Mukteshwar Mahadev Temple Punjab: प्रसिद्ध मुक्तेश्वर शिवधाम कहलाता है छोटा हरिद्वार; चार गुफाओं में पांडवों ने द्रोपदी संग यहीं काटा अज्ञातवास
Famous Mukteshwar Mahadev Temple Pathankot सनातन मान्यता के अनुसार मुक्तेश्वर महादेव धाम लगभग 5500 साल पुराना है। कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने यहां की गुफाओं में अज्ञातवास काटने के दौरान करवाया था। वे यहां की चार गुफाओं में रहे थे।
By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 11:56 AM (IST)
संवाद सहयोगी, जुगियाल (पठानकोट)। प्रसिद्ध मुक्तेश्वर शिवधाम शिवालिक की पहाड़ियों की गोद में स्थित है। लगभग 5500 साल पुराने इस धाम के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था। विभिन्न मंदिरों के कारण इसे 'छोटा हरिद्वार' भी कहा जाता है। इन दिनों शाहपुर कंडी बैराज के निर्माण कार्य के कारण इस ऐतिहासिक स्थल का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है।
यहां स्वयंभू आदि अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है। पावन शिवलिंग अष्टकोणीय है तथा काले-भूरे रंग का है। शिव रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई 7-8 फीट है। पार्वती के रूप में अराध्य हिस्सा 5-6 फीट ऊंचा है।
ब्यास और चोच नदियों के संगम पर स्थित है मंदिर
मुक्तेश्वर धाम जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर, मीरथल से 4 किलोमीटर और ब्यास और चोच नदियों के संगम पर इंदौरा से 7 किलोमीटर दूर रावी नदी के किनारे स्थित है। रणजीत सागर बांध और हाल ही में निर्माणधीन शाहपुर कंडी बांध के बीच गांव ढूंग में यह शिवधाम है। मान्यता है कि द्वापर युग में पांडव अज्ञातवास काटने के दौरान द्रौपदी के साथ यहां 6 महीने रहे थे और गुफाओं में शिवलिंग स्थापित किया था।
पठानकोट के मुक्तेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग। शिवरात्रि पर लगता तीन दिन का मेलामंदिर कमेटी प्रधान ओम प्रकाश कटोच ने बताया कि शिवरात्रि पर प्रत्येक वर्ष यहां पर तीन दिवसीय मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्धनारीश्वर स्वरूप श्री संगम के दर्शन से मानव जीवन में आने वाले सभी पारिवारिक और मानसिक दु:खों का अंत हो जाता है। इस मंदिर में लोगों की बहुत ही श्रद्धा है।
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मंदिर तक पहुंचने का मार्ग
मुक्तेश्वर शिवधाम जनपद मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर है। पठानकोट रेलवे स्टेशन से उतरने के बाद बस स्टैंड जाएं और मीरथल या इंदौरा के लिए बस पकड़ें। मीरथल और इंदौरा से छोटी बसें व टैक्सी, आटो व जीप आदि आपको सीधे मंदिर के पास पहुंचा देंगी।सिकंदर महान से जुड़ा है मंदिर का इतिहासविश्व विजेता सिकंदर जब 326 वर्ष पूर्व पंजाब पहुंचा, तो प्रवेश से पूर्व मीरथल नामक गांव में पांच हज़ार सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम की सलाह दी। इस स्थान पर उसने देखा कि एक फकीर शिवलिंग की पूजा में व्यस्त था। उसने फकीर से कहा कि आप मेरे साथ यूनान चलें। मैं आपको दुनिया का हर ऐश्वर्य दूंगा। फकीर ने सिकंदर की बात को अनसुना करते हुए कहा आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य का प्रकाश मेरे तक आने दें। फकीर की इस बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर काठगढ़ महादेव का मंदिर बनाने के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी बनवाई। इस चारदीवारी के ब्यास नदी की ओर अष्टकोणीय चबूतरे बनवाए जो आज भी यहां हैं।
पठानकोट में शिवालिक पहाड़ियों की गोद में स्थित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर। महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया सुंदर मंदिरमहाराजा रणजीत सिंह ने जब गद्दी संभाली तो पूरे राज्य के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। वह जब काठगढ़ पहुंचे तो इतना आनंदित हुए कि उन्होंने तुरंत सुंदर मंदिर बनवाया और वहां पूजा करके आगे निकले। मंदिर के पास ही बने एक कुएं का जल उन्हें इतना पसंद था कि वह हर शुभकार्य के लिए यहीं से जल मंगवाते थे।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है यह क्षेत्र सड़क के किनारे पुरातत्व विभाग की तरफ से बोर्ड लगा है। यहीं से रावी नदी के बहने का शोर सुनाई देना शुरू हो जाता है। काफी गहराई में पहाड़ियों के बीच नदी की निर्मल धारा भी बहती दिखाई देती है। 164 सीढ़ियां उतरने के बाद मंदिर परिसर में पहुंच जाएंगे। यहां महाभारत काल की गवाह चार गुफाएं हैं। नीचे दो गुफाओं में से एक बड़ी गुफा में मंदिर, द्रौपदी की रसोई, परिवार मिलन कक्ष आज भी है। बाकी तीन गुफाएं थोड़ी ऊंचाई पर हैं। इनमें से एक में अंगरक्षक सहायक तेली को रात में जगाते रखने के लिए कोहलू लगाया गया था। एक गुफा द्रौपदी के लिए आरक्षित थी और चौथी में दूध और भोजन भंडारण किया जाता था। पठानकोट के आसपास के सबसे पवित्र स्थानों में से एक इस धाम की मुख्य गुफा में गणेश, ब्रह्मा, विष्णु, हनुमान और देवी पार्वती की मूर्तियां मौजूद हैं। यहां अमावस्या, नवरात्र, बैसाखी और शिवरात्रि पर मेला भी लगता है।
1995 में यह स्थान असुरक्षित घोषित मुक्तेश्वर धाम बचाओ समिति के पदाधिकारियों की मानें तो 20 फरवरी, 1995 को जब इस जगह को असुरक्षित घोषित किया गया तो ग्राम पंचायतों के प्रयास से 29 मार्च 1995 को भूमि-अधिग्रहण विभाग की मीटिंग में फैसला लिया गया कि मुक्तेश्वर मंदिर के 22 कनाल एरिया को अधिग्रहित नहीं किया जाएगा।...तो क्या डूब जाएंगी प्राचीन गुफाएं
अब शाहपुर कंडी में बांध बनने के चलते इसकी झील में इस स्वर्णिम इतिहास के लोप हो जाने का खतरा मंडरा रहा है। मंदिर बचाओ समिति के मुताबिक यह प्रोजेक्ट पूरा होने में कुछ ही महीने का वक्त बाकी है। इसके बाद यहां निर्धारित जलस्तर 405 मीटर भरा तो एक और दो नंबर की गुफाएं पूरी तरह से जल में समा जाएंगी। समिति के प्रधान भीम सिंह की मानें तो गुफा नंबर 1 के दरवाजे का निचला तल 401 मीटर पर है। डूब जाने से बचाने के लिए समिति की दोटूक चेतावनी है कि जब तक धाम को बचाने की गारंटी नहीं होगी, तब तक झील में पानी नहीं भरने दिया जाएगा।
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