पत्नी का हत्यारा 22 वर्ष बाद बरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दोषी ठहराना न्याय का मजाक
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया ट्रायल कोर्ट व झारखंड हाई कोर्ट का फैसला कहा- यह इस अदालत का कर्तव्य है कि उसमें सुधार करे। फैसला लिखने वाले जस्टिस ने कहा संदेह और भ्रम आरोपित को दोषी ठहराने का आधार नहीं हो सकते।
By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Tue, 04 Apr 2023 06:52 AM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। पत्नी की हत्या के लिए लगभग 22 वर्ष पहले दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बरी कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे दोषी ठहराना न्याय का मजाक था और यह इस अदालत का कर्तव्य है कि उसमें सुधार करे। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि निचली अदालतों ने इस आधार पर उसे दोषी मान लिया क्योंकि मरने से पहले उसकी पत्नी को आखिरी बार उसी के साथ देखा गया था।
अदालतें यह भूल गईं कि उसकी पत्नी के पिता ने अपने बयान में कहा था कि आरोपित के पिता ने खुद उन्हें घटना से दो दिन पहले उनकी बेटी के लापता होने के बारे में जानकारी दी थी। पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस करोल ने कहा कि संदेह और भ्रम आरोपित को दोषी ठहराने का आधार नहीं हो सकते और आरोपित को अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियां बिल्कुल भी साबित नहीं हुईं।शीर्ष अदालत ने यह फैसला गुना महतो नामक व्यक्ति की अपील पर सुनाया जिसने झारखंड हाई कोर्ट के 2004 के फैसले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उसे दोषी ठहराने और उम्रकैद की सजा सुनाने के ट्रायल कोर्ट के 2001 के फैसले को बरकरार रखा था। इस मामले में याचिकाकर्ता की पत्नी की अगस्त, 1988 में हत्या हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने गुना महतो को बरी कर दोनों निचली अदालतों के आदेशों को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट से 28 साल बाद डकैती मामले में दोषी व्यक्ति बरीसुप्रीम कोर्ट ने लूट के मामले में दोषी ठहराए गए अनवर उर्फ भुगरा को करीब 28 वर्षों बाद बरी कर दिया है। दोषी को यह कहते हुए छोड़ा गया कि अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह था और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश को रद कर दिया।
अदालत ने कहा कि रिकार्ड पर उक्त सामग्री से, अपराध स्थल पर अपीलकर्ता की उपस्थिति और उसके पास से पिस्तौल की बरामदगी अत्यधिक संदिग्ध हो जाती है और अपीलकर्ता का दोष उचित संदेह से परे साबित नहीं किया जा सकता है।