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कर्नाटक चुनाव : शिकारीपुरा में कांग्रेस ने येदियुरप्पा के सामने हथियार डाले

भाजपा की तरफ से कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा के शिकारीपुरा स्थित घर के हर कमरे में काउंटडाउन का बोर्ड लगा है। 4 मई को इस बोर्ड पर काउंटडाउन 8 लिखा था।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 05 May 2018 05:39 PM (IST)
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कर्नाटक चुनाव : शिकारीपुरा में कांग्रेस ने येदियुरप्पा के सामने हथियार डाले

[ओमप्रकाश तिवारी]। भाजपा की तरफ से कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा के शिकारीपुरा स्थित घर के हर कमरे में काउंटडाउन का बोर्ड लगा है। 4 मई को इस बोर्ड पर काउंटडाउन 8 लिखा था। यानी मतदान को 8 दिन बचे हैं। हर कमरे में ये बोर्ड क्यों लगाए हैं ? यह पूछने पर वहां बैठे एक प्रमुख कार्यकर्ता राजशेखर कहते हैं कि यह दिनों की गिनती हम कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए दर्शाई जा रही है। ताकि हमें अहसास रहे कि मतदान के लिए कितने कम दिन बचे हैं।

भाजपा की पुरानी रणनीति

भाजपा की पुरानी रणनीति के तहत बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को जागृत रखने के लिए येदियुरप्पा भले अनेक प्रयास कर रहे हों, लेकिन शिकारीपुरा में उनकी राह कोई मुश्किल नहीं लग रही है। इसलिए इस शिमोगा जनपद के इस विधानसभा क्षेत्र में न तो वह स्वयं प्रचार करने आ रहे हैं। न ही भाजपा के किसी बड़े नेता की कोई सभा यहां लगी है। फिलहाल इसी क्षेत्र से विधायक येद्दयूरप्पा के ज्येष्ठ पुत्र राघवेंद्र ने ही इस क्षेत्र में प्रचार की कमान संभाल रखी है।

उम्मीदवार उतारने की खानापूरी

माना जा रहा था कि कांग्रेस इस क्षेत्र से भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा को घेरने के लिए उसी प्रकार कोई मजबूत उम्मीदवार उतारेगी, जैसे भाजपा ने सिद्दारमैया को बादामी में घेरने के लिए सांसद श्रीरामुलू को उतारा है। लेकिन उम्मीद के विपरीत कांग्रेस ने शिकारीपुरा से शिमोगा के एक नगरपालिका सदस्य जी.बी.मालतेश को टिकट देकर उम्मीदवार उतारने की खानापूरी कर दी है। येद्दयूरप्पा इस क्षेत्र से सात बार विधायक चुने जा चुके हैं।

1983 से करते आ रहे प्रतिनिधित्व

विधानसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व वह 1983 से करते आ रहे हैं। यहां से वह सिर्फ एक बार 1999 में चुनाव हारे हैं। तब उन्हें कांग्रेस के ही उम्मीदवार महालिंगप्पा ने हराया था। महालिंगप्पा भी लिंगायत नेता हैं। माना जा रहा था कि कांग्रेस इस बार भी कोई ऐसा ही उम्मीदवार शिकारीपुरा से उतारेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दूसरी ओर जनतादल (से.) ने येदियुरप्पा के विरुद्ध स्थानीय लिंगायत नेता एच.टी.बालिगर को उम्मीदवार बनाया है। समझा जाता है कि कांग्रेस ने जानबूझकर एक रणनीति के तहत यहां से अपना कमजोर उम्मीदवार दिया है। ताकि येदियुरप्पा के विरुद्ध कांग्रेस और जदस में होनेवाले मतों का बंटवारा रोका सके। बालिगर इस क्षेत्र में जोरशोर से अपना प्रचार भी कर रहे हैं।

जननेता की छवि रही है येदियुरप्पा की

कांग्रेस और जदस कोई भी रणनीति क्यों न बना लें, शिकारीपुरा से येदियुरप्पा को हिला पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि येदियुरप्पा की छवि न सिर्फ शिकारीपुरा, बल्कि पूरे कर्नाटक में जमीनी नेता की रही है।

शिकारीपुरा येदियुरप्पा की जन्मभूमि नहीं है। वह मूलतः मंड्या जिले के बुकिना-केरे गांव के रहनेवाले हैं। लेकिन उन्होंने शुरू से अपना राजनीतिक क्षेत्र कर्नाटक के अत्यंत पिछड़े क्षेत्र शिकारीपुरा को ही बनाया। येदियुरप्पा  शुरुआत से ही जुझारू किसान नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं। 70 के दशक से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, फिर उसके बाद जनसंघ से जुड़े रहे येद्दयूरप्पा आपातकाल के दौरान जेल भी जा चुके हैं।

शिकारीपुरा तहसील का अध्यक्ष

1980 में भाजपा के गठन के बाद इन्हें शिकारीपुरा तहसील का अध्यक्ष बनाया गया। फिर 1985 में शिमोगा के जिला अध्यक्ष बने और 1988 में कर्नाटक प्रदेश के अध्यक्ष बने। कहने का तात्पर्य यह है कि येदियुरप्पा वास्तव में भाजपा के जमीनी और सभी वर्गों के नेता रहे हैं। लेकिन 2007 में जदस नेता एच.डी.कुमारस्वामी द्वारा उनके साथ विश्वासघात कर उन्हें मुख्यमंत्री न बनने देना लिंगायत समुदाय को आहत कर गया। तब से येदियुरप्पा की छवि लिंगायतों के नेता के रूप में उभर कर सामने आई। इसी घटना के प्रतिक्रियास्वरूप 2008 के विधानसभा चुनाव में येद्दयूरप्पा अपने दम पर भाजपा की 110 सीटें लेकर आए और मुख्यमंत्री बने।

शिकारीपूरा से जीते

लेकिन 2010 में लोकायुक्त द्वारा जमीन के मामले में उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराए जाने पर भाजपा नेतृत्व द्वारा उनसे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र ले लिया गया। इस घटना के बाद लिंगायत समुदाय ने भाजपा से भी किनारा कर लिया। 2013 में येदियुरप्पा ने कर्नाटक जनता पार्टी का गठन कर चुनाव में हिस्सा लिया और शिकारीपूरा से जीते भी। येदियुरप्पा के अलग होने से भाजपा को करीब 10 फीसद मतों का नुकसान उठाना पड़ा और भाजपा के हाथ मुख्य विपक्षी दल का भी तमगा छिन गया। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पुनः भाजपा में शामिल हुए येदियुरप्पा के कारण ही फिर भाजपा के दिन फिरे, और वह कर्नाटक की 28 में से 17 सीटें जीतने में सफल रही।