यहां दूल्हे की मंडी में बिकता है दूल्हा, 9 दिनों तक लगता मेला
देश और दुनिया में मंडी तो बहुत देखे होंगे, सब्जी मंडी, किराना मंडी, कपड़ा मंडी, फल और पशुओं की मंडी वगैरह-वगैरह। लेकिन बिहार में एक ऐसी भी मंडी है जहां दूल्हा बिकता है।
By shweta.mishraEdited By: Updated: Mon, 10 Jul 2017 01:58 PM (IST)
-3 जुलाई तक लगेगा दूल्हों का मेला
-दहेज प्रथा रोकने के लिए राजा हरि सिंह देव ने की थी इस मेले की शुरुआत दूल्हों की सौदेबाजी भी
जी हां, हम बात कर रहे हैं मधुबनी जिला अंतर्गत लगने वाले दूल्हे की मंडी के बारे में। यहां सौराठ सभा यानी दूल्हों का मेला 22 बीघा जमीन पर 9 दिनों तक चलता है। लोग इसे सभागाछी के रूप में भी जानते हैं। मैथिल ब्राह्मण के इस मेले में देश-विदेश से कन्याओं के पिता योग्य वर का चयन कर अपने साथ ले जाते हैं और चट मंगनी पट विवाह कर देते हैं। इतना ही नहीं, योग्यतानुसार दूल्हों की सौदेबाजी भी की जाती है। आज पढि़ए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की स्पेशल रिपोर्ट में इस रोचक दूल्हे की मंडी की कहानी। पंजिबद्ध पद्धति से होता है विवाह 9 दिवसीय इस मेले में पंजिकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जो संबंध तय होता है उसे मान्यता पंजिकार ही देते हैं। बताते चलें कि पंजिवद्ध पद्धति में पिता पक्ष और ननिहाल पक्ष के 7 पीढ़ी तक के संबंधों को देखा जाता है। किसी तरह का संबंध रहने पर वर-कन्या का विवाह नहीं होता है। 700 साल पुरानी है प्रथापंजिकार विभूतिनाथ झा बताते हैं कि 700 साल पहले यह मेला आरंभ हुआ था। साल 1971 में यहां लगभग 1.5 लाख लोग आए थे। वर्तमान में आने वालों की संख्या कम हो गई है। पंजिकार झा वैज्ञानिक तर्क देते हुए बताते हैं कि डिफरेंट ब्लड गु्रप में विवाह करने से जन्म लेने वाला संतान सुंदर और स्वस्थ्य होता है। दहेज प्रथा रोकने के लिए हुई शुरुआत विवाह को लेकर विभिन्न समुदाय और धर्मों में अलग-अलग रिवाजों के बारे में आपने सुना होगा। मगर कभी दूल्हों को बिकते हुए देखा है? लोकल पब्लिक की मानें तो अधिकतर पुरानी परंपराएं खत्म हो गई है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए राजा हरि सिंह देव ने इस मेले की शुरुआत की थी। तो नहीं चलाना पड़ता अभियानलेकिन इससे उलट अब आलम यह है कि इस मेले में लड़की पक्ष वाले वर के योग्यतानुसार मूल्य निर्धारित करते हैं। इस वजह से इसका महत्व कम होने लगा है। ज्ञात हो कि बिहार सरकार 2 अक्टूबर से दहेज प्रथा को लेकर अभियान चलाने की तैयारी में है। अगर सौराठ सभा अपने उद्देश्य में सफल होता तो सरकार को आज यह अभियान नहीं चलाना पड़ता। 25 जून से 9 दिवसीय मेला काफी दिनों से बंद इस मेले को फिर से चालू करने का निर्णय लिया गया है। इस बार ये मेला 25 जून से आरंभ होकर 3 जुलाई तक चलेगा। इस दौरान भारत सहित नेपाल और आसपास के देशों से लोगों की आने की संभावना है। मेले के लिए प्रशासन की ओर से भी पूरी तैयारी की गई है। वहीं इस संबंध में दूल्हे की मंडी के पंजिकार विभूति नाथ झा कहते हैं कि अब ब्राह्मण का विवाह भी दूसरे जाति में होने लगा है। साथ ही दहेज लेना लोग अपनी शान समझने लगे हैं इस वजह से सौराठ सभा में लोग कम पहुंच रहे हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं मधुबनी जिला अंतर्गत लगने वाले दूल्हे की मंडी के बारे में। यहां सौराठ सभा यानी दूल्हों का मेला 22 बीघा जमीन पर 9 दिनों तक चलता है। लोग इसे सभागाछी के रूप में भी जानते हैं। मैथिल ब्राह्मण के इस मेले में देश-विदेश से कन्याओं के पिता योग्य वर का चयन कर अपने साथ ले जाते हैं और चट मंगनी पट विवाह कर देते हैं। इतना ही नहीं, योग्यतानुसार दूल्हों की सौदेबाजी भी की जाती है। आज पढि़ए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की स्पेशल रिपोर्ट में इस रोचक दूल्हे की मंडी की कहानी। पंजिबद्ध पद्धति से होता है विवाह 9 दिवसीय इस मेले में पंजिकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जो संबंध तय होता है उसे मान्यता पंजिकार ही देते हैं। बताते चलें कि पंजिवद्ध पद्धति में पिता पक्ष और ननिहाल पक्ष के 7 पीढ़ी तक के संबंधों को देखा जाता है। किसी तरह का संबंध रहने पर वर-कन्या का विवाह नहीं होता है। 700 साल पुरानी है प्रथापंजिकार विभूतिनाथ झा बताते हैं कि 700 साल पहले यह मेला आरंभ हुआ था। साल 1971 में यहां लगभग 1.5 लाख लोग आए थे। वर्तमान में आने वालों की संख्या कम हो गई है। पंजिकार झा वैज्ञानिक तर्क देते हुए बताते हैं कि डिफरेंट ब्लड गु्रप में विवाह करने से जन्म लेने वाला संतान सुंदर और स्वस्थ्य होता है। दहेज प्रथा रोकने के लिए हुई शुरुआत विवाह को लेकर विभिन्न समुदाय और धर्मों में अलग-अलग रिवाजों के बारे में आपने सुना होगा। मगर कभी दूल्हों को बिकते हुए देखा है? लोकल पब्लिक की मानें तो अधिकतर पुरानी परंपराएं खत्म हो गई है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए राजा हरि सिंह देव ने इस मेले की शुरुआत की थी। तो नहीं चलाना पड़ता अभियानलेकिन इससे उलट अब आलम यह है कि इस मेले में लड़की पक्ष वाले वर के योग्यतानुसार मूल्य निर्धारित करते हैं। इस वजह से इसका महत्व कम होने लगा है। ज्ञात हो कि बिहार सरकार 2 अक्टूबर से दहेज प्रथा को लेकर अभियान चलाने की तैयारी में है। अगर सौराठ सभा अपने उद्देश्य में सफल होता तो सरकार को आज यह अभियान नहीं चलाना पड़ता। 25 जून से 9 दिवसीय मेला काफी दिनों से बंद इस मेले को फिर से चालू करने का निर्णय लिया गया है। इस बार ये मेला 25 जून से आरंभ होकर 3 जुलाई तक चलेगा। इस दौरान भारत सहित नेपाल और आसपास के देशों से लोगों की आने की संभावना है। मेले के लिए प्रशासन की ओर से भी पूरी तैयारी की गई है। वहीं इस संबंध में दूल्हे की मंडी के पंजिकार विभूति नाथ झा कहते हैं कि अब ब्राह्मण का विवाह भी दूसरे जाति में होने लगा है। साथ ही दहेज लेना लोग अपनी शान समझने लगे हैं इस वजह से सौराठ सभा में लोग कम पहुंच रहे हैं।