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ममता ने पकड़ लिया था SP सांसद का कॉलर, 'लालू के लोग' वाले राजनीति प्रसाद ने तो सभापति पर फेंकी थी बिल की कॉपी

Women Reservation Bill in Parliament नए संसद भवन में पहले दिन की कार्यवाही में पीएम मोदी ने अपने संबोधन में महिला आरक्षण बिल की पुरजोर समर्थन किया। पीएम के भाषण के बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को लोकसभा में पेश किया। हालांकि पहले भी कई बार इसे पेश किया गया लेकिन हर बार हंगामे और विरोध के कारण इसे पारित नहीं किया जा सका।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Tue, 19 Sep 2023 03:41 PM (IST)
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27 सालों तक यूं ही नहीं लटका बिल
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। नए संसद भवन में पहले दिन की कार्यवाही में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) की पुरजोर समर्थन किया। पीएम मोदी के भाषण के बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) को लोकसभा में पेश किया। 

गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी है। इस बिल को दोनों सदनों से पारित किए जाने और कानून बनने के बाद लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 181 हो जाएगी।

एक बार फिर चर्चा में आने वाला यह महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) पहली बार पेश नहीं किया गया है, बल्कि इससे पहले भी कई बार इसे पटल पर पेश किया गया, जिस दौरान कई अराजक दृश्य देखने को मिले।

दरअसल, महिलाओं के लिए संसद में सीटें आरक्षित करने के लिए इस विधेयक को 1996 में एचडी देवेगौड़ा (H. D. Deve Gowda) के नेतृत्व वाली सरकार ने सबसे पहले पेश किया था। इस प्रयास के बाद कई बार सरकारों ने इसे पारित करने के लिए पेश किया है, लेकिन हर बार विरोध और सर्वसम्मति न बन पाने के कारण इसे पास नहीं किया जा सका। 

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हालांकि, साल 2008 में यूपीए (UPA) की सरकार में फिर से बिल पेश किया और 2010 में राज्यसभा में इस पर मुहर लग गई, लेकिन इस दौरान भी इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका।  

संयुक्त मोर्चा सरकार ने पेश किया बिल

12 सितंबर, 1996 वो दिन जब पहली बार महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पेश किया गया था। दरअसल, 13 पार्टियों की गठबंधन वाली संयुक्त मोर्चा सरकार के कानून राज्य मंत्री रमाकांत डी खलप ने इस बिल को लोकसभा में पेश किया। हालांकि, इस दौरान गठबंधन में शामिल जनता दल के कई नेता और गठबंधन के कई घटक इस बिल के विरोध में खड़े थे।

इसके अगले दिन सीपीआई की गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त समिति बनाई गई, जिसमें ममता बनर्जी, मीरा कुमार, नीतीश कुमार, शरद पवार, उमा भारती, सुषमा स्वराज समेत 31 सदस्य शामिल थे। इन पैनल ने कई सुझाव दिए, जिनमें से एक था कि महिलाओं को एक तिहाई से कम आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। कई सुझावों के साथ समिति ने दिसंबर 1996 में एक रिपोर्ट पेश की।

इस रिपोर्ट का काफी विरोध हुआ और विरोध करने वालों में उस समय नीतीश कुमार भी शामिल थे। दरअसल, उन्होंने ओबीसी महिलाओं के लिए भी आरक्षण की बात कही थी। इसके बाद कई लोगों के विरोध के बावजूद भी 16 मई, 1996 में विधेयक को चर्चा के लिए लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन फिर सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर ही इसका काफी विरोध हुआ।

संयुक्त मोर्चा की सरकार कई विरोधों के बाद विधेयक पारित नहीं कर सकी और लोकसभा के खत्म होने के साथ ही यह मुद्दा खत्म हो गया।

1998 में पहली बार दिखा अराजक दृश्य

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 1998 से 2004 तक कई बार इस बिल को पारित करने की कोशिश की। इस दौरान 1998 में पहली बार लोकसभा में अराजक दृश्य देखने को मिला था, जब बिल के विरोध में हो रहे हंगामे के बीच राष्ट्रीय जनता दल के सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव ने अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी से विधेयक की प्रतियां छीनी और उसे फाड़कर फेंक दिया।    

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जब ममता बनर्जी ने पकड़ ली कॉलर

ऐसा ही हंगामा उस साल दिसंबर में देखने को मिला। दरअसल, 11 दिसंबर, 1998 को एक बार फिर बिल को पास करने के लिए पेश किया गया। इस दौरान जमकर हंगामा होने लगा और इसी बीच स्पीकर की कुर्सी की ओर जाने से रोकने के लिए टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने समाजवादी पार्टी के सांसद दारोगा प्रसाद सरोज का कॉलर पकड़ लिया। उस दौरान मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) और आरजेडी सांसद रघुवंश प्रसाद (Raghuvansh Prasad Singh) बिल के इतने खिलाफ हो गए थे कि उन्होंने इस गैर-कानूनी तक करार दे दिया था।

