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देश रक्षा को हमेशा आगे रहे शहीद मोहनलाल, जानिए उनकी जिंदगी से जुड़े पहलू

उत्तरकाशी जिले के बनकोट निवासी शहीद मोहनलाल रतूड़ी हमेशा ही देश रक्षा को आगे रहते थे।

By Raksha PanthariEdited By: Updated: Sat, 16 Feb 2019 03:35 PM (IST)
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देश रक्षा को हमेशा आगे रहे शहीद मोहनलाल, जानिए उनकी जिंदगी से जुड़े पहलू
देहरादून, जेएनएन। देश रक्षा को हजारों बार कुर्बान होने को हैं तैयार...हर सैनिक के दिल में यही जज्बा रहता है और वो इसे साबित भी कर दिखाते हैं। ऐसे ही एक जांबाज हैं उत्तराखंड के मोहनलाल रतूड़ी। जिन्होंने अपनी जिंदगी देश पर कुर्बान कर दी।

पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए मोहन लाल रतूड़ी मूलरूप से उत्तरकाशी के बनकोट (चिन्यालीसौंड़) के थे। वर्तमान में उनका परिवार देहरादून में रहता है। मोहनलाल की प्राथमिक शिक्षा गांव से हुर्इ। इसके बाद उन्होंने गांव से दस किलोमीटर दूर राजकीय इंटर कॉलेज जोगत से कक्षा दस तक की पढ़ाई की। उस दौर में सड़क नहीं होने के कारण स्कूल तक का सफर उन्हें पैदल ही तय करना पड़ता था।  

रतूड़ी के पिता मंगलानंद रतूड़ी पंडिताई करते थे। उनके तीन बेटे थे जिनमें मोहनलाल दूसरे नंबर के थे। उनके दोनों भार्इ पंडितार्इ करते हैं। पांच साल पहले उनके पिता का देहांत हो चुका है, जबकि तीन साल पहले उनकी मां भी गुजर गर्इं। 

1987 में हुए थे सीआरपीएफ में भर्ती 

मोहनलाल साल 1988 में सीआरपीएफ के लुधियाना कैंप में भर्ती हुए थे। उन्होंने श्रीनगर, छत्तीसगढ़, पंजाब, जालंधर, जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकी और नक्सल क्षेत्र में भी ड्यूटी की। एक साल पहले उनकी पोस्टिंग झारखंड से पुलवामा हुई थी।  

रामलीला में निभाते थे राम का किरदार 

वे सिर्फ देश की रक्षा को ही आगे नहीं रहते थे, उन्हें रामलीला में अभिनय का भी बहुत शौक था। वे रामलीला के आयोजन पर छुट्टी लेकर गांव पहुंचते थे और राम का किरदार निभाते थे। 

परिवार के बारे में 

उनका परिवार पिछले तीन सालों से किराए के मकान में दून में रहता है। बच्चों की पढ़ार्इ के लिए परिवार को यहां लाए थे। परिवार में पत्नी सरिता तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनकी बड़ी बेटी अनुसूइया की शादी हो चुकी है। बेटा शंकर ऋषिकेश में योग शिक्षक है। दूसरी बेटी वैष्णवी बीए, गंगा 12वीं की परीक्षा देगी, जबकि छोटा बेटा श्रीराम नवीं में पढ़ रहा है। दोनों केंद्रीय विद्यालय आइटीबीपी सीमाद्वार में पढ़ते हैं। 

सेवानिवृत्ति के बाद रहना चाहते थे गांव में 

मोहनलाल को 2024 में सेवानिवृत्त होना था। जसके बाद वे गांव में ही रहना चाहते थे। गांव स्थित उनका मकान जुलाई 2018 में भूधंसाव के कारण क्षतिग्रस्त हो गया। जिसका मुआवजा नहीं मिला। वो तीन माह पहले गांव आए थे और नया मकान बनाना शुरू किया। जिसका निर्माण पूरा नहीं हुआ है। 

वीआरएस लेने से किया मना 

दिसंबर में जब मोहन घर पहुंचे तो उनके रिश्तेदारों ने उन्हें वीआरएस लेने का सुझाव दिया। मगर, मोहनलाल ने कहा कि देश को हमारी जरूरत है। देश की सेवा पूरी करने के बाद ही  सेवानिवृत्ति होंगे। 

बच्चों को सुनाते थे किस्से 

मोहनलाल के बड़े बेटे शंकर रतूड़ी ने बताया कि पिता हमेशा देश की रक्षा को लेकर उनसे बातें करते थे। छत्तीसगढ़ में नक्सली क्षेत्र हो या फिर जम्मू के आतंकी क्षेत्र इनके कई किस्से मोहनलाल ने बच्चों को सुनाया करते थे। 

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