यरूशलेम दुनिया के सबसे पुराने नगरों में से एक है और ये दुनिया में यहूदी, इसाई और मुस्लिम तीनों धर्मों को मानने वाले लोगों के लिए एक बेहद पवित्र जगह है। यहां पर यहूदी लोगों की मौजूदगी अधिक है। ये करीब 61 फीसद हैं और इस्लाम को मानने वाले अरब करीब 38 फीसद हैं।
आपको बता दें कि यरूशलेम का मुद्दा तभी से विवाद में है, जबसे इजरायल फलस्तीन से अलग होकर एक आजाद राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। तबसे लेकर आज तक ये मुद्दा विश्व की शांति और स्थिरता के लिए एक चिंता का विषय रहा है।
क्या है दशकों पुराने इस विवाद की जड़
यरूशलेम के पुराने हिस्से में पहाड़ी के उपर स्थित आयताकार जगह में फैली इस मस्जिद को यहूदी ‘हर हवाइयत’
(Temple Mount या First Temple) कहते हैं। इसी जगह को मुस्लिम
‘हरम अल शरीफ’ कहते हैं। यहूदी मानते हैं कि इसी जगह में वो मिट्टी संजोई गई थी, जिससे एडम को बनाया गया था और जिससे इंसानों की भावी पीढ़ियां बढ़ीं।
957 ईसा पूर्व इजराइल के राजा सोलोमन ने यहां एक भव्य मंदिर बनवाया था, जिसे आगे चलकर बेबीलोनियन सभ्यता के लोगों द्वारा नष्ट कर दिया गया। तकरीबन पांच सदी बाद 352 ईसा पूर्व यहूदियों ने फिर इसी जगह पर एक और मंदिर बनवाया जिसे
Second Temple कहा गया। इसके अंदर के हिस्से को ही कहते हैं होली ऑफ होलीज़। लेकिन, रोमन्स ने इसे भी तोड़ दिया। पर इसकी एक दीवार को लोग आज भी उस प्राचीन टेम्पल के बाहरी अहाते का हिस्सा मानते हैं और पूजते हैं।
मुसलमानों के लिए पैगंबर मुहम्मद से जुड़ी है यह जगह
मुसलमानों की मानें तो उनकी सबसे पवित्र जगहों में सबसे पहले नंबर पर आता है मक्का उसके बाद मदीना और तीसरे नंबर पर आता है ‘हरम अल शरीफ’। सन् 632 ई में मुस्लिमों ने यरूशलेम पर हमला कर दिया। तब यहां बेजनटाइन साम्राज्य का राज था। जीतने के बाद उमईयत्त खलीफाओं ने यहां एक भव्य मस्जिद बनवाई और इसका नाम रखा अल-अक्सा। अरबी भाषा में अक्सा का मतलब होता है सबसे ज्यादा दूर।
इसी मस्जिद के सामने है सुनहरे गुम्बद वाली इमारत जिसे कहते हैं
‘डोम ऑफ द रॉक’। ये दोनों ही इमारतें उसी आयताकार कम्पाउन्ड में है जिसे यहूदी अपने प्राचीन मंदिरों की लोकेशन मानते हैं।
इसाइयों के लिए यीशु से जुड़ी जगह
ईसाई धर्म में इस जगह की खासियत इसलिए है क्योंकि इसका संबंध यीशु के जीवन से है। विशेष तौर पर यीशु के जीवन के अंतिम दिनों से इस जगह का जुड़ाव माना जाता है। बेथलहम, फिलिस्तीन में जन्म के बाद यीशु को यरूशलेम लाया गया, जहां वो रहे, अपने अनुयायियों को उपदेश दिया, उन्हें सूली पर चढ़ाया गया और मृत्यु के उपरांत वो फिर से जी उठे। इसाई मानते हैं कि ‘चर्च ऑफ द होली स्कल्पचर’ उसी जगह पर बना है, जहां यीशु को मृत्यु के बाद जी उठने पर फिर से देखा गया था।
ईसाई मतावलंबी यह भी मानते हैं कि यीशु एक बार फिर से यरूशलेम आएंगे। इसाई यह भी मानते हैं कि यही यीशु के अंतिम भोज का स्थान है और यहीं वह मकबरा भी है जहां उन्हें दफनाया गया था। माना जाता है कि यहां पत्थर के तीन स्लैब हैं, एक वह जहां पर पहले यीशु को दफनाया गया, दूसरा वह जहां पर जीवित पाए गए और तीसरा वह जहां उन्हें पुन: दफनाया गया था। दुनिया भर के ईसाईयों के लिए यह एक पवित्र श्रद्धास्थल है।
विवाद की जड़
सवाल ये उठता है कि अब इस जगह पर किसका अधिकार या वर्चस्व है। तो इसका जवाब ढूंढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों में जाना होगा। तथ्यों के अनुसार, लगभग 1000 ईसा पूर्व में यहूदियों ने यरूशलेम में पहला और 352 ईसा पूर्व में दूसरा यहूदी मंदिर बनावाया था। फिर आया धर्मयुद्ध का दौर, जिसमें ईसाई और मुसलमान आपस में सदियों तक लड़ते रहे। उसी लड़ाई में मुस्लिमों ने यरूशलेम को जीत लिया। जीतने के बाद उन्होंने मस्जिद की देखभाल के लिए एक ट्रस्ट बनाया जिसे वक़्फ़ कहा गया।
