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'अनुमान के आधार पर नहीं किया जा सकता दोषी करार', हत्यारोपी को बरी करते हुए HC की अहम टिप्पणी, जानें पूरा मामला

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हत्या के मामले में मौत की सजा पा चुके एक पिता को बरी कर दिया है। हाई कोर्ट ने जिला न्यायालय के फैसले को रद करते हुए कहा कि सिर्फ अनुमान के आधार पर दोषी नहीं करार दिया जा सकता।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Tue, 02 May 2023 05:53 PM (IST)
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हत्यारोपी को बरी करते हुए HC ने की अहम टिप्पणी
चंडीगढ़, दयानंद शर्मा। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान का उपयोग केवल असाधारण मामलों में किया जा सकता है, जब अभियोजन पक्ष के लिए तथ्यों को स्थापित करना असंभव या कठिन हो। हाई कोर्ट ने कहा कि अपराध साबित करने का बोझ हमेशा अभियोजन पक्ष पर होता है और उसे वह हर परिस्थिति में करना होता है।

हाई कोर्ट ने हरियाणा के मेवात क्षेत्र के एक व्यक्ति को बरी करते हुए ये आदेश पारित किए हैं, जिसे 2014 में अपनी सात साल की बेटी की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। अभियोजन पक्ष के नियम के अनुसार अपीलकर्ता इकराम खान पर अपनी लड़की की हत्या करने का आरोप लगाया गया था। आरोपों के अनुसार, खान अपनी लड़की को मारकर गांव के सरपंच और उसके साथियों को मामले में फंसाना चाहता था, क्योंकि उसे पंचायत ने गोमांस बिक्री प्रतिबंध का उल्लंघन करने के लिए दंडित किया था।

जिला न्यायालय के फैसले को किया रद

हाई कोर्ट ने 10 दिसंबर 2015 को जिला और सत्र न्यायालय नूंह द्वारा पारित आदेश को रद करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रतिपादित मकसद ठोस नहीं है। यह कल्पना के विपरीत है कि एक व्यक्ति अपनी नाबालिग बेटी को मार डालेगा, ताकि बदला लेने के लिए उन लोगों को फंसाया जा सके, जिन्होंने उसे गोहत्या के मामले में नामजद किया था। सबसे पहले यह प्राथमिक है कि केवल आरोप लगाने मात्र से दोष सिद्ध नहीं हो जाता। जांच और परीक्षण के बाद दोष स्थापित करना होगा। निश्चित रूप से, अपीलकर्ता इतना भोला नहीं होगा कि केवल एक आरोप के परिणामस्वरूप उसके द्वारा नामित लोगों को दोषी ठहराया जाएगा।

हाई कोर्ट ने दिया ये तर्क

हाई कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को घटना के लगभग एक महीने और पांच दिन बाद उसके खुलासे पर घर के एक कमरे से खून से सने कपड़े और चाकू की बरामदगी के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अपीलकर्ता के अलावा, उसके परिवार के अन्य सदस्य वहां रहते थे। कथित घटना के तुरंत बाद वहां काफी संख्या में लोग जमा हो गए थे। यह इंगित करने के लिए रिकार्ड पर कुछ भी नहीं है कि पुलिस को किस कारण से विश्वास हुआ कि अपीलकर्ता दोषी था।

अभियोजन पक्ष के पास अपने इस अनुमान के पक्ष में कोई ठोस सबूत नहीं है। इसी के साथ कोर्ट ने मामले में पुलिस के सिद्धांत को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट के जस्टिस हरिंदर सिंह सिद्धू ने जिला एवं सत्र अदालत नूंह से प्राप्त हत्या के संदर्भ और अपनी ही बेटी की हत्या के लिए मौत की सजा पाने वाले इकराम द्वारा दायर अपील पर फैसला करते हुए ये आदेश पारित किए हैं।

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