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महिलाओं ने चीरा पहाड़ का सीना, बंजर खेतों में हरियाली लौटी

यह जल संरक्षण से लेकर खेती किसानी के दौरान खेतों में सिंचाई की व्यवस्था भी महिलाओं की देखरेख में ही होती है। किस खेत में कितना पानी देना है और कब देना है, यह उनके ही जिम्मे है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 26 Dec 2017 10:14 AM (IST)
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महिलाओं ने चीरा पहाड़ का सीना, बंजर खेतों में हरियाली लौटी

बिलासपुर (राधाकिशन शर्मा)। मस्तूरी ब्लॉक का ग्राम खोंदरा चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा है। पूरा इलाका पानी की किल्लत से जूझता था। बारिश का पानी भी व्यर्थ चला जाता था। पानी न होने से खेती-बाड़ी पर बुरा असर पड़ रहा था, लेकिन गांव की 70 महिलाओं ने साझा प्रयास कर वर्षा जल के संरक्षण का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसके लिए उन्हें पहाड़ का सीना चीरना पड़ा। 

महिलाओं द्वारा पांच एकड़ में बनाए गए तालाब ने अब पानी की किल्लत को खत्म कर दिया है। बारिश के पानी को पहाड़ से गांव में लाने के लिए इन महिलाओं ने तीन साल तक खूब मेहनत की। इसके लिए एक हजार फीट की ऊंचाई पर चढ़कर पहाड़ को काटा और पाइप लाइन बिछाई। 20 फीट गहरी सुरंग भी खोदनी पड़ी। सुरंग खोदने के दौरान कठिनाइयां भी आई, लेकिन हार नहीं मानी। 70 महिलाओं के इस जज्बे ने वर्षों से बंजर पड़े खेतों में हरियाली लहलहा दी है।  छत्तीसगढ़ के बिलासपुर क्षेत्र के इस गांव में रहने वालों के लिए बारिश का मौसम किसी मुसीबत से कम नहीं।

यह गांव चारों तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसके कारण जब बारिश का पानी पहाड़ से नीचे गिरता तो इसकी रफ्तार भी काफी तेज होती। तब इसे सहेजना काफी मुश्किल काम होता। बारिश का पानी पहाड़ से नीचे उतरता और नालों के जरिए नदी में चला जाता। अभिशाप कहें या फिर ग्रामीणों की नाकामी कि भारी बारिश के बाद भी खेत प्यासे रह जाते थे। अकाल के कारण यहां भुखमरी की स्थिति बनी रहती थी। बंजर पड़े खेतों को देखकर महिलाओं ने अपने दम पर कुछ करने की ठानी।

बस फिर क्या था। देखते ही देखते ही सखी महिला समूह के बैनर तले महिलाएं एकजुट हो गर्इं। सखी महिला समूह की हेमलता साहू ने एफ्रो नामक संस्था से संपर्क किया, जो इस तरह का काम करती है। संस्था के तकनीकी अधिकारियों ने खोंदरा पहुंचकर सर्वे किया। उन्होंने महिलाओं को बताया कि पहाड़ के पानी को किस तरह तालाब में सहेजा जा सकता है। योजना सामने थी। इस काम के लिए जरूरी संसाधन जुटाने थे। महिलाओं ने रोजी-मजदूरी से मिलने वाली राशि में से आधी रकम को जमा करना शुरु किया।

सखी बैंक से एक लाख रुपये कर्ज भी लिया। अब बारी थी पहाड़ से लड़ने की। लेकिन महिलाओं की दृढ़ इच्छा श्ाक्ति के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो उठा। एक हजार फीट की ऊंचाई पर चढ़कर महिलाओं ने पहाड़ की छाती को चीरना शुरु किया।

डेढ़ साल तक 70 महिलाओं की टीम ने हाड़तोड़ मेहनत की। पहाड़ की ढलान के साथ-साथ गहरी नालियां बनाई गईं, जिन्हें बड़े पाइपों से जोड़ा गया, ताकि बारिश का पानी इनके जरिये नीचे आए। पाइप लाइन बिछाने के बाद नौ फीट गहरी सुरंग भी खोदी। 

इसमें भी प्लास्टिक की पाइप लाइन बिछाई। जिसे तालाब तक पहुंचाना था। पाइप लाइन के जरिए एक हजार फीट की ऊंचाई से गिरने वाले पानी को एक जगह पर इकठ्ठा करने के लिए पांच एकड़ का तालाबनुमा गड्ढा खोदा गया। इस बड़े तालाब में पानी को सहेजने के बाद एक दर्जन छोटे तालाब भी बनाए गए। इस पूरे काम में तीन साल का वक्त लग गया। तीन साल बाद अब खोंदरा के बंजर खेतों में हरियाली लौट आई है।

जल प्रबंधन की जिम्मेदारी भी महिलाओं के हाथ में

यह जल संरक्षण से लेकर खेती किसानी के दौरान खेतों में सिंचाई की व्यवस्था भी महिलाओं की देखरेख में ही होती है। किस खेत में कितना पानी देना है और कब देना है, यह उनके ही जिम्मे है। मवेशियों और निस्तार के लिए अलग-अलग तालाब की व्यवस्था की गई है। दूरस्थ वनांचल ग्राम होने और महिलाओं के कम पढ़े लिखे होने के बावजूद यहां स्वास्थ्य के प्रति सजगता देखते ही बनती है।

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