन में पीड़ा देगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 10 Sep 2020 11:55 AM (IST)
जीवन क्यों है अनमोल उपहार और जानें कैसे नियमित अभ्यास के संकल्प से इसे और सार्थक बना सकते
जीवन क्यों है अनमोल उपहार और जानें कैसे नियमित अभ्यास के संकल्प से इसे और सार्थक बना सकते

नई दिल्‍ली, सीमा झा। जन्म लेते ही मिल जाता है यह खूबसूरत उपहार। पल-पल बदलते जीवन के उलझन भरे सवालों के बीच रहकर भी कुछ लोग इसे अनमोल बना देते हैं। पर ऐसे लोगों की तादाद बेतहाशा बढ़ रही है जो अचानक किसी पल इस उपहार को नष्ट करने की गलती कर जाते हैं। जाने-माने लाइफ कोच और योग गुरु ग्रैंडमास्टर अक्षर से सीमा झा ने जाना जीवन क्यों है अनमोल उपहार और कैसे नियमित अभ्यास के संकल्प से इसे और सुंदर-सार्थक बनाया जा सकता है…

हर सुबह, हर दिन मिलता है जीवन रूपी उपहार। यह सुंदर तरीके से पैक किए गए पैकेट में नहीं मिलता, न ही इसके लिए आप इंतजार करते हैं। यह अपने आप मिल जाता है। इसलिए शायद हम अक्सर इसका मोल नहीं समझ पाते। ज्यादातर में इस उपहार को पाने का उल्लास नहीं होता। पर यदि आप इस उपहार को प्या‍र से ग्रहण करते हैं, इसका हर दिन सदुपयोग करते हैं तो इसका अर्थ है कि आप देने वाले यानी प्रकृति का सम्मान करते हैं।

आप इसके नियमों को समझते हैं। प्रकृति के नियमों से बाहर यहां कोई नहीं, सब इसके दायरे में हैं, कोई इसे बदल नहीं सकता। जीवन भी बदलता रहता है, उतार-चढ़ाव के बीच हमें इससे उपजी एकरसता को भी संभालना है। जाहिर है जीवन को अपने ही हाथों गंवा देने का अर्थ है कि हम प्रकृति के नियमों पर भरोसा नहीं करते। दरअसल, सिर्फ हमारे चाहने से चीजें नहीं बदलतीं। हमें मन को लगातार प्रशिक्षित करना होगा ताकि वह जीवन को आनंददायक उपहार बना सके। यदि मन अस्थिर है, हताश है तो वह जीवन-दृष्टि को भी क्षीण कर देता है। जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती जाती है और इससे हार मान जाते हैं लोग।

हर घड़ी डूबती जिंदगी : वायरस के कारण संक्रमित लोगों का जान से हाथ धोना दुखद है, पर यह एक क्रूर सच है कि भय और हताशा के कारण लोग अपनी जान दे रहे हैं। यह देश का भयावह सच है जो सालों से परेशान कर रहा है। हर चालीस सेकंड में दुनिया में एक इंसान अपनी जान खुद ले रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में तकरीबन 8 लाख और भारत में 2.3 लाख लोग हर साल आत्महत्या कर जीवन रूपी उपहार को यूं ही गंवा देते हैं। भारत में युवाओं के आत्महत्या करने की तादाद कहीं ज्यादा है। इनमें प्राय: 15-29 साल के युवा होते हैं यानी ये युवा उस उम्र में अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं, जिसे सबसे अधिक ऊर्जावान माना जाता है। ऊर्जावान होने के लिए उम्र अनिवार्य कारक नहीं, इससे यही बात साबित होती है। इसके लिए आत्म-सजग होना जरूरी है। जो अपने जीवन को लेकर सजग हैं समान परिस्थिति यानी समस्याओं के बीच भी जीवन से प्यार करना नहीं छोड़ते। वे खुद के अच्छे दोस्त होते हैं।

अपनी संगत का आनंद : क्या एकांत पसंद आता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अकेले होते ही आप घबराने लगते हैं। खुद पर यानी अपने मन की ओर देखने पर आपको डर लगने लगा है? यदि ऐसा है तो संभव है कि आप खुद की संगत पसंद नहीं करते। आप बाहर प्रेम तलाश रहे हैं, आपको प्रशंसा की चाह है, दूसरे क्या कहते हैं या कहेंगे, यह आपकी सबसे बड़ी चिंता हो गई है जबकि यह जरूरी नहीं। यदि आप खुद से खुश नहीं, भीतर संतोष नहीं तो जीवन की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। याद रखें, आपकी खुद के प्रति दृष्टि ही बाहर बदलाव का वाहक बनती है। इसलिए अपनी कमजोरियों को स्वीकारें तो अपनी खूबियों को भी सराहना करें। क्या आपने कभी महसूस किया है कि कड़ी मेहनत के बाद या योग क्रिया करने के बाद आपको आनंद की अनुभूति होती है? वह इसलिए क्योंकि हर काम से सबसे पहले हम खुद प्रभावित होते हैं। अपने लिए सकारात्म‍क परिवेश का निर्माण करते रहें।