702 ईसवीं में मुस्लिमों ने
'मस्जिद अल-अक्सा' का निर्माण कराया और तब से लेकर अब तक यहूदी इसी 'मस्जिद अल-अक्सा' की पश्चिमी दीवार को पूजते हैं जिसे वो 352 ईसा पूर्व में बनाए गए दूसरे यहूदी मंदिर का अवशेष मानते हैं। तबसे ही मस्जिद अल-अक्सा और यरूशलेम यहूदी और मुसलमानों के लिए संघर्ष का मुद्दा रहा है।सदियों तक मस्जिद में गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित रहा। फिर आया साल 1948 और एक देश बना इजराइल, उसी जमीन पर जहां फिलिस्तिनियों का देश था। फिलिस्तीन का कहना था कि हमारे देश में दूसरा देश कैसे बनेगा? वहीं, यहूदियों का कहना था कि ये जमीन सदियों से हमारी थी और अब हमें हमारी जमीन चाहिए।
यहूदियों के इस दावे का आधार है हिब्रू बाइबल, जिसका पहला हिस्सा कहलाता है बुक ऑफ जेनेसिस। इसका एक महत्वपूर्ण भाग है
‘ईश्वर और अब्राहम के बीच हुआ करार’। यहूदियों के मुताबिक उनके पूर्वज मेसोपोटामिया में रहा करते थे। ईश्वर के आदेश पर वो अपना घर-बार छोड़कर नई जगह पहुंचे ये जगह पश्चिमी एशिया में थी और तब इसे कहते थे ‘लैन्ड ऑफ कैनन’।यहूदी मान्यता के अनुसार ईश्वर ने खुद अब्राहम से कहा था कि अब्राहम की संतान यहीं अपना नया देश बसाएंगे। अब्राहम के बेटे ‘इसाक’ का नाम था ‘जेकब’ और इसी जेकब का एक और नाम था ‘इजराइल’। जेकब के 12 बेटे हुए जो कहलाए
‘12 ट्राइब्स ऑफ इजराइल’। आज के इजराइल की अवधारणा भी इसी मान्यता पर आधारित है। यहूदी यरूशलेम को फिर से अपनी राजधानी बनाना चाहते हैं क्योंकि यह प्राचीन यहूदी राज्य का केन्द्र और राजधानी रहा है।
पार्टिशन रिजॉल्यूशन और ‘सिक्स डे वॉर‘
इसी मसले को देखते हुए दुनिया के बड़े देशों ने संयुक्त राष्ट्र की देख–रेख में एक मसौदा बनाया जिसे कहा गया ‘पार्टिशन रिजॉल्यूशन’, जिसके अनुसार फिलिस्तीन को दो हिस्सों में तोड़कर दो अलग-अलग देश बनाया जाए (एक यहूदी देश यरूशलेम और एक मुस्लिम देश फिलिस्तीन) और जेरूसलेम को यूनाइटेड नेशन की देख–रेख में छोड़ दिया जाए।इजराइल इस समझौते पर राजी था पर अरब देशों ने इस मसौदे को ठुकरा दिया और इसका नतीजा एक भयंकर युद्ध में तब्दील हो गया, जिसे 1967 का ‘सिक्स डे वॉर’ कहा गया। इस युद्ध में यहूदियों ने यरूशलेम के बहुत सारे हिस्से को अपने कब्ज़े में ले लिया...यहां तक कि टेम्पल माउंट को भी अपने कब्जे में लेकर वक़्फ़ बोर्ड बना दिया और इसकी देख–रेख जॉर्डन को दे दी। हालांकि, इस व्यवस्था से दोनों ही तरफ के चरमपंथी नाराज थे।ऐसे ही एक चरमपंथी इजराइली सैनिक एलेन गुडमैन ने 1982 में पवित्र परिसर में घुसकर गोलीबारी कर दी। इसमें दो लोगों की जान चली गई। इससे दोनों धर्मों में और तनाव बढ़ गया।अब तक ऐसी अनेक वारदातें हो चुकी हैं कि गिनने बैठें तो कई दिन निकल जाएंगे। इन सभी लड़ाइयों के अंत मे सिर्फ निराशा के सिवा और कुछ नहीं है। पिछले दस वर्षों में ये विवाद इतना बढ़ चुका है कि इसका अंत होते नहीं दिख रहा है।फिलिस्तीनी चरमपंथ ‘हमास’ और इजराइली सेना के बीच निरंतर युद्ध चलता ही रहता है। इसकी वजह से अबतक ना जाने कितनी जानें जा चुकी हैं। दूर से देखने पर शायद ये महज एक जमीनी झगड़ा दिखे, पर कहीं न कहीं अंदर ये दोनों समुदाय सदियों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे रहे हैं और हार मानने का नाम नहीं ले रहे हैं।