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पति के रहते महिला ने कर ली दूसरी शादी, SC तक पहुंच गया मामला और फिर कोर्ट ने सुना दी ये सजा

तमिलनाडु की एक महिला ने पहली शादी रहते हुए दूसरी शादी कर ली। इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने (द्विविवाह को गंभीर अपराध मानते हुए) नए जोड़े को छह-छह महीने की साधारण कैद और दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। बता दें कि पति या पत्नी के जीवनकाल में द्विविवाह या दोबारा विवाह करना एक दंडनीय अपराध है।

By mala mala Edited By: Babli Kumari Updated: Mon, 15 Jul 2024 11:45 PM (IST)
पति के रहते महिला ने कर ली दूसरी शादी, SC तक पहुंच गया मामला और फिर कोर्ट ने सुना दी ये सजा
सुप्रीम कोर्ट ने द्विविवाह को गंभीर अपराध मानते हुए सुनाया फैसला (फाइल फोटो)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। यह कहानी है तमिलनाडु के एक ऐसे जोड़े की, जिसमें महिला ने पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी कर ली और अब नए जोड़े को आइपीसी की धारा 494 के तहत द्विविवाह के जुर्म में सजा भुगतनी होगी। इस मामले में कानून का पेंच ऐसा फंसा कि गुजारा भत्ता पा रही पत्नी कारावास भुगतने पर आ गई है। दूसरी शादी करने पर महिला का गुजारा भत्ता भी गया और जेल की सजा भी हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने द्विविवाह को गंभीर अपराध मानते हुए नए जोड़े को छह-छह महीने की साधारण कैद और दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा सिर्फ अदालत उठने तक की कैद को बहुत कम सजा माना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आइपीसी की धारा 494 (द्विविवाह) का अपराध गंभीर अपराध है। इसमें सात साल तक की सजा का प्रविधान है। ऐसे में दोषी को अदालत उठने तक कैद की सजा दिया जाना बहुत कम दंड है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजा अपराध की तुलना में और अपराध के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए दी जानी चाहिए।

पति पत्नी को बारी-बारी से कैद भुगतने का दिया आदेश 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने नए जोड़े के बच्चे की आयु सिर्फ छह वर्ष देखते हुए पति पत्नी को बारी-बारी से कैद भुगतने का आदेश दिया है। आदेश के मुताबिक पहले पति समर्पण करेगा और उसकी सजा पूरी होने के बाद पत्नी सजा भुगतेगी।यह आदेश न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और संजय कुमार की पीठ ने महिला के पहले पति की याचिका पर सुनाया है।

हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

इस मामले में पहले पति बाबा नटराजन प्रसाद ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने नए जोड़े को द्विविवाह का दोषी तो माना था, लेकिन निचली अदालत द्वारा दी गई एक-एक वर्ष के कारावास की सजा घटाकर अदालत उठने तक की कैद में तब्दील कर दी थी। हालांकि हाई कोर्ट ने जुर्माने की राशि दो-दो हजार से बढ़ाकर 20-20 हजार रुपये कर दी थी।

महिला ने पहली शादी के रहते हुए की दूसरी शादी

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि साक्ष्य देखने से स्पष्ट है कि महिला ने पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी कर ली और एक बच्चा भी पैदा कर लिया। परिस्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि हाई कोर्ट ने गैरजरूरी उदारता दिखाई है। हालांकि, पीठ ने कहा कि निचली अदालत के फैसले के वक्त बच्चा दो वर्ष से छोटा था। आइपीसी की धारा 494 में न्यूनतम सजा का प्रविधान नहीं है और अधिकतम सजा सात वर्ष कैद है। निचली अदालत ने संतुलन कायम रखते हुए एक-एक वर्ष की सजा सुनाई थी।

महिला का बच्चा सिर्फ छह साल का 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब बच्चा छह साल का है। ऐसे में वह दोनों को छह-छह महीने कारावास और दो-दो हजार रुपये जुर्माने की सजा दे रहा है। मामले के मुताबिक पहले पति की तलाक अर्जी कोयंबटूर की परिवार अदालत में लंबित थी और कोर्ट के आदेश पर महिला को पांच हजार रुपये महीने अंतरिम गुजारा भत्ता भी मिल रहा था। लेकिन तलाक से पहले ही महिला ने दूसरी शादी कर ली। पहले पति ने शादी टूटे बगैर दूसरी शादी करने पर अदालत का दरवाजा खटखटाया। मुकदमे में सास-ससुर और दूसरे पति को भी आरोपित बनाया गया।

पत्नी ने 13 जुलाई 2017 तक गुजारा भत्ता लिया

साक्ष्य में सामने आया कि पत्नी ने 13 जुलाई 2017 तक गुजारा भत्ता लिया। नई शादी से नवंबर 2017 में उसे संतान हुई। इसके बाद 22 जनवरी, 2019 को पत्नी ने भी पहले पति से तलाक के लिए अर्जी दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने नए जोड़े को दोषी मानते हुए सजा सुनाई और सास-ससुर को बरी कर दिया। दोनों पक्षों ने इसके खिलाफ सत्र अदालत में अपील की। सत्र अदालत ने जोड़े की अपील स्वीकार करते हुए उन्हें बरी कर दिया। पहला पति आदेश के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट पहुंचा। मद्रास हाई कोर्ट ने नए जोड़े को द्विविवाह का दोषी माना और दोनों को अदालत उठने तक की कैद की सजा सुनाई। हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ पहला पति सुप्रीम कोर्ट आया था।

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