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डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ अब एआई बनेगा गरीबी मिटाने और बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने का औजार

अमेरिका के सिएटल से सुजमैन ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से आनलाइन विशेष बातचीत की हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि डिजिटल टेक्नोलॉजी में वैश्विक लीडर बनने के बाद भारत आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (एआइ) को अपनी बड़ी आबादी के व्यापक हित में उपयोग करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इंटरव्यू के दौरान सुजमैन से कई सवाल पूछे गए।

By Jagran News Edited By: Versha Singh Updated: Sat, 27 Jan 2024 12:55 PM (IST)
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डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ अब एआई बनेगा गरीबी मिटाने और बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने का औजार
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। डिजिटल टेक्नोलॉजी में वैश्विक लीडर बनने के बाद भारत आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (एआइ) को अपनी बड़ी आबादी के व्यापक हित में उपयोग करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसके मद्देनजर स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने से लेकर गरीबी उन्मूलन के बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए AI नया अस्त्र साबित हो सकता है।

विशेषकर अब भी दुनिया के लिए चुनौती बनी टीबी जैसी बीमारी के इलाज के लिए नए टीका विकसित कर इसके रॉल आउट में एआइ क्रांतिकारी साबित हो सकता है।

यह कहना है बिल एंड मिलिंडा गेटस फाउंडेशन के सीईओ मार्क सुजमैन का जिन्होंने अभी-अभी परोकार के उद्देश्य से फांउडेशन के अब तक के सबसे बड़े बजट की घोषणा की है। अमेरिका के सिएटल से सुजमैन ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से आनलाइन विशेष बातचीत की।

पेश है इसके अंश:

हाल ही में फाउंडेशन के लिए आपने बड़े बजट की घोषणा की और भारत आपके फाउंडेशन के लिए एक फोकस देश रहा है तो अगले कुछ वर्षों सालों में भारत में आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं?

आपने सही कहा हमारे बोर्ड ने पिछले हफ्ते ही 2024 में 8.6 बिलियन डालर का नया बजट घोषित किया है जो किसी भी परोपकार के लिए अब तक का सबसे बड़ा बजट है। हम वैश्विक दक्षिण के अधिकांश हिस्सों को सामाजिक कार्यों के लिए अवसर के रूप में देखते हैं भारत इसमें अपवाद है क्योंकि वह तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है।

बाल और मातृ मृत्यु दर जैसे प्रमुख संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार हो रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे ऐतिहासिक रूप से चुनौतीपूर्ण रहे कई बड़े राज्यों में भी प्रगति हुई है। लेकिन विश्व में 60 से अधिक देश ऐसे हैं जिन्हें वास्तव में स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश करने की तुलना में अंतरराष्ट्रीय कर्ज में अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।

हमने विश्व स्तर पर मलेरिया, तपेदिक, एचआईवी जैसी प्रमुख संक्रामक बीमारियों में कुछ झटके देखे हैं। इसलिए हमारे बजट का फोकस यह है कि हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि प्रगति फिर से शुरू हो। 21वीं सदी के पहले दो दशकों में जो हमने देखा है उसमें तेजी लाना संभव है क्योंकि भारत दुनिया को दिखा रहा है कि यह कैसे संभव है। लेकिन ऐसा करने के लिए हमें न केवल सरकारों से बल्कि परोपकारी लोगों से भी कार्रवाई, समर्थन और संसाधनों की आवश्यकता है।

फाउंडेशन भारत में दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहा है इस दौरान आपने क्या हासिल किया और आगे कौन प्रमुख क्षेत्र प्राथमिकता में होंगे?

हम जैसे लोग जो कर सकते हैं वह यह है कि अवसरों, मॉडलों या काम करने के तरीकों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं। हम तकनीकी नवाचारों को वित्त पोषित करने में मदद कर सकते हैं, चाहे वह नए टीके हों, या नए उपचार हों, या नई कृषि तकनीकें हों। इसलिए एचआईवी/एड्स की रोकथाम से शुरुआत करते हुए भारत ने बहुत ही गौरवपूर्ण ट्रैक रिकॉर्ड का लक्ष्य हासिल किया।

बच्चों के टीकाकरण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भी काम कर रहे हैं। हमारा सबसे बड़ा फोकस एक ऐसा क्षेत्र जहां हम जीएवीआई, ग्लोबल वैक्सीन एलायंस के साथ काम करते हैं। जिसने पिछले पांच वर्षों में भारत को बहुत अधिक सहायता प्रदान करने में मदद की है। लेकिन अंत में नेतृत्व भारत सरकार से मिलता है जिसने एनटीएजीआई जैसे संस्थानों की स्थापना कर नए टीकों को प्राथमिकता दी है।

रोटावायरस वैक्सीन जैसे नए टीके भारत में विकसित किया जा रहा है जिसके विकास में हमने मदद की और यह विश्व स्तर पर निर्यात किया जा रहा है। यह एक बेहतरीन मॉडल है कि जब भारत को घरेलू सफलता मिलती है, तो उसका कुछ हिस्सा बाकी दुनिया के साथ साझा किया जा सकता है। आगे बढ़ते हुए जिन क्षेत्रों को लेकर हम सबसे अधिक उत्साहित हैं उनमें से एक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में भारत का नेतृत्व है।

हमने नंदन नीलेकणि जैसे निजी परोपकारी लोगों के साथ भी काम किया है जो आधार डिजिटल पहचान योजना के गॉडफादर थे और इससे भारत में वित्तीय समावेशन का प्रसार हुआ। यह दुनिया का सबसे रोमांचक मॉडल है जो वास्तव में गरीब लोगों तक पहुंचता है। अब भारत डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे का दुनिया में नेतृत्व करेगा क्योंकि हमारा मानना है कि यह एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में परिवर्तनकारी हो सकता है।

आपने डिजिटलीकरण की चर्चा की तो भारत वैश्विक क्षेत्र में डिजिटल लीडर है और आपका फाउंडेशन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है, ऐसे में इन दोनों का संगम कैसे सामाजिक कल्याण योजनाओं को प्रभावशाली बना सकता है?

