आखिर क्या है अमेरिका की स्पेशल 301 रिपोर्ट, भारत चीन क्यों हैं इसमें शामिल?
इस दौर में विचार ही प्रगति का सूत्रधार है। अमेरिका, जापान और हाल में चीन ने तरक्की की जो रफ्तार पकड़ी है उसमें विचारों की ही अहम भूमिका रही है जिन्हें बौद्धिक संपदा कहा जाता है।
डॉ. सिद्धार्थ मिश्र। पिछले महीने 27 अप्रैल को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि के कार्यालय ने अपनी स्पेशल 301 रिपोर्ट, 2018 जारी कर अमेरिका में रचनात्मक कृतियों के बढ़ते बाजार के समक्ष उपस्थित मुख्य चुनौतियों को चिन्हित किया है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि ने भारत और चीन सहित 12 प्रमुख कॉपीराइट बाजार देशों को स्पेशल 301 कानून के अंतर्गत अपनी प्राथमिकता निगरानी सूची में रखा है। इस सूची में उन देशों को रखा जाता है जिनके बौद्धिक संपदा अधिकार यानी आइपीआर ढांचे में कमजोर कानून और उनके लचर क्रियान्वयन एवं प्रवर्तन के चलते बौद्धिक संपदा अधिकारों का लगातार उल्लंघन होता है। स्पेशल 301 समीक्षा प्रक्रिया का प्रमुख लक्ष्य अमेरिकी सरकार की उन देशों की पहचान करने में मदद करना है जो न तो बौद्धिक संपदा अधिकारों को प्रभावी और पर्याप्त सुरक्षा देते हैं, अपितु बौद्धिक संपदा सुरक्षा चाहने वाले अमेरिकी व्यक्तियों को विदेशी बाजार की निष्पक्ष व न्यायसंगत पहुच बनाने से भी रोकते हैं।
स्पेशल 301 रिपोर्ट
इस वर्ष की स्पेशल 301 रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य अमेरिका के कॉपीराइट सुरक्षा प्राप्त फिल्म-टेलीविजन कार्यक्रमों, संगीत, वीडियो गेम्स, प्रकाशन, मनोरंजक सॉफ्टवेयर एवं अन्य रचनात्मक सामग्री के लिए विश्व में तेजी से बढ़ रहे डिजिटल बाजार सहित अन्य बाजारों को खोलना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अमेरिका चाहता है कि अन्य देश अपने बाजारों में सख्त कॉपीराइट कानून और कुशल क्रियान्वयन तंत्र बनाएं व उसके रचनात्मक उत्पादों की बाजार तक पहुंच बनाने में मौजूद रुकावटों को दूर करें। बौद्धिक संपदा सामग्री हेतु अन्य देशों के बाजारों का खुलना अमेरिका के निर्यात, नौकरियों और वैश्विक स्तर पर अमेरिकी प्रतियोगी क्षमता बढ़ाने में सदैव एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हुआ है। स्पेशल 301 इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अमेरिका की एक प्रमुख नीति है।
बौद्धिक संपदा
रचनात्मकता व नवोन्मेष से उपजी बौद्धिक संपदा का आज किसी भी देश की प्रगति में विशेष महत्व है। रचनात्मक निर्माताओं और उनकी कृतियों को मिली कानूनी सुरक्षा प्रत्येक देश के विकास का एक प्रमुख मापदंड और सूचक है। विभिन्न प्रकार की बौद्धिक संपदा को विभिन्न कानूनी अधिकार प्राप्त हैं जैसे कि साहित्यिक, कलात्मक, संगीत, नाट्य, फिल्म व कंप्यूटर प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर आदि को कॉपीराइट या प्रतिलिप्या अधिकार, वैज्ञानिक इजाद या खोज का पेटेंट, व्यापारिक नामों, चिन्हों व प्रतीकों पर ट्रेडमार्क और अन्य प्रकार की रचनात्मक सामग्री को अन्य बौद्धिक संपदा संबंधी कानूनी सुरक्षा मिली हुई है।
पेरिस संधि
विश्व समुदाय ने भी बौद्धिक संपदा के महत्व को समझते हुए रचनात्मक कृतियों को सर्वप्रथम 1883 में पेरिस संधि, 1886 में बर्न संधि व 1891 में मैडिड संधि के अलावा अनेक अन्य संधियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा प्रदान की हुई है। इनमें वर्ष 1995 का टिप्स समझौता व 1996 में कॉपीराइट सुरक्षा का इंटरनेट पर विस्तार करने वाली दो (वाईपो) इंटरनेट संधियां भी बेहद अहम हैं। इन संधियों के फलस्वरूप प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को एक दूसरे के रचनाकारों के बौद्धिक अधिकारों को अपने देश में वही सुरक्षा प्रदान करनी होती है जो वे अपने देश के नागरिको को देते हैं। बहरहाल इन सभी संधियों और समझौतों के बावजूद सभी देशो में कानूनी व्यवस्था और उनके प्रवर्तन में काफी विरोधाभास के साथ ही तमाम खामियां भी देखने को मिलती हैं।
