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लिव-इन-रिलेशन में रहने वाली महिलाएं भी घरेलू हिंसा का मामला दायर कर सकती हैं: केरल उच्च न्यायालय

एक मामले की सुनवाई करते हुए केरल हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जो महिलाएं लिव-इन रिलेशनशिप में हैं वह भी घरेलू हिंसा के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने कहा कि जिस पुरुष के साथ महिला का घरेलू संबंध था उसके हाथों किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार वह डीवी अधिनियम के तहत मामला दर्ज करा सकती है।

By Jagran NewsEdited By: Shalini KumariUpdated: Tue, 15 Aug 2023 01:27 PM (IST)
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लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं को लेकर केरल HC का फैसला

केरल, ऑनलाइन डेस्क। एक मामले की सुनवाई के दौरान केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि एक महिला जो लिव-इन रिलेशनशिप में है, वह भी घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (डीवी अधिनियम) के तहत घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कर सकती है।

लिव-इन रिलेशन वाली महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकायत...

न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और पीजी अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा कि जिस पुरुष के साथ महिला का घरेलू संबंध था, उसके हाथों किसी भी प्रकार की हिंसा की शिकार वह 'डीवी अधिनियम' के तहत मामला दर्ज करा सकती है।

घरेलू संबंध की बहुत-सी परिभाषाएं

पीठ ने यह भी कहा कि अधिनियम घरेलू संबंध को दो व्यक्तियों के बीच के रिश्ते के रूप में परिभाषित करता है, जो किसी भी समय एक साझा घर में एक साथ रहते हैं या रहते हैं, चाहे वो विवाह, गोद लेने जैसे किसी रिश्ते के माध्यम से संबंधित हो या संयुक्त परिवार में परिवार के सदस्य रूप में एक साथ रह रहे हों।

डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत दर्ज कर सकते हैं शिकायत

बार एंड बेंच में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा, "उपरोक्त परिभाषाओं से, यह संभव है कि केवल एक महिला डीवी अधिनियम के तहत राहत चाहती है। इसके अलावा, विवाह की प्रकृति के रिश्ते में रहने वाली महिला भी डीवी अधिनियम के तहत राहत पाने के लिए पात्र है। अधिनियम, विवाह की प्रकृति में किसी रिश्ते में रहने वाली महिला, दूसरे शब्दों में, लिव-इन-रिलेशनशिप में भी रहने वाली महिला डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन दायर कर सकती है।"

अदालत एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी। दरअसल, याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित एक मामले को पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित करना चाहता था।

सिविल अदालत में भेजना हो सकता है हानिकारक

यह देखते हुए कि डीवी अधिनियम भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत महिलाओं के अधिकारों की अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया है, उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर महिला जिस व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराती है, उसे पारिवारिक अदालत या सिविल अदालत में स्थानांतरित करने की अनुमति दी जाती है, तो यह उसके लिए हानिकारक होगा।

कोर्ट ने अपील को किया खारिज

अदालत ने यह भी कहा कि यदि धारा 12 के तहत एक आवेदन परिवार अदालत में स्थानांतरित करने के लिए उत्तरदायी है, तो यह एक वर्गीकरण होगा, क्योंकि एक परिवार अदालत को केवल विवाह के पक्षों के बीच विवादों पर विचार करने का अधिकार है। इससे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को छोड़ दिया जाएगा।

इन कारणों से, न्यायालय ने माना कि डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत एक आवेदन को मजिस्ट्रेट से पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही, कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।