यह बहुत बढ़िया सवाल है। एआई ऐसा क्षेत्र है जो बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। जब हमारे पास एआई और आइटी जैसी नई प्रौद्योगिकिया आती हैं तो चुनौती यह होती है कि जब तक सबसे गरीबों की जरूरतों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता तब तक यह सबसे अमीर लोगों को लाभ पहुंचाएगा। इसलिए हम बहुत ध्यान से देख रहे कि एआई का उपयोग कर हम वास्तव में गरीबों का समर्थन कैसे करेंगे। उनमें से कुछ तकनीकी नवाचार हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र, सिंचाई और शिक्षा क्षेत्र में छात्रों की जरूरत को बेहतर ढ़ग से समझ कर उसका समाधान निकालने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। अभी एआई की कहानी शुरुआत हुई है लेकिन हमारे पास कुछ बहुत उत्साहजनक उदाहरण हैं।

सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्रगति को प्रेरित करने में नवाचारों के उपयोग की आपने बात की मगर क्या इनमें बाधाएं नहीं हैं?

मैं दो उदाहरणों इस संदर्भ में देना चाहता हूं। अगले कुछ वर्षों में हम कई सौ मिलियन डालर खर्च करने जा रहे हैं जो टीबी के उपचार के लिए क्रांतिकारी हो सकता है और इसके अंतिम चरण का परीक्षण चल रहा है। अब तक के परीक्षण में यह प्रभावी है और टीबी मरीजों के इलाज पर इसका उपयोग किया जा सकता है। टीबी आज भी सबसे बड़ी संक्रामक बीमारी है जो दुनिया में किसी भी अन्य बीमारी की तुलना में सबसे अधिक लोगों की जान लेती है।

इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका या चीन जैसे अन्य देशों की तरह टीबी भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। इसके इलाज की जरूरत के बावजूद 100 से अधिक वर्षों में टीबी का कोई नया टीका नहीं बना है क्योंकि निजी दवा कंपनियां इसमें लाभ की संभावना नहीं देखती और इसलिए निवेश नहीं करना चाहती हैं। हमारा फाउंडेशन आगे आकर परीक्षण करने में मदद कर सकता है और टीबी उन्मूलन प्रधानमंत्री मोदी की एक प्रमुख प्राथमिकता है।

हमने पूरे भारत में तीन स्थानों पर प्रयोग किया कि कैसे हम निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य प्रदाताओं को सरकारी क्षेत्र की प्रणाली से जोड़ने में मदद कर सकते हैं ताकि टीबी का इलाज किया जा सके। इसे अब विश्व बैंक के समर्थन से देश के अधिकांश हिस्सों में बढ़ाया गया है और यह सरकार द्वारा संचालित है। अजीम प्रेमजी जैसे बड़े दानदाता इसमें अहम योगदान कर रहे हैं।

क्या आपके पास कुछ ऐसे रोमांचक नए इनोवेशन हैं, जिन्हें आप भारत से एक वैश्विक चीज बना विश्व स्तर पर लागू किया जा सकता है?

हम डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के साथ बिल्कुल यही करने की कोशिश कर रहे हैं। डिजिटल पहचान प्लेटफ़ॉर्म जिसे अब भारत सरकार ने अपनी जी20 पहल के हिस्से के रूप में पुनर्गठित किया है । हम 20 से अधिक देशों में काम कर रहे हैं, ऐसी योजनाएं विकसित कर रहे हैं जो भारतीय आधार प्रणाली पर आधारित हैं और इसमें फिलीपींस से मोरक्को जैसे देश शामिल हैं जहां इसकी प्रगति हुई है। अब हम भारत के वित्तीय समावेशन के मॉडल के बारे में सोंच रहे जिसकी बाहर बहुत प्रासंगिकता है। भारत ने वास्तव में इस दिशा में प्रगति की है।

भारत में गैर-सरकारी संगठनों के लिए नियामक दिशा-निर्देश कड़े कर दिए गए हैं तो इसके कारण एनजीओ के साथ काम करने में आपके जैसे फाउंडेशन को भी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

हमारा ध्यान वास्तव में मानवीय जरूरतों और लोगों की मदद करने पर है। मिशन यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने का मौका मिले। हम उन क्षेत्रों की पहचान करना चाहते हैं, चाहे वह कृषि हो, स्वास्थ्य सेवा हो, वित्तीय सेवाएं या स्वच्छता हो जहां हम योगदान कर सकते हैं तो हम आदर्श रूप से सरकार के साथ बड़े पैमाने पर साझेदारी कर सकते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के रूप में यहां हमारे स्थानीय साझेदार हैं और सरकार के साथ हमारी साझेदारी का एक मजबूत, स्थिर, बहुत पारदर्शी सेट है। हमारा ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है। हम न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर के साझेदारों के साथ मिलकर इस पर काम जारी रखने की उम्मीद करते हैं।