सजग विकसित देश
विकसित देश अपने नागरिकों की बौद्धिक संपदा व अधिकारों के प्रति विकासशील देशों की अपेक्षा अधिक जागरूक व संवेदनशील हैं। उनके यहां मजबूत कानून और कुशल प्रवर्तन व्यवस्था है और जनता भी बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रति जागरूक है। इन देशो में उत्कृष्ट कार्यसंस्कृति और बौद्धिक अधिकारों की सुरक्षा के प्रति कानूनी आश्वासन की वजह से वैज्ञानिको, आविष्कारकों और रचनाकारों को नवाचार के लिए आवश्यक प्रेरणा, प्रोत्साहन के लिए उपयुक्त परिवेश मिला हुआ है। इन देशों में आम नागरिक अपने व दूसरों के अधिकारों के प्रति जागरूक होने के साथ ही गंभीर भी हैं। उन्हें बौद्धिक अधिकारों के फायदे भी बखूबी मालूम हैं। अधिकांश विकसित देशों में होने वाले शोधों में प्लेजयरिज्म यानी नकल को लेकर सख्त नियम लागू हैं। वहां शोध एवं अन्य साहित्यिक कार्यों की गुणवत्ता एवं मौलिकता पर विशेष जोर रहता है। ऐसे माहौल में वैज्ञानिक खोज और तकनीक का विकास व साहित्यिक कार्यों, फिल्मों, संगीत एवं सॉफ्टवेयर का निर्माण अन्य देशों की अपेक्षा ईमानदारी से और अधिक विश्वसनीय होता है।
अमेरिकी श्रमिकों की संख्या
केवल अमेरिका ने ही वर्ष 2015 में कॉपीराइट आधारित उद्योगों से 1.2 खरब डॉलर कमाए जो उसकी कुल अर्थव्यवस्था का 6.9 प्रतिशत है। इसमें 55 लाख लोगो को रोजगार मिला जो कुल अमेरिकी श्रमिकों की संख्या का 3.87 प्रतिशत और निजी क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार का 4.57 प्रतिशत है। अमेरिका में कॉपीराइट उद्योग वर्ष 2012 से 2015 के दौरान 4.81 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ा और अन्य क्षेत्रों से आगे निकल गया। जबकि समस्त अमेरिकी अर्थव्यवस्था केवल 2.11 प्रतिशत की दर से ही बढ़ी। पूरे अमेरिकी व्यापार संतुलन में भी 2015 में इस क्षेत्र ने विदेशी बिक्री और निर्यात में कुल 177 अरब डॉलर का योगदान दिया। दूसरे देशों व उनके नागरिकों को बौद्धिक संपदा के प्रयोग की अनुमति देना भी अमेरिका की आमदनी का एक बड़ा स्नोत्र है। आज बौद्धिक संपदा से होने वाली आय अमेरिका सहित तमाम विकसित देशों की आमदनी का एक मुख्य स्नेत और रोजगार सृजन का मुख्य साधन है। यहां विशेष बात यह है कि चाहे अमेरिका हो या अन्य विकसित देश, उनकी आर्थिक उन्नति सख्त बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनों और उन्हें कुशलता से अमल में लाने से ही संभव हो पाई है।
अवसर के साथ चुनौतियां
भारत इंटरनेट और स्मार्टफोन प्रयोग में पूरी दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है और भारतीय फिल्म, संगीत और अन्य उद्योग तेजी से डिजिटल उपभोग की तरफ बढ़ रहे हैं। जिस प्रकार ऑनलाइन और मोबाइल नेटवर्क बढ़ रहे हैं, उससे भारत के रचनात्मक उद्योगों के समक्ष अवसर बढ़ने की पूरी उम्मीद है। इसके साथ ही तमाम चुनौतियों का दस्तक देना भी स्वाभाविक है। ये समस्त उद्योग बौद्धिक संपदा सृजित करते हैं और इनको कानूनी अधिकार प्राप्त हैं, परंतु भारत में बौद्धिक अधिकारों का उल्लंघन लंबे समय से एक चुनौती बना हुआ है। बौद्धिक संपदा की चोरी और पायरेसी के कारण प्रत्येक वर्ष भारतीय फिल्म, संगीत, सॉफ्टवेयर, प्रकाशन और अन्य उद्योगों को अरबों रुपयों का घाटा उठाना पड़ता है। भारत में इस समय भी सख्त कानून और कुशल अनुपालन की कमी के साथ ऑनलाइन पायरेसी सेवाएं, पायरेटेड मोबाइल एप्प, पुस्तकों की नकल के साथ ही अन्य समस्याएं मौजूद हैं। अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा संघ द्वारा स्पेशल 301 रिपोर्ट में भारत को कई वर्षो से लगातार निगरानी सूची में रखने के पीछे भी इन्हीं व अन्य वजहों का होना बताया जा रहा है।
