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पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के साथ दुर्व्‍यवहार करने में महिलाएं भी पीछे नहीं, पढ़ें हैदराबाद का ताजा मामला

स्कूल प्रशासन को याद रखना होगा कि किसी भी स्कूल के नियम छात्रओं के सम्मान से बढ़कर नहीं हो सकते हैं। हिलाओं को पुरुषों से कहीं अधिक नुकसान पुरुषवादी सोच वाली महिलाओं से है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के साथ र्दुव्‍यवहार करने में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।

By Pooja SinghEdited By: Updated: Sat, 20 Nov 2021 10:14 AM (IST)
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पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के साथ र्दुव्‍यवहार करने में महिलाएं भी पीछे नहीं, पढ़ें हैदराबाद का ताजा मामला
सुनीता मिश्र। आमतौर पर पुरुषों को महिलाओं के उत्थान में रोड़ा माना जाता है और उनकी संकीर्ण मानसिकता के लिए उन्हें कोसा जाता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है। महिलाओं को पुरुषों से कहीं अधिक नुकसान पुरुषवादी सोच वाली महिलाओं से है। हालांकि यह सुनने में अजीब लगता है, परंतु पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के साथ र्दुव्‍यवहार करने में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।

बीते दिनों हैदराबाद के सेंट एंड्रयूज स्कूल में परीक्षा में नकल करने के संदेह पर एक 15 वर्षीय दलित छात्र के सम्मान के साथ किया गया खिलवाड़ इसका हालिया उदाहरण है। वह छात्र मासिक धर्म के दौरान परीक्षा देने गई थी। परीक्षा के दौरान उसे दो बार वाशरूम जाना पड़ा। महिला शिक्षक को उस पर नकल करने का शक हुआ। वह एक महिला सफाई कर्मचारी के साथ छात्र को वाशरूम ले गई। फिर वहां उसकी गलत तरीके से तलाशी ली गई। शर्मसार करने वाली यह घटना उस स्थान पर हुई जहां लड़कियों को शिक्षा और मूल्य सिखाए जाते हैं। स्वाभाविक है कि वह असहज करने वाला अनुभव उस छात्र को न मालूम कब तक सताता रहेगा। अफसोस की बात यही कि यह ऐसा कोई पहला मामला नहीं थी।

शक के आधार पर प्रताड़ित करना स्वीकार्य नहीं

वर्ष 2020 में गुजरात के भुज में भी ऐसी ही घटना सामने आई थी। वहां एक गल्र्स कालेज के बाहर सैनिटरी पैड मिलने के बाद लड़कियों की अशोभनीय ढंग से तलाशी ली गई थी। वहां भी यह कृत्य एक महिला प्रिंसिपल द्वारा ही किया गया था। स्कूली प्रशासन को यह याद रखना होगा कि किसी भी स्कूल के नियम छात्रओं के सम्मान से बढ़कर नहीं हो सकते हैं। शक के आधार पर उन्हें प्रताड़ित करना स्वीकार्य नहीं हो सकता। यह स्कूली नियमों के तहत भी गलत है। बेटियां स्कूल आना चाहती हैं। पढ़ना चाहती हैं। देश में फैली कुरीतियों को खत्म कर समाज को नई दिशा देना चाहती हैं। ऐसे में यदि उनके साथ ऐसा र्दुव्‍यवहार होगा और उनके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाई जाएगी तो क्या वे भीतर से टूट नहीं जाएंगी? जब इस प्रकार के व्यवहार की घटनाएं महिलाएं देखती, सुनती या पढ़ती होंगी तो क्या वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजने से नहीं डरेंगी?

बेटियों को सबसे सुरक्षित स्कूल और कालेज में ही माना जाता है। अगर वहां भी वे असुरक्षा के भाव से ग्रस्त रहेंगी तो कौन माता-पिता उन्हें पढ़ने के लिए भेजना चाहेंगे। यदि किसी छात्र पर अनुचित साधनों के प्रयोग का संदेह है तो उससे निपटने के भी शालीन तौर-तरीके हैं, लेकिन अक्सर उन्हें अपनाया नहीं जाता। ऐसी घटनाओं पर तब तक विराम नहीं लगेगा, जब तक स्कूल और कालेज प्रशासन इस पर सख्त रवैया नहीं अपनाएगा। इसकी जांच होनी चाहिए और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि फिर से शिक्षा के मंदिर में बेटियों के साथ इस तरह का र्दुव्‍यवहार करने की कोई घटना सामने न आए।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)