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ई-टेंडर के ठेकों का मास्टरमाइंड था यादव सिंह

यादव सिंह सिर्फ छोटे ठेकों का ही नहीं बल्कि ई-टेंडर का भी मास्टरमाइंड माना जाता था। सरकारी कंपनियों को टेंडर जारी कराने के नाम पर भी वह मोटा कमीशन वसूल करता था।

By Jagran News NetworkEdited By: Updated: Sat, 06 Dec 2014 11:48 AM (IST)
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जागरण संवाददाता, नोएडा। यादव सिंह सिर्फ छोटे ठेकों का ही नहीं बल्कि ई-टेंडर का भी मास्टरमाइंड माना जाता था। सरकारी कंपनियों को टेंडर जारी कराने के नाम पर भी वह मोटा कमीशन वसूल करता था। उसके चहेते पचास ठेकेदारों की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी गई। शासन को सात दिन में रिपोर्ट भेज दी जाएगी।

यादव सिंह के करीबी ने बताया कि बड़े ठेकों में आवेदन से पहले ही ठेकेदार तय कर लिया जाता था। ठेका जारी कराने से पहले ही ठेकेदार से कमीशन की पेशकश कर दी जाती। इसके बाद यादव सिंह टेंडर आवेदन के तरीकों को बताता था। इसमें यादव सिंह उन्हीं तीन कंपनी को ही टेंडर जारी करवाता था, जिनमें से एक को ठेका देना होता था।

इनमें से एक कंपनी को किसी तरह से अनफिट व किसी का चेक बाउंस करवा देता था। इसके बाद ई-टेंडरिंग में वह कंपनी ही बचती थी, जिसे ठेका जारी कर दिया जाता था या ठेका जारी करने का अधिकार अपने पास ले लिया जाता था। उसके बाद तो यादव सिंह और ठेकेदार की बल्ले-बल्ले होती थी।

ठेका यादव सिंह की ओर से जारी कर दिया जाता था। इस प्रकार के गणित को सेट करने में यादव सिंह को महारत हासिल थी। इसके लिए वह प्राधिकरण तक ही सीमित नहीं था, बल्कि मेरठ व अन्य सरकारी विभागों तक उसकी तगड़ी पैठ थी। इसमें उसके सबसे करीबी पूरी तरह से सहयोग करते थे और उसके इशारे पर कमीशन वसूली करते थे।

इस सिस्टम के तहत अन्य प्रोजेक्ट इंजीनियर व सीनियर और चीफ मेंटीनेंस इंजीनियर की ओर से भी टेंडर को जारी किया जा रहा था। इसमें टेंडर जारी करने की तिथि तो वही होती थी, लेकिन ठेका उन्हीं को मिलता था, जिन्हें यह लोग खुद चाहते थे। ऐसे में टेंडर जारी होने के अंतिम दिन जॉब संख्या ठेकेदार को अलाट होती थी।

पर्ची पर लिखे जॉब संख्या के आधार पर जिस बैंक से टेंडर फार्म अलाट होता था, उसमें खुल कर बंदर बांट हो रही थी। यहीं नहीं जो इंजीनियर इसमें सीधे नहीं जुड़े थे, उनका हिस्सा भी यादव सिंह की ओर से फिक्स कराया गया था। इसमें प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद बिल पेमेंट तक कमीशनखोरी जारी रहती थी। प्रोजेक्ट में खामियों के लिए एक फीसद ठेकेदार बिल पेमेंट के नाम पर देते थे।

अन्य अभियंता रहते थे नाराज
यादव सिंह के एकछत्र राज से प्राधिकरण के अन्य अभियंता नाराज रहते थे। यादव सिंह की मनमर्जी से ही ठेकेदारों को टेंडर दिए जाते थे। प्राधिकरण के अन्य अभियंताओं की टेंडर वितरण में अधिक सिफारिश नहीं चलती थी। इससे यादव सिंह के प्रति नाराजगी बढ़ने लगी थी। सपा शासनकाल में निलंबन के बाद प्राधिकरण में खुशी का माहौल था।

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