नीतीश कुमार का यू-टर्न बना शर्मिंदगी की वजह

इसके बाद 6 मई, 2008 को यूपीए सरकार इस संविधान संशोधन बिल को राज्यसभा में लेकर आई और इसे स्टैंडिंग कमेटी के सामने पेश किया गया। इसके बाद 17 दिसंबर, 2009 को कमेटी ने बिल पर सहमति जताई। अब तक नीतीश कुमार इस बिल का विरोध कर रहे थे, लेकिन यहां उन्होंने यू-टर्न लिया और विधेयक के समर्थन में उतर गए। उस दौरान नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का यह टर्न उनके पार्टी के वरिष्ठ सहयोगी शरद यादव (Sharad Yadav) के लिए एक बड़ा झटका था, जिसके बाद उन्हें काफी शर्मिंदा होना पड़ा था।

इसके दो दिन बाद 9 मार्च, 2010 को बिल राज्यसभा में पेश किया गया, जहां दो-तिहाई बहुमत से यानी 186 वोट के साथ इसे पारित कर दिया गया। जहां इसके पक्ष में 186 वोट पड़े थे, वहीं इसके विरोध में केवल एक किसान नेता शरद जोशी थे।

'लालू के लोग' ने सभापति पर फेंकी बिल की प्रति

इस बिल के पारित होने के एक दिन पहले भी राज्यसभा में जबरदस्त हंगामा देखने को मिला था। दरअसल, उस दौरान सपा के नंद किशोर यादव और कमाल अख्तर तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी की मेज पर चढ़ गए। नंद किशोर ने माइक्रोफोन उखाड़ कर फेंक दिया। इतना ही नहीं, उस दौरान 'लालू के लोग' कहे जाने वाले राजनीति प्रसाद ने तो विधेयक की एक प्रति फाड़कर सभापति पर ही फेंक दी थी। इनके साथ ही सपा के वीरपाल सिंह यादव, लोक जनशक्ति पार्टी के साबिर अली, राजद के सुभाष यादव और निर्दलीय एजाज अली ने भी चर्चा रोकने की कोशिश की।

इस हंगामे के बाद इन सातों सांसदों को अनियंत्रित आचरण के लिए निलंबित कर दिया गया और राज्यसभा बाहर निकाल दिया गया। इसके अलावा टीएमसी ने भी इसके वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और बसपा सांसदों ने वॉकआउट कर लिया।

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लोकसभा में पेश नहीं हो सका बिल

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री की मंजूरी के साथ बिल को साल 2010 में पारित कर दिया गया। हालांकि, इस दौरान यूपीए ने भाजपा और वाम दलों के समर्थन के बावजूद विधेयक को लोकसभा में पास करने की इच्छा नहीं दिखाई, जिसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका था।

गौरतलब है कि कोई भी बिल राज्यसभा में पास हो जाने के बाद समाप्त नहीं किए जाते हैं, इसलिए यह महिला आरक्षण बिल अब तक जीवित है। 

यहां देखें टाइमलाइन

  • संवैधानिक संशोधन के लिए अभियान 1993 में राजीव गांधी की ओर से पेश महिलाओं के लिए आरक्षित ग्राम पंचायत परिषद के एक तिहाई हिस्से के यादृच्छिक आरक्षण के साथ शुरू हुआ था।
  • लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण के लिए एक विधेयक सितंबर 1996 में एचडी देवेगौड़ा सरकार द्वारा संसद में पेश किया गया था, लेकिन सफलता नहीं मिली।
  • वाजपेयी सरकार ने भी इस पर जोर दिया, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ।
  • मनमोहन सरकार ने विधेयक को राज्यसभा में पेश किया, जिसे मार्च 2010 में पारित कर दिया गया, लेकिन कुछ क्षेत्रीय दलों के विरोध के बीच हुआ, जिसके नेताओं ने विधेयक की प्रतियां फाड़ दीं।
  • राज्यसभा की मंजूरी मिलने के बाद भी इसे लोकसभा में लंबित छोड़ दिया गया और 2014 में लोकसभा विघटन के साथ ही यह समाप्त हो गया।
  • भाजपा ने 2014 और 2019 में भी महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया था। अब, 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है।
  • वर्तमान में, लगभग 14% भारतीय सांसद महिलाएं हैं। गौरतलब है कि यह अब तक का सबसे अधिक प्रतिशत है, लेकिन इसके बाद भी पड़ोसी देश नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश की तुलना में लोकसभा में महिलाओं का प्रतिशत कम है।
  • इस विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने के दौरान सभी की निगाहें राजद और समाजवादी पार्टी जैसे दलों पर होंगी, क्योंकि इन पार्टियों ने 2010 में विधेयक का पुरजोर विरोध किया था।