कुशल अनुपालन की समस्या
भारत में बौद्धिक संपदा को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनेक कानून पहले से ही मौजूद हैं, परंतु उनका कुशल अनुपालन निरंतर एक समस्या बना रहा है। भारत सरकार ने इस दिशा में सुधार का कदम बढ़ाते हुए मई 2016 में रचनात्मक भारत; अभिनव भारत के सिद्धांत पर आधारित अपनी महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति जारी की थी। यह नीति भारत में रचनात्मकता व नवाचार ऊर्जा की प्रचुरता के विश्वास पर केंद्रित है और इसका लक्ष्य इन अधिकारों के आर्थिक महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना और भारत के विशाल एवं जीवंत रचनात्मक क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करना है। नई नीति में कॉपीराइट संबंधी क्षेत्रधिकार को वाणिज्य मंत्रलय के अधीन औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग यानी डीआइपीपी को हस्तांतरित किया गया है। डीआइपीपी के तत्वाधान में बना बौद्धिक संपदा अधिकार संवर्धन एवं प्रबंधन विभाग (सिपम) सुधार के अनेक प्रयास कर रहा है और पिछले वर्ष ही इसने भारत की पहली अनुपालन पुस्तिका जारी की है जो पुलिस अधिकारियों को पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामलों से निपटने में मदद करेगी।
कानून की बेहतर सुरक्षा
नि:संदेह इस नीति से देश में बौद्धिक संपदा कानून की बेहतर सुरक्षा और अनुपालन होने की उम्मीद जगी है और यदि यह सफल रहती है तो इससे बौद्धिक संपदा के मालिको के लिए कानूनी ढांचे, ऑनलाइन क्रियान्वयन में सुधार और सरकारी प्रबंधन में आधुनिकता आएगी, परंतु राष्ट्रीय बौद्धिक अधिकार नीति को आए लगभग दो वर्ष बीतने के बाद भी कुछ प्रत्यक्ष फायदों के सिवा इसके समस्त लाभ पूरी तरह दिखाई देने में अभी समय लग सकता है। भारत में बौद्धिक संपदा का उल्लंघन अपराध है, लेकिन इसका अनुपालन अधिकारियों की प्राथमिकता में दिखाई नहीं देता। इन अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए न्यायिक एवं अन्य अधिकारियों को ऑनलाइन गतिविधियों, साइबर अपराध व इलेक्ट्रॉनिक सुबूतों के संबंध में संवेदीकरण करने व प्रशिक्षण देने की पूरे देश में समान रूप से जरूरत है।
कानून का कुशल अनुपालन
देश में सख्त बौद्धिक संपदा कानून बनाने और उनके कुशल अनुपालन हेतु गंभीर प्रयास करने व् साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकारों के संबंध में आम नागरिको को जागरूक बनाने की भी आवश्यकता है। इन अधिकारों की सुरक्षा से लोगो में रचनात्मकता बढ़ने के साथ ही राष्ट्रीय आय में प्रगति के साथ रोजगार का सृजन व अनेक अन्य लाभ हो सकेंगे, परंतु भारत जैसे विकासशील देश में इन अधिकारों के संरक्षण के साथ ही सार्वजनिक या लोक हित में इन संपदाओं के प्रयोग की अनुमति पर भी ध्यान देने की उतनी ही दरकार है। बौद्धिक संपदा अधिकारों व सार्वजनिक हित के मध्य सामंजस्य बनाकर चलने से ही भारत जैसे देश की उन्नति और प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा।
[लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं]