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World Suicide Prevention Day: भारत में 15 से 29 वर्ष के लोग लगा रहे मौत को गले

आत्महत्या शब्द दहलाता है दिल को डराता है लेकिन उनका क्या जिन्होंने अपने प्रियजन को खोया। उनके दर्द को शायद कोई नहीं समझ सकता लेकिन वे दूसरों का दर्द समझ रहे हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 10 Sep 2019 12:12 PM (IST)
World Suicide Prevention Day: भारत में 15 से 29 वर्ष के लोग लगा रहे मौत को गले
नई दिल्‍ली [यशा माथुर]। World Suicide Prevention Day 2019: रात के करीब पौने नौ बजे थे कि राशि ठकरान को अचानक अपने पिता की जोर से रोने की आवाज सुनाई पड़ी। वे कह रहे थे कि 'राघव नहीं रहा'। उनके शब्द हमेशा के लिए राशि के दिल में चुभ गए। छह जनवरी, 2019 को राशि के छोटे भाई राघव ने आत्महत्या कर ली थी। वह मात्र 18 वर्ष का था और राशि का बेस्टफ्रेंड। अब 22 साल की इंजीनियर राशि ने आत्महत्याएं रोकने के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय से एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन बनाने की मांग की है और उनके इस ऑनलाइन अभियान को अब तक करीब एक लाख, साठ हजार लोगों का समर्थन मिल चुका है।

परेशान व्यक्ति बात करे तो किससे?
राशि को जब अपने भाई के खो जाने का दर्द महसूस हुआ तो उन्हें लगा कि उनके भाई ने किसी से बात क्यों नहीं की? क्यों नहीं उसने हमें बताया कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है? राशि को लगा कि उस समय वह किसी से बात करता तो शायद ऐसा कदम नहीं उठाता और इसलिए उन्हें एक हेल्पलाइन की जरूरत नजर आई। मानसिक स्वास्थ्य पर बात किए जाने पर जोर देते हुए कहती हैं राशि, 'इस साल जनवरी में मेरे भाई ने हमारा साथ छोड़ दिया। यह हमारे लिए बहुत बड़ा सदमा है। उसने किसी से बात नहीं। हमें पता भी नहीं चला कि वह ऐसा कुछ सोच रहा है। अचानक एक दिन वह चला गया। इसके बाद मुझे लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए। मेरे भाई जैसे कितने लोग हैं जो आत्महत्या कर लेते हैं। मुझे सदमे से निकलने में कुछ महीने लगे। लेकिन जब मैंने रिसर्च शुरू की तो मुझे पता लगा कि इस संबंध में हमारे देश की स्थिति बहुत खराब है। कोई मेंटल हेल्थ पर बात ही नहीं करना चाहता।'

एक सरकारी हेल्पलाइन की जरूरत पर बल देते हुए वे कहती हैं, 'अगर परेशान व्यक्ति बात करना भी चाहें तो उन्हें समझ नहीं आता कि किससे बात करें। शायद मेरे भाई को भी लगा होगा कि उसके पास बात करने के लिए कोई नहीं है। ऐसा ही और लोगों को भी लगता होगा इसीलिए मैंने ऑनलाइन मुहिम चलाई है। चेंज डॉट ओआरजी पर मैंने याचिका डाली है। मेरे साथ आए एक लाख साठ हजार लोग चाहते हैं कि एक हेल्पलाइन हो लेकिन अभी सरकार से हमें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला है पर मेरी कोशिश जारी है।' राशि ठकरान सोशल मीडिया पर भी अभियान चला रही हैं और कई संस्थाओं से भी संपर्क कर रही हैं।

आत्महत्या - जीवन भर का दर्द
बेंगलुरु के मुरलीधर आर इस कोशिश में लगे हैं कि किशोर बच्चों पर पढ़ाई और करियर का इतना दबाव न आए कि उन्हें आत्महत्या जैसा क्रूर कदम उठाना पड़े। दरअसल, बारहवीं कक्षा में पढ़ रही उनकी 17 साल की बेटी ने इसी दबाव में अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी। वह नीट पास कर मेडिसिन पढऩा चाहती थी लेकिन पढ़ाई के दबाव ने उनकी बच्ची की जान ले ली। उन्हें वह दिन नहीं भूलता। वे मानते हैं कि बच्चे को खोने से बड़ी त्रासदी और कोई नहीं हो सकती। अब मुरलीधर ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनाने की डिजिटल मुहिम चला रहे हैं, जिसमें 10 प्लस 2, आइआइटी, जेईई, एनईईटी और सीईटी जैसी परीक्षाएं दे रहे बच्चों को दबावरहित शिक्षा मिले। वे कहते हैं, 'जो माता या पिता अपने बच्चे को खो देता है उसका जीवन दुख से भर जाता है। जो छात्र अपनी मर्जी से आत्महत्या कर लेते हैं और अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं उनका परिवार हमेशा के लिए दर्द में चला जाता है। मैं इस बारे में मैं बहुत कुछ करना चाहता हूं लेकिन दर्द से उबर नहीं पा रहा हूं।' एनसीआरबी के आंकड़े यह भी बताते हैं कि देशभर में साल 2014 से 2016 के बीच 26,476 छात्रों ने आत्महत्या की। इनमें 7,462 छात्रों ने आत्महत्या विभिन्न परीक्षाओं में फेल होने के डर से की थी। बच्चों की बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति भारतीय शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े करती है। देश के आइआइटी व आइआइएम जैसे तकनीकी व प्रबंधन के उच्च शिक्षण संस्थानों तक में छात्रों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।

मानसिक स्वास्थ्य एक समस्या है
मुंबई की सृष्टि देश के मीडिया से, विशेषकर चैनल्स से गुजारिश कर रही हैं कि वे आत्महत्या की खबरों को सनसनीखेज न बनाएं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में अपने दर्शकों को जागरूक करें और उन्हें महत्वपूर्ण जानकारियां दें। सृष्टि खुद अवसाद की शिकार हुईं और बहुत मुश्किल से इस अवस्था से निकल पाईं। वे कहती हैं, 'एक समय ऐसा था कि मैं मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं थी। मैं अवसाद में थी। मेरे लिए वह बहुत मुश्किल समय था। अवसाद से बाहर निकलने में मुझे एक साल लगा। जब उस समय के बारे में सोचती हूं तो लगता है कि लोग मानसिक रूप से परेशान लोगों को स्वीकार नहीं करते। जबकि उन्हें बताया जाना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य एक समस्या है और कौन-से हेल्पलाइन नंबर्स काम आ सकते हैं। अगर किसी बच्चे ने पढ़ाई के दबाव के चलते आत्महत्या की है और मीडिया उसे सनसनी बनाता है तो और भी बच्चे सुसाइड कर सकते हैं। इन्हें कॉपीकैट सुसाइड कहते हैं। इसे हम रोक सकते हैं। अगर आत्महत्याओं को मीडिया सकारात्मक तरीके से पेश करे तो उसके सकारात्मक प्रभाव होंगे और अगर उन्हें नकारात्मक ढंग से सामने लाया जाए तो उसके नकारात्मक प्रभाव होंगे।' सृष्टि डिजिटल आंदोलन चला रही हैं और ट्विटर और इंस्टाग्राम पर जागरूकता की बातें करती हैं। अब तक उन्हें 14 हजार लोगों को समर्थन मिला है।

मिलकर काम करना होगा
आज, दस सितंबर को वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे है और इसकी थीम है 'वर्किंग टूगेदर टू प्रिवेंट सुसाइड'। आत्महत्याएं रोकने के लिए मिलकर काम करना आवश्यक है अन्यथा लगातार बढ़ते आंकड़ों को हम देखते ही रह जाएंगे। सृष्टि भी कहती हैं कि यह काम एक आदमी या सरकार नहीं कर सकती। सभी को मिल कर काम करना होगा। जब हम मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना शुरू कर देंगे तो समस्या काफी कम हो जाएगी। जब मैं अवसाद में आई तो काम, माता-पिता के साथ रिलेशनशिप, दोस्ती से जुड़े कई पहलू एक साथ हो गए। उस समय सब खराब हो रहा था। मैं अकेली नहीं थी लेकिन मैं सोचने लगी कि मैं इस दुनिया में अकेली हूं। बहुत सारी चीजें एक के बाद एक गलत होने लगी तो उम्मीदें ही खत्म हो गईं।

एक सरकारी हेल्पलाइन होनी चाहिए
पेशे से इंजीनियर राशि ठकरान के अनुसार, 'मैं सरकार से स्वास्थ्य मंत्रालय से गुहार लगा रही हूं कि आत्महत्याओं को रोकने के लिए एक सरकारी हेल्पलाइन हो जहां आत्महत्या करने की सोच आने पर लोगों को सुना जाए। यहां से हम एक शुरुआत कर पाएंगे। कई बार ऐसा होता है कि मानसिक रूप से परेशान लोग बात नहीं कर पाते हैं। परिवार और दोस्तों से भी अपने मन की बात नहीं कह पाते हैं तो उनके मन में उठते खयालों पर रोक लगाने में एक हेल्पलाइन नंबर कारगर साबित हो सकता है। आप सोचिए कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति किसी से बात करना चाहे और उसके पास कोई ऐसी जगह भी न हो जहां वह मन हल्का कर सके तो उसके मन पर क्या बीतेगी? कुछ लोग तो यह समझ लेते हैं कि कहीं कोई बात करने वाला नहीं है तो मेरा मर जाना ही बेहतर है। मैं चाहती हूं कि मानसिक स्वास्थ्य पर बात हो और लोगों को पता चले कि एक हेल्पलाइन नंबर ऐसा है जहां वे बात कर सकते हैं।'

पढ़ाई का दबाव आत्महत्या का प्रमुख कारण
बेंगलुरू के मुरलीधर का मानना है कि कोचिंग संस्थान बच्चों को डिप्रेस कर देते हैं किशोरों में पढ़ाई का दबाव आत्महत्या का एक प्रमुख कारण है। जिन बच्चों के दसवीं कक्षा में अच्छे नंबर आते हैं वे इंजीनियरिंग या मेडिकल एंट्रेंस के लिए कोचिंग कक्षाओं में पढ़ाई करना चाहते हैं। इंस्टीट्यूट अच्छे पढऩे वाले, 90 प्रतिशत नंबर लाने वाले छात्रों को ही लेते हैं। अपना एंट्रेस टेस्ट करते हैं और उसमें पास होने वाले बच्चों को प्रवेश देते हैं। ग्यारहवीं के बाद फिर एक टेस्ट करते हैं जिसमें पास होने वाले दो सौ, तीन सौ बच्चों में से चार बच्चे छांट कर उन्हें अलग से तैयारी करवाते हैं। ऐसा देख बाकी बच्चों को बहुत झटका लगता है उनमें हीनभावना जन्म ले लेती है और वे डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसके लिए मैं सुझाव दे रहा हूं स्पेशल कोचिंग सभी बच्चों को मिले न कि चुनिंदा को। यह व्यवस्था बच्चों में अवसाद पैदा करती है जिससे पैरेंट्स भी परेशान हो जाते हैं। यह कोचिंग संस्थान पूरी फीस एक साथ ही ले लेते हैं और फिर वापस नहीं करते हैं। इसलिए अगर बच्चे कोर्स छोडऩा भी चाहें तो नहीं छोड़ पाते हैं। इन बच्चों को कोई छुट्टी भी नहीं मिलती। रविवार या किसी अवकाश के दिन भी इनकी कक्षाएं होती हैं। मैं अपनी मुहिम में यह भी कहता हूं एक महीने में दो-या तीन बार छात्र खेलें ताकि उनके मन में जो दबाव है वह बाहर निकल जाए।

खबरों को सतर्कता से प्रसारित करें मीडिया
मुंबई की सृष्टि का मानना है कि खबरों को सतर्कता से प्रसारित करें मीडिया जब आप किसी से कहते हैं कि आपको बुखार है तो वे आगे बढ़ कर आपको दवाई बताएंगे और देंगे भी लेकिन जब आप किसी को बताते हैं कि आप मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं हैं तो उनकी प्रतिक्रिया बहुत ही अजीब होती है। अवसाद के दिनों में मैं मम्मी-पापा को अपनी बात नहीं कह पाई, अपने दोस्तों से डिस्कस नहीं कर पाई। मुझे लगता कि इस टॉपिक पर कोई बात नहीं करना चाहता। एक हिचक है जिसे खत्म होना चाहिए। अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो परिणाम बहुत खतरनाक होंगे। मैं मीडिया को कहना चाहती हूं कि आत्महत्या की खबरों को बहुत ही सतर्कता से प्रसारित करें। वे जब कहते हैं कि पबजी की वजह से आत्महत्या की गई या ब्लूव्हील चैलेंज की वजह से आत्महत्या की, तो वे कारण को बहुत ही सरल कर देते हैं। जबकि व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने के कई गंभीर कारण होते हैं। कारणों को सरल कर देना या फिर मामले को सनसनीखेज बना देना सही नहीं है बल्कि इसे सकारात्मक रूप में लोगों के सामने लाया जाना चाहिए। मीडिया कहे कि इसके लिए आपके पास समाधान है।
 

ईयर ऑफ टॉलरेंस, हैप्पीनेस मनाएं स्कूल
चेन्नई की सुजिता एस का मानना है कि सरकारी स्कूलों में मेंटल हेल्थ लिटरेसी कार्यक्रम नहीं है। शिक्षक प्रशिक्षित नहीं है। मॉड्यूल्स प्रभावी नहीं। सोलह साल से कम उम्र के बच्चों को भी तनाव होता है। बच्चों को स्कूल लेवल पर ही ट्रेनिंग मिलनी चाहिए कि वे इन स्थितियों का कैसे सामना करें। इससे आत्महत्याएं सौ प्रतिशत तो नहीं रुकेंगी लेकिन यदि बच्चों को बचपन से ही प्रशिक्षित किया जाए तो इन्हें पचास प्रतिशत तक रोका जा सकेगा। यह सब कोर्स में होना होगा। जब केमिस्ट्री और ज्योग्रॉफी पढ़ाई जा सकती है तो मेंटल हेल्थ क्यों नहीं? मैं तेलंगाना में स्कूलों से कह रही हूं कि वे ईयर ऑफ टॉलरेंस या ईयर ऑफ हैप्पीनेस मनाएं। बच्चे निबंध लिखेंगे, वाद-विवाद करेंगे तब जानेंगे कि टॉलरेंस क्या है, हैप्पीनेस क्या है? हमें बच्चों को सशक्त बनाना होगा। हमें बच्चों को सिखाना होगा कि अगर परेशान हैं तो अपनी जिंदगी ही नहीं दे देना है। कभी-कभी बच्चों पर पियर प्रेशर भी बहुत हो सकता है। नौवीं कक्षा में पढ़ रही मेरी बहन ने भी काफी समय पहले आत्महत्या की थी। हमें आज तक पता नहीं है कि उसने आत्महत्या क्यों की? हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम आत्महत्याएं रोकें। हम करीब 200 स्कूलों में मेंटल हेल्थ मॉड्यूल लेकर जा चुके हैं।

गुजरात सुसाइड प्रिवेंशन की ब्रांड एंबेसडर होंगी पीवी सिंधु
वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी और यूथ आइकॉन पुसरला वेंकट सिंधु गुजरात सुसाइड प्रिवेंशन की ब्रांड एंबेसडर होंगी। 10 सितंबर को टोल फ्री 108 हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत करेंगी।

आप कर सकते हैं मदद

  • यदि आपको कुछ अलग लगता है तो बातचीत करें।
  • अगर परिवार या दोस्तों में कोई अवसाद में दिखता है तो उसकी काउंसलिंग करवाएं।
  • परिवार में मानसिक स्वास्थ्य को अहम जगह दें।
  • एक ब्रेक लें, लाइफस्टाइल बदलें, योग और ध्यान करें।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आत्महत्या करने वालों में बड़ी तादाद 15 से 29 साल के उम्र के लोगों की है यानी जो उम्र उत्साह से लबरेज होने और सपने देखने की होती है उसी उम्र में लोग जीवन से पलायन कर जाते हैं।

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