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KD Singh Babu 100th Birth Anniversary: केडी सिंह 'बाबू' सौ वर्ष बाद भी 'दिग्विजय', इकलौते भारतीय खिलाड़ी जिन्हें मिली हेम्स ट्राफी

KD Singh Babu 100th Birth Anniversary दूसरे विश्व युद्ध के बाद केडी सिंह बाबू भारतीय हाकी टीम के सदस्य के रूप में श्रीलंका गए और फिर पूर्वी अफ्रीका। जहां पर मेजर ध्यान चंद के नेतृत्व में टीम ने कुल 200 गोल किए जिसमें सर्वाधिक 70 गोल बाबू के थे।

By Umesh TiwariEdited By: Updated: Wed, 02 Feb 2022 04:34 PM (IST)
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KD Singh Babu 100th Birth Anniversary: कुंवर दिग्विजय सिंह 'बाबू' यानी केडी सिंह 'बाबू' की 100वीं जयंती।

लखनऊ [धर्मेन्द्र पाण्डेय]। कुंवर दिग्विजय सिंह 'बाबू' यानी केडी सिंह 'बाबू'। भारत के साथ ही विश्व में खेलों की दुनिया में इस नाम ने अलग ख्याति अर्जित की है। विश्व के सर्वश्रेष्ठ हाकी खिलाड़ी और एशिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को मिलने वाली हेम्स ट्राफी के भारत के इकलौते विजेता कुंवर दिग्विजय सिंह 'बाबू' की दो फरवरी को सौंवीं जयंती हैं। वह वाकई में दिग्विजय हैं। दो फरवरी 1922 को बाराबंकी में जन्मे केडी सिंह 'बाबू ने 56 वर्ष की उम्र में 27 मार्च 1978 को अंतिम सांस ली। देश में उनके अलावा अभी तक किसी भी खिलाड़ी को हेम्स ट्राफी से सम्मानित नहीं किया गया है। हेम्स ट्राफी को तो खेलों का नोबेल पुरस्कार माना जाता है।

भारत में हाकी में मेजर ध्यान चंद के साथ केडी सिंह 'बाबू' का नाम भी काफी बड़ा है। मेजर ध्यान चंद ने तो खेल के दौरान शोहरत कमाई, लेकिन केडी सिंह 'बाबू' ने खेल के साथ ही खेल के बाद भी काफी नाम कमाया और देश को बड़ी धरोहर दी। मेजर ध्यानचंद उन महानतम खिलाड़ियों में हैं, जिनकी हाकी की स्टिक के किस्से काफी मशहूर हैं, लेकिन केडी सिंह 'बाबू' की हाकी स्टिक के साथ क्रिकेट के बैट, टेनिस व बैडमिंटन के रैकेट तथा गोल्फ की स्टिक के भी काफी किस्से हैं। केडी सिंह 'बाबू' राइट इन पोजीशन से खेलते थे। इस पोजीशन पर खेलने वाली खिलाड़ी दूसरों को अधिक गोल करने का मौका देता है।

केडी सिंह 'बाबू' ने उत्तर प्रदेश के साथ देश की हाकी को दो दर्जन से अधिक ओलंपियन तैयार करने के साथ उत्तर प्रदेश के खेल को योजनाबद्ध तरीके से विकसित करने में मुख्य भूमिका निभाई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में मुकाबले नहीं होने के कारण उनके शानदार खेल करियर का अधिकांश समय तो बेकार चला गया। इसके बाद भी वह अपना खेल निखारने में लगे रहे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद बाबू भारतीय हाकी टीम के सदस्य के रूप में पहले श्रीलंका गए और फिर पूर्वी अफ्रीका। जहां पर मेजर ध्यान चंद के नेतृत्व में टीम ने कुल 200 गोल किए जिसमें सर्वाधिक 70 गोल बाबू के थे। उन्हें 1948 के लंदन ओलिंपिक में भारत की टीम का उप कप्तान चुना गया था।

देश की आजादी के बाद भारत की स्वतंत्र टीम के रूप में पहली ओलिंपिक भागीदारी थी, जिसमें भारत ने स्वर्ण पदक जीता। उनकी अद्भुत ड्रिब्लिंग और पास की मदद से वह विपक्षी टीम की मजबूत रक्षा पंक्ति को भी आसानी से भेद रहे थे। 1949 में उन्हें भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया था। इस वर्ष में टीम ने 236 गोल दागे, जिसमें सर्वाधिक 99 गोल केडी सिंह 'बाबू' के थे। वह 1952 के हेलसिंकी ओलिंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान थे। वह टीम के मास्टरमाइंड और प्लेमेकर थे।

उन्होंने लंदन (1948) और हेलसिंकी (1952) ओलिंपिक खेल में भारत को लगातार दो स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इसी प्रदर्शन पर उन्हें 1953 में हेम्स ट्राफी से सम्मानित किया गया। हेम्स ट्राफी विश्व के सर्वश्रेष्ठ हाकी खिलाड़ी और एशिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को दिया जाता है। अमेरिका के लांस एंजिल्स की हेम्सफर्ड फाउण्डेशन ने उन्हें हेम्स ट्राफी से नवाजा। इस ट्राफी को खेलों का नोबेल पुरस्कार माना जाता था। उनके बाद अभी तक भारत के किसी भी खिलाड़ी को यह सम्मान नहीं मिला। उनको 1958 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

कम समय में ही शुरू कर दी दूसरी पारी : केडी सिंह 'बाबू' ने शानदार करियर बाकी रहने के बाद भी 1959 में देश की टीम से खेलना छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने खेल में अपनी दूसरी पारी शुरू की। वह नई पौध तैयार करने के बड़े अभियान में लगे। भारतीय हाकी टीम के प्रशिक्षक बने और लम्बे कैम्प लगाकर हर एक खिलाड़ी को उसकी कमजोरी को दूर करने के