Uniform Civil Code: समझिए भारत में क्यों है समान नागरिक संहिता जरूरी, लागू होने के बाद आप पर क्या होगा असर?
Uniform Civil Codeयूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता देश में एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अब बीजेपी सरकार कर्नाटक चुनाव में भी इस मुद्दे पर बड़ा दांव खेल सकती है। तो आइये जानते हैं कि आखिर क्या होता है समान नागरिक संहिता।
By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Wed, 03 May 2023 12:00 PM (IST)
नई दिल्ली, जागरण डेस्क। बीजेपी ने 10 मई को होने वाले कर्नाटक चुनाव के लिए सोमवार को अपना घोषणापत्र जारी कर दिया। समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का कार्यान्वयन राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा किए गए कई वादों में से एक था। पार्टी ने अपने विजन डॉक्यूमेंट (मेनिफेस्टो) में कहा, 'इस उद्देश्य के लिए गठित की जाने वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर हम कर्नाटक में यूसीसी को लागू करेंगे।'
नवंबर 2022 में, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा था कि उनकी सरकार यूसीसी को लागू करने पर विचार कर रही है। समान नागरिक संहिता के विचार पर भारत में कई दशकों से बहस चल रही है।
क्या है समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य कानूनों का एक समान सेट प्रदान करना है जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।- समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है।
- यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी।
- वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं।
- फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।
- UCC के समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और कानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा।
- हालांकि, विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
भारत में समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क
लैंगिक समानता की ओर कदम: भारत में व्यक्तिगत कानून प्रायः महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, विशेष रूप से विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संरक्षण से संबंधित मामलों में।
समान नागरिक संहिता इस तरह के भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
कानूनों की सरलता और स्पष्टता: समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों के मौजूदा ढुलमुल तंत्र को नियमों के एक समूह से प्रतिस्थापित कर विधिक प्रणाली को सरल बनाएगी जो सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होगी।इससे सभी नागरिकों के लिये कानून अधिक सुलभ हो जाएंगे और वे इसे आसानी से समझ पाएंगे।
एकरूपता और निरंतरता: समान नागरिक संहिता कानून के अनुप्रयोग में निरंतरता सुनिश्चित करेगी, क्योंकि यह सभी के लिये समान रूप से लागू होगी। यह कानून के अनुप्रयोग में भेदभाव या असंगति के जोखिम को कम करेगी।यह धर्म या व्यक्तिगत कानूनों के आधार पर भेदभाव को समाप्त करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि कानून के तहत सभी को समान अधिकार एवं सुरक्षा प्राप्त हो।
क्या है हिन्दू पर्सनल लॉ (what is Hindu personal law)
भारत में हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाया गया। देश में इसके विरोध के बाद इस बिल को चार हिस्सों में बांट दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे हिन्दू मैरिज एक्ट, हिन्दू सक्सेशन एक्ट, हिन्दू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट और हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट में बांट दिया था। इस कानून ने महिलाओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया। इनके तहत महिलाओं को पैतृक और पति की संपत्ति में अधिकार मिलता है। इसके अलावा अलग-अलग जातियों के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार है लेकिन कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board)
देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड ((All India Muslim Personal Law Board-AIMPLB) है। इसके लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक के और भी तरीके दिए गए हैं, लेकिन उनमें से तीन बार तलाक भी एक प्रकार का तलाक माना गया है, जिसे कुछ मुस्लिम विद्वान शरीयत के खिलाफ भी बताते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अहम बातें1. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक एनजीओ है जो सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है।2. इसे 7-8 अप्रैल 1973 में स्थापित किया गया। ये 50 साल पुराना इदारा यानी संस्थान है।3. इसकी स्थापना का मकसद देश में पर्सनल लॉ की हिफाजत करना, देश में मुसलमानों के मुद्दों को सरकार के सामने रखना है।4. इसका हेड ऑफिस दिल्ली के ओखला में स्थित है।महिलाओं की स्थिति में होगा सुधार
समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे।क्यों हो रहा है समान नागरिक संहिता का विरोध
यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून को लागू करने जैसा है।इन देशों में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड
एक तरफ भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश इस कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं।