इटली और ईरान में कोरोना के फैलने में चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का बड़ा हाथ
CoronaVirus दुनिया के मुल्कों को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि क्या चीन विश्व में ग्लोबलाइजेशन का केंद्र बना रह सकता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 23 Mar 2020 11:55 PM (IST)
नई दिल्ली, डॉ. अश्विनी महाजन। CoronaVirus आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर को झेल रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। दुनिया भर में अभी तक करीब ढाई लाख लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 11 हजार से अधिक लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। इस बीच कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हालांकि भारत में अभी इस वायरस से संक्रमित लोगों का आंकड़ा साढे़ तीन सौ के आसपास ही पहुंचा है जिसमें सात लोगों की जान गई है, जबकि 23 लोग स्वस्थ हो चुके हैं।
भारत में माना जा रहा है कि अभी हम कोरोना की समस्या के दूसरे चरण में हैं और आगे आने वाले दो-तीन सप्ताह इसमें महत्वपूर्ण हो सकते हैं। अभी तक कोरोना संक्रमण के जो मामले सामने आए हैं, उनमें से करीब 41 मामले विदेशियों के हैं और बाकी मामले भारतीयों से संबंधित हैं, लेकिन ये सभी मामले वे हैं जिनका संबंध सीधे तौर से विदेशों से आने वाले लोगों के साथ है, यानी विदेशी पर्यटक या विदेशों से आने वाले भारतीय और उनके साथ संपर्क में आए उनके रिश्तेदार। एक रिपोर्ट के अनुसार इटली और ईरान में इस संक्रमण के फैलने में चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) यानी बेल्ट रोड परियोजना का बड़ा हाथ है। चीन से इतनी दूर होने के बावजूद इन दोनों मुल्कों में कोरोना वायरस के फैलने की वजह ओबीओआर ही बताई जा रही है।
आइसीएमआर द्वारा सामान्य जांच, जिसमें 826 मामलों की जांच की गई, यह सिद्ध हुआ कि अभी तक कोरोना संक्रमण सामुदायिक संपर्क से नहीं आया है, जो बड़े संतोष का विषय है, लेकिन इस आशंका से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि भविष्य में यदि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति सामाजिक संपर्क में आते हैं तो यह संक्रमण फैल भी सकता है। चीन, इटली, ईरान आदि देशों के अनुभव से सीख मिल रही है, क्योंकि वहां यह संक्रमण सामुदायिक रूप ले चुका है।
चीन से शुरू हुआ यह वायरस : नोवल कोरोना के नाम से जाना जाने वाले इस वायरस का फैलाव चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ। चीनी अधिकारियों को इस वायरस के संक्रमण की जानकारी दिसंबर 2019 में मिली थी। इस वायरस का तकनीकी नाम सार्स-कोव-2 रखा गया, जिसके कारण कोविड-19 नाम की बीमारी होती है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह वायरस चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से निकला, लेकिन इस संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि वुहान में इस संस्थान का होना और वहीं पर वायरस का फैलना महज एक संयोग है, परंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि चीन द्वारा वायरस यानी बायोलॉजिकल हथियारों का निर्माण और इस वायरस का दुर्घटनावश फैलना दोनों में कुछ संबंध जरूर है। कई अमेरिकी विशेषज्ञों ने इस आशंका की तरफ संकेत भी किया है।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि चीनी लोगों के अजीबो-गरीब खानपान के व्यवहार के कारण यह वायरस मानव शरीर में पहुंचा। कुछ वैज्ञानिकों का यह मानना है कि यह वायरस जानवरों से मानव शरीर में स्थानांतरित हुआ है। यह वायरस ‘सार्स’ परिवार का है और इस बात की ज्यादा संभावना है कि यह एक चमगादड़ से या किसी ऐसे जानवर से, जिसे चमगादड़ ने संक्रमित किया हो, से आया है। चाहे यह वायरस प्राकृतिक रूप से किसी जानवर से आया है या फिर किसी प्रयोगशाला से, इस बात पर लगभग मतैक्य है कि यह वायरस चीन से ही आया है। शायद यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस वायरस को चीनी वायरस कह रहे हैं। यह पहली बार नहीं है कि चीन से वायरस आया हो, इससे पूर्व में भी चीन दुनिया में फैली विभिन्न बीमारियों के वायरस का जन्मदाता रहा है।
वर्ष 2002 में सार्स नाम का संक्रमण, जिसमें दुनिया के हजारों लोग संक्रमित हुए थे और 773 लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए थे, भी चीन से ही आया था। हालांकि प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पता चलता है कि चीन में इस वायरस का कहर घटता जा रहा है और जल्द ही चीन में सामान्य हालात बहाल हो सकते हैं, लेकिन यह प्रश्न पूरी दुनिया को खल रहा है कि यदि इस वायरस को फैलने में षड्यंत्र की आशंका को दरकिनार भी कर दिया जाए, या चीनी लोगों की खानपान की विचित्रता को भी न देखा जाए तो भी दिसंबर में इस संक्रमण की जानकारी प्राप्त होने के बाद भी चीनी सरकार द्वारा इस वायरस को स्वयं अपने देश और दूसरे मूल्कों में फैलने देने से रोकने में क्या भूमिका रही? क्या चीन सरकार ने जिम्मेदारी से काम किया? क्या उसने दुनिया को इस मामले में आगाह किया? प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पता चलता है कि प्रारंभ में कोरोना वायरस के सामुदायिक फैलाव और बाद में महामारी के रूप में फैलने में चीन सरकार के अलावा किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इस वायरस के बारे में पहली बार जानकारी देने वाले एक डॉक्टर के साथ चीन की सरकार द्वारा किया जाने वाला दुव्र्यवहार जगजाहिर है, जो आखिरकार मृत्यु को प्राप्त हो गए।
इटली और ईरान में भी चीन से आया संक्रमण : वैसे तो पूरी दुनिया में इस संक्रमण का फैलाव हुआ है, लेकिन इटली और ईरान इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इटली में अभी तक कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 47,000 से अधिक है और मरने वालों की संख्या 4800 से भी अधिक है। अकेले इटली में सबसे ज्यादा लोग मरे हैं। इसने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। उसके बाद सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या ईरान में है।
गौरतलब है कि चीन पिछले कुछ समय से अपने सामरिक एवं आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए इस परियोजना पर आक्रामक रूप से आगे बढ़ा रहा है। इटली और ईरान दो ऐसे मुल्क हैं जो इस परियोजना के बड़े हिस्सेदार हैं। इटली ने बुनियादी ढांचे से लेकर ट्रांसपोर्ट तक और यहां तक कि इटली के चार बड़े बंदरगाहों को भी चीनी भागीदारी के लिए खोल दिया है। लोंबार्डी और टुस्कैनी दो क्षेत्र हैं जहां सबसे ज्यादा चीनी निवेश हुआ है। 31 जनवरी, 2020 को ही पहला संक्रमण का मामला इटली में आया था।
ईरान, जो पिछले काफी समय से अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों को झेलते हुए भारी संकट में है, उसके द्वारा चीनी निवेश को बढ़ावा दिया गया और 2019 में उसने आधिकारिक तौर पर ओबीओआर पर हस्ताक्षर किए और दो हजार मील लंबी रेल पटरी जो पश्चिमी चीन से तेहरान होते हुए यूरोप में तुर्की तक जाएगी, के काम को आगे बढ़ाया। इसके अलावा चीन की रेलवे इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन ‘कोम’ से निकलने वाली 2.7 अरब डॉलर की तीव्र गति की रेल लाइन बिछा रही है। इसी के साथ-साथ चीनी तकनीशियन आण्विक पावर प्लांट का भी जीर्णोद्धार कर रहे हैं। ईरान के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि या तो चीन के कर्मचारियों या फिर चीन से होकर आने वाले ईरानी व्यापारियों से यह संक्रमण फैला है। माना जा सकता है कि इटली और ईरान दोनों में कोरोना वायरस संक्रमण के चीन से संबंध हैं।
गौरतलब है कि भारत ने चीन की ओबीओआर परियोजना में शामिल होने से इन्कार कर दिया था। पिछले काफी समय से चीन डंपिंग, निर्यात सब्सिडी और विविध प्रकार के तरीके अपना कर दुनिया भर के बाजारों पर कब्जा जमा रहा है। ऐसे में भारत ही नहीं, अमेरिका और यूरोप सरीखे बड़े तमाम विकसित देशों में मैन्युफैक्चरिंग तबाही की ओर है और दुनिया भर के देश भुगतान संकट का सामना कर रहे हैं। वहीं बेरोजगारी और खासतौर पर युवा बेरोजगारी भी बड़ी मात्रा में बढ़ गई है।
आज चीन में लॉक डाउन के चलते वहां से सामान का आयात संभव नहीं, उसके कारण पूरी दुनिया में उद्योग-धंधों को चलाने में भी भारी कठिनाई आ रही है। एक तरफ कोरोना का कहर और दूसरी ओर आर्थिक संकट दुनिया के मुल्कों को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि क्या चीन विश्व में ग्लोबलाइजेशन का केंद्र बना रह सकता है। चीन की सरकार भी अपनी बदनामी को न्यूनतम करने के प्रयास में जुट गई है। विश्व को विचार करना होगा कि आगे की आर्थिक गतिविधियों का स्वरूप क्या होगा।[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]