World Ozone Day: पृथ्वी के वातावरण में मौजूद एक ऐसी परत जिसके ना होने से खत्म हो सकती है मानव सभ्यता
धरती को बचाना है तो हम सभी को मिलकर खराब होती जा रही ओजोन परत को भी सुरक्षित बनाए रखने के लिए काम करना होगा। इसके न होने की सूरत में धरती भी नहीं रहेगी। ये धरती पर आने वाली करीब 98 फीसद अल्ट्रावायलेट किरणों को सोख लेती है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 16 Sep 2022 11:26 AM (IST)
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। World Ozone Day: धरती को बचाने के लिए वैज्ञानिक आज जितने चिंतित दिखाई दे रहे हैं यदि वही चिंता पहले कर ली गई होती तो मुमकिन है कि धरती पर संकट के बादल नहीं मंडरा रहे होते। क्लाइमेट चेंज को लेकर आज धरती के हर कोने में चिंता देखी जा रही है। इस बार इसका असर प्रत्यक्ष रूप से इंसानों ने देखा है और कई जगहों पर झेला भी है। इसके बाद भी वो धरती को बचाने के लिए कितना सजग है ये कहना अब भी काफी मुश्किल है। जंगलों में लगती आग, भीषण सूखा, पानी की कमी या कहीं अत्यधिक बारिश का होना, अनाज की कमी, पानी के जलस्तर का बढ़ना, पशु पक्षियों की प्रजातियां का लुप्त होना, ये सभी हमारे सामने वो प्रत्यक्ष कारण है जो हमें भविष्य में आने वाले भीषण तूफान का संकेत दे रहे हैं।
धरती का तापमान कम करने की बात हम सभी ने सुनी है। लेकिन इससे क्या होगा? ये एक ऐसा सवाल है जो हमारे भी मन में कई बार जरूर उठता होगा। इसका जवाब हमें पता होने के बाद भी हम इससे अनजान बने रहने की गलती करते हैं। यही गलती हमें धरती के ऊपर बनी उस परत को नुकसान पहुंचाने के लिए उकसाती है जिसको हम अनजाने में ही सही लेकिन कर बैठते हैं। जी, हां हम बात कर रहे हैं उस ओजोन लेयर की जो इस हमारी आपकी प्यारी सी पृथ्वी के ऊपर मौजूद है। आपको बता दें कि आज वर्ल्ड ओजोन डे (World Ozone Day 2022) भी है।
कुछ खास तथ्य
- ये ओजोन परत धरती पर आने वाली सूरज की खतरनाक अल्ट्रावायलेट किरणों से हमारी रक्षा करती है। इसको हम काफी नुकसान पहुंचा चुके हैं। अल्ट्रावायलेट किरणों के धरती पर आने से कई तरह की परेशानियां होती हैं। ये धरती और इस पर रहने वाले इंसानों पर प्रतिकूल असर डालती हैं।
- इसको होने वाले नुकसान से फसलें खराब हो जाती हैं। शरीर पर स्किन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। इस ओजोन परत के बारे में आप और हम बहुत कुछ नीं जानते हैं।
- आपको बता दें कि धरती के ऊपरी हिस्से में कई अलग-अलग परतें हैं। इसमें सबसे पहले Troposphere है जो 10 किमी के ऊपर मौजूद है। इसके बाद अगली परत Stratosphere जो 10-50 किमी की ऊंचाई पर शुरू हो जाती है। यहां पर ही होती है ओजोन परत।
- अंतरिक्ष से आने वाली करीब 98 फीसद अल्ट्रावायलेट किरणों को ये अपने अंदर सोख लेती है और धरती पर इनहें आने से रोकती है।
- अल्ट्रावायलेट किरणों के धरती पर आने से समुद्री जीवन, इंसान और फसलों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
- Stratosphere के अंदर ही विमान भी उड़ते हैं। इसके बाद Mesophere और फिर Thermosphere होती है जहां पर इंसान की बनी सैटेलाइट्स चक्कर लगाती हैं। आखिर में Exosphere होती है जहां पर राकेट या स्पेस शटल जा पाते हैं।
- ओजोन लेयर की खोज सबसे पहले 1839 में जर्मन वैज्ञानिक क्रिस्चियन फ्रैडरिक स्कोनबेन ने की थी।
- 1913 में फ्रांस के वैज्ञानिक चार्ल्स फैब्री और हैनरी बूसोन ने पहली बार इसकी ऊंचाई के बारे में दुनिया को जानकारी दी थी। इसलिए ही ओजोन की पहली खोज के लिए इन दोनों का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
- 1970 में वैज्ञानिकों ने पहली बार पता लगाया था कि क्लोरोफ्लोरो कार्बन से इस परत को नुकसान पहुंच रहा है।
- अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन की परत में छेद (Ozone Hole) होने की बात 1985 में ही सामने आ चुकी है। आर्कटिक में भी इस तरह की शुरुआत हो चुकी है।
- ओजोन एक Pale Blue रंग की गैस होती है। इसको परत को ओजोन का नाम स्कोनबेन ने ही दिया था। ये एक ग्रीक भाषा का शब्द Ozein है जिसका अर्थ होता है गंध।
- इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज के बारे में पढ़ने के दौरान उन्हें वैल्डिंग के दौरान जब तेज गंध आई थी तभी उन्होंने इसका नाम ओजोन रखा था।
- 1860 में पहली बार स्विस वैज्ञानिक जीन लुइस ने इसके कांपोनेंट्स की जानकारी दुनिया को दी थी।