देश में ई-कचरे के कलेक्शन और रीसाइकिलिंग के रीयल टाइम डाटाबेस को करना होगा मजबूत, एक्सपर्ट व्यू
E-Waste Management ग्लोबल ई-वेस्ट मानीटर 2020 रिपोर्ट के अनुसार 2019 में दुनिया में लगभग 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा निकला। इस दशक के अंत तक यह 7.4 करोड़ मीट्रिक टन हो जाएगा। ई-वेस्ट प्रबंधन को ईएसजी और पर्यावरणीय पहल में शामिल किया जाना चाहिए।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 16 Nov 2022 10:13 AM (IST)
डा. हरवीन कौर। E-Waste Management हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में जैसे-जैसे इलेक्ट्रानिक एवं डिजिटल सेवाओं पर निर्भरता बढ़ी है, उसी अनुपात में इलेक्ट्रानिक कचरे यानी ई-वेस्ट का अंबार भी बढ़ता जा रहा है। ऐसी इलेक्ट्रानिक वस्तुएं जो उत्पादकता खत्म होने अथवा तकनीकी खराबी की वजह से उपयोग में नहीं लाई जाती हैं, ई-कचरे का रूप ले लेती हैं। देश में ई-कचरे का प्रबंधन स्वच्छ भारत, स्मार्ट सिटी और डिजिटल इंडिया अभियान का अहम हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ग्लोबल ई-वेस्ट मानीटर, 2020 रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में दुनिया में लगभग 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा निकला। इस दशक के अंत तक यह 7.4 करोड़ मीट्रिक टन हो जाएगा।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक वित्त वर्ष 2019-20 में देश में 10,14,961.2 टन ई-कचरा निकला। दिल्ली में ही अकेले दो लाख टन ई-अपशिष्ट निकलता है। यह देश में निकलने वाले कुल ई-वेस्ट का 10 प्रतिशत है। देश में ई-वेस्ट प्रबंधन पर कई मोर्चों पर काम करना होगा। सर्कुलर इकोनमी का पहला उद्देश्य संसाधनों के टिकाऊ उत्पादन और खपत से है। लोगों को वस्तुओं के इस्तेमाल के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। ई-कचरे के प्रबंधन और निस्तारण की पूरी प्रक्रिया में ई-कचरे का कलेक्शन, रीसाइकिलिंग और री-मैन्यूफैक्चरिंग अहम है। इसके लिए सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र को संयुक्त रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा।
ई-कचरे के प्रारंभ से अंत तक निस्तारण की जिम्मेदारी
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत ई-वेस्ट प्रबंधन नियम-2022 का मसौदा ई-कचरे के प्रबंधन में उत्पादकों, रीसाइकिलिंग संस्थाओं, नियामकों सभी की भागीदारी तय करता है। हालांकि अभी देश में रीसाइकिलिंग कंपनियों की संख्या बहुत कम है। नए नियमों में ई-कचरे की श्रेणी 21 से बढ़ाकर 95 कर दी गई है। नए ड्राफ्ट के मुताबिक अब ब्रांड या उत्पादक को अपने उत्पादों का एक अनुपात उनकी उत्पादकता (उपयोगिता) खत्म होने के अंत में वापस लेना होगा। ऐसा करने के लिए उन्हें प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी आर्गेनाइजेशन (पीआरओ) नियुक्त करने का विकल्प दिया गया है। इस व्यवस्था में पीआरओ को ई-कचरे के प्रारंभ से अंत तक निस्तारण की जिम्मेदारी दी जाती है। एक तरह से उत्पादकों की ओर से पीआरओ ई-कचरे का कलेक्शन, ट्रांसपोर्टेशन और रीसाइकिलिंग करते हैं। भारत में मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री के लिए पीआरओ माडल भले ही नया हो, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसे अपनाया जा रहा है।
स्विट्जरलैंड, जर्मनी, आस्ट्रिया, नीदरलैंड और स्कैंडेनेवियन देशों ने ई-कचरे के निस्तारण में इसे सर्वोत्तम प्रथा में तब्दील किया है। विज्ञानी छोटे इलेक्ट्रानिक कचरे को सबसे बड़ी चुनौती मान रहे हैं। छोटे ई-अपशिष्ट श्रेणी में वे इलेक्ट्रानिक वस्तुएं आती हैं, जो बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल नहीं होती हैं। सेलफोन, इलेक्ट्रिक टूथब्रश, टोस्टर, कैमरा आदि इस श्रेणी में आते हैं। हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा रहने वाले इन इलेक्ट्रानिक उपकरणों में खराबी आने पर ये कूड़ेदान से होते हुए मिट्टी के नीचे या समुद्र में पहुंचते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक 2019 में विश्व में 2.2 करोड़ टन छोटे आकार के ई-वेस्ट निकले। यह इस अवधि में निकले 5.7 करोड़ टन ई-वेस्ट का 40 प्रतिशत है। 2030 तक तीन करोड़ टन छोटे आकार के ई-वेस्ट निकलने का अनुमान है। अक्सर छोटे आकार के ई-कचरे को खुले में जला दिया जाता है। इससे हवा में जहरीले पदार्थ पहुंचते हैं।