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कभी भारत से ही बंदी बनाकर विदेशों में ले जाए गए थे रोमा समुदाय के लोग, जानें इनकी पूरी कहानी

दुनियाभर में मशहूर चार्ली चैपलिन और पिकासो की जड़ें भारत से जुड़ी हैं। इतना ही नहीं भारत से जुड़ने वालों में कई और बड़े नाम हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 29 Nov 2018 12:34 PM (IST)
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कभी भारत से ही बंदी बनाकर विदेशों में ले जाए गए थे रोमा समुदाय के लोग, जानें इनकी पूरी कहानी
नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। दिल्ली में 29-30 नवंबर को रोमा सम्मेलन होने जा रहा है। इसमें कई देशों में रहने वाले रोमा प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। सम्‍मेलन में शामिल लोगों को कुछ सांसद भी हैं। लेकिन रोमा समुदाय को लेकर हम काफी कुछ नहीं जानते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि दुनिया भर में फैले इस समुदाय की जड़ें भारत में बसी हैं। कभी इन्‍हें घूमंतु जाति के लोग कहा जाता था जो हथियारों के कुशल कारीगर हुआ करते थे। वर्षों पहले जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था तब अंग्रेज इन लोगों को विभिन्‍न देशों में अपनी सहूलियत और हथियारों के निर्माण के लिए लेकर गए थे।

हालांकि, इसके बारे में कुछ इतिहासकार मानते हैं सिंकदर हथियारों के निर्माण के लिए इन लोगों को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया था। कुछ के मुताबिक महमूद गजनवी ने इन्‍हें हथियारों के निर्माण के लिए बंदी बनाया और अपने साथ ले गया। शोधकर्ता इनकी संख्‍या करीब 20 हजार मानते हैं। समय के साथ यह लोग वहीं बस गए, कुछ ऐसे भी थे जिन्‍होंने दूसरे देशों को अपना घर बना लिया। लेकिन इसके बाद भी यह अपनी जड़ों से किसी न किसी तरीके से जुड़े रहे। आज यह दुनिया के कई देशों में रह रहे हैं। अंतरराष्‍ट्रीय रोमा सम्‍मेलन के भारत में होने से इन लोगों को एक बार फिर अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका मिल रहा है।

दो दिवसीय यह सम्‍मेलन राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित किया जाएगा। इसमें 35 से अधिक रोमा स्कॉलर्स भाग लेंगे। इसके अलावा रोमा मूल के कई देशों के सांसदों की भी इस सम्मेलन में उपस्थिति रहेगी। इसके बाद इन स्कॉलर्स का उत्तर प्रदेश का दौरा होगा। माना जाता है कि रोमा समुदाय का राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले से जुड़ाव है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि सबसे पहला रोमा सम्मेलन 1976 में चंडीगढ़ में हुआ था। इसके बाद 1983, 2001 और 2008 में सम्मेलन हुए। यह पांचवां रोमा सम्मेलन होने जा रहा है।

वर्तमान में रोमा समुदाय के 30 से अधिक देशों में 20 करोड़ से अधिक लोग है। रोमानिया व बुल्गारिया की जनसंख्या में इनकी भागेदारी 12 फीसद तक है। अमेरिका व आस्ट्रेलिया तक में भी इनकी मौजूदगी है। रोमा ने कई चर्चित नाम दिए जिसमें मशहूर पेंटर पिकासो, हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिनसमेत खिलाड़ी, गायक व अन्य हैं। रोमा समुदाय के पलायन के एक हजार साल पूरे होने पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद (एआरएसपी) द्वारा राष्ट्रीय संग्रहालय व भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आइसीसीआर) के सहयोग से यह दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है।

इस समुदाय के बारे में यहां तक कहा जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यहूदियों के बाद यदि किसी समुदाय को नाजियों की क्रूरता का सर्वाधिक शिकार होना पड़ा था तो वह यही समुदाय था। इस दौरान हिटलर के शिविरों में तकरीबन 20 लाख रोमा लोगों की हत्या की गई थी। इसके बावजूद रोमा लोगों ने अपनी परंपराओं को सुरक्षित रखा है। माना जाता है कि इनमें भारत की डोम, बंजारा, गुर्जर, सांसी, चौहान, सिकलीगर, डागर आदि जातियों के लोग हैं।

वर्तमान में अलग-अलग देशों में बसे होने के कारण इन्‍हें अलग अलग नामों से पुकारा जाता है। मसलन, जर्मनी में इन्हें जिग्यूनर, तो फ्रांस में मानुस या त्सिजेन्स नाम से जाना जाता है। जबकि स्वीडन में ततारा, स्पेन में गितानो, टर्की व ग्रीस में त्शिंगन, रूस, बल्गारिया व रोमानिया में त्सिगन तथा ब्रिटेन में जिप्सी के रूप में इन्‍हें जाना जाता है। कई रोमा ने कला, संगीत, विज्ञान, खेलकूद व राजनीति में वैश्विक पहचान बनाई। इनमें पाब्लो पिकासो, अंतोनियो सोलारियो, चार्ली चैपलिन, इली नताशे, एल्विस प्रेस्ले जैसे नाम शामिल हैं।

रोमा समुदाय के लोगों के भारतीय मूल के होने की सिर्फ एक ही वजह नहीं है बल्कि इनके रीति-रिवाज, रहन-सहन और बोली-भाषा को देखते हुए भी इतिहासकारों इनकी जड़ों को भारत का ही मानते हैं। कुछ का ये भी मानना है कि उनके पूर्वज करीब डेढ़ हजार साल पहले भारत के विभिन्‍न हिस्‍सों में रहे थे जिन्‍हें आज राजस्थान, सिंध और पंजाब के नाम से जाना जाता है। 15वीं सदी तक पूरे यूरोप में फैल गए। 'करंट बायोलॉजी' नाम की मैगजीन में छपी एक रिसर्च में भी प्रमाणित किया गया है कि इनका संबंध भारत के उत्तर और उत्तर पश्चिम इलाके से था।