आवेग पर नियंत्रण का अवसर : सेहत, शांति और खुशी। ये तीन शब्द कितने अनमोल हैं। इस समय यानी आपदा के समय इनकी और ज्यादा जरूरत महसूस कर सकते हैं। सारे प्रयास इन तीन पर केंद्रित होते हैं पर यदि ये हमारे जीवन में नहीं हैं तो यह भी आत्मसजगता का अभाव है। आप बस चलते जा रहे हैं या हर क्रिया को लेकर सतर्क हैं? बहुत सारी बातें ध्यान देने योग्य हैं पर सबसे पहले आपको योग को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। इसके बाद आप पाएंगे आपकी खूबियां और कमजोरियां दोनों स्पष्ट हो रही हैं। योगसनों की मदद से ऊर्जा महसूस हो रही है। जीवन में लचीलापन बढ़ रहा है। आपकी दृष्टि विकसित हो रही है, उसका विस्तार हो रहा है। जीवन में जो छोटे या बड़े दबाव हैं, उन पर संयम बरतना आने लगा है। आवेग को शांत होने का अवसर देते हैं। आप खुद को, अपने विचारों को स्पष्ट रूप से देख पा रहे हैं और उस पर सजगता से प्रयास कर रहे हैं यानी शरीर ही नहीं, मन की ऊर्जा भी बढ़ने लगी है।

एशियन जर्नल ऑफ साइकेट्री वॉल्यूम-53 के अनुसार, लिंग, उम्र, सामाजिक-आर्थिक स्तर, नशाखोरी, मानसिक बीमारी, शारीरिक बीमारी, मनोवैज्ञानिक और वातावरण के दबाव से उपजा तनाव इंसान को अति-संवदेनशील बना देता है, जो अक्सर उसे आत्महत्या की तरफ धकेलता है।

ध्यान रहें ये बातें : जीवन किसी कैमरे की तरह है, आप जिस पर फोकस करेंगे वह तस्वीर उतनी अच्छी होगी। जब हम इसे केवल दर्द भरा संघर्ष मानेंगे तो यह एहसास मन में पीड़ा देगा। जब इसे अनमोल मानेंगे तो हर चीज में बच्चों की तरह आनंद महसूस करने लगेंगे।

  • दिमाग स्थिर है तो वह बाहर की कोलाहल से परेशान नहीं होता। पर अपने काम और प्रोडक्टिविटी यानी उत्पादकता पर काम करता है। खुद को परिस्थिति के अनुसार बदल सकता है।
  •  खुद के प्रति सजग हैं तो जीवनशैली के प्रति भी सजग होंगे। उन चीजों पर ही ध्यान देंगे जो जीवन को बेहतरी की ओर ले जाए। यह खानपान से लेकर हर दिन आप क्या चीज चुनते हैं, हर विषय पर लागू होता है।
  • यदि संपूर्ण सेहत यानी तन ही नहीं मन को भी सुंदर रहना है, इस विचार को चुनते हैं तो आपका हर काम इसी दिशा में आगे बढ़ता है। आप उलझन में नहीं पड़ते, अपने लक्ष्य और आदतों के प्रति अधिक स्पष्ट रहते हैं। कोई चुनौती सामने आने पर हम पर्याप्त कदम उठा पाते हैं।
  • हम सब अलग हैं, सबकी अपनी यात्रा है इसलिए अपनी तुलना औरों से करना व्यर्थ है। यह आपकी चिंता में वृद्धि ही करेगा। जो नहीं है उसकी चिंता में वक्त बर्बाद न करें जो है बस उसे लेकर सफर पर आगे बढ़ते जाएं। बस।
  • इतिहास गवाह है कि सफल और महान उन्हीं व्यक्तियों को कहा गया है जिन्होंने अपने संचित ज्ञान का सदुपयोग किया और अधिक से अधिक उसका प्रसार भी किया। इसलिए ज्ञान प्राप्त करना उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना महत्वपूर्ण उसका सदुपयोग और अधिक से अधिक लोगों तक उसका प्रसार करना है।

इन पर करें अमल :

  • असफलता को परेशान करने की इजाजत न दें बल्कि इसे आगे और बेहतर करने के सबक के तौर पर देखना चाहिए।
  • पीड़ा को खुद को तोड़ने की इजाजत न दें बल्कि यह आपको और ऊंचा उठाए और जीवन की महत्ता का एहसास कराए, इस रूप में देखें। कई बार पीड़ा लोगों को बदल देती है।
  • कृतज्ञता से हम जीवन को और सुंदर नजर से देख सकते हैं। भय से बाहर निकलकर प्रेम और करुणा की तरफ जाते हैं।
  • आज यहां हैं, अगले पल जीवन किस रूप में बदलेगा, नहीं पता। इसलिए हर पल को भरपूर जीने का प्रयास करें। कुछ भूलना नहीं है, बस माफ करते जाएं। मन पर पड़े हर बोझ को उतार फेंकें। मन को जीवन की सुगंध से भर दें।

संपूर्णता में समझें जीवन : यदि आप दर्शन में रुचि रखते हैं और जीवन को संपूर्णता में देखने की बात करते हैं तो जरूर निरंतर चलने में भरोसा रखते होंगे। समय जब कठिन जान पड़ता है तो ऐसे सवाल स्वाभाविक रूप से मन में जगते हैं लेकिन हमें लगातार इन सवालों को मन में रखना चाहिए। यह एक अच्छा तरीका है जीवन से प्रेम जगाने का। अध्ययन बताता है कि जो लोग दर्शन व अध्यात्म में रुचि लेते हैं वे संपूर्णता में जीवन को समझने का प्रयास करते हैं। तनाव कम होता है। नींद अच्छी ले पाते हैं। थकान नहीं होती, भूख अच्‍छी होती है और किसी दर्द या पीड़ा के प्रभाव में आकर खुद हार नहीं मानते।

मिथ्या भय को त्याग दें : चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की पुस्तक ‘वेदांत’ का अंश में बताया गया है कि विजय निश्चित है। हमारे कंधे किसी भी काम के लिए सुविशाल और सुपुष्ट हैं। हमारी बुद्धि उचित इच्छापूर्ति के साधन निर्माण और एकत्र करने में समर्थ है। अपरिवर्तनीय नियम अपना काम करता ही है, मिथ्या भय को त्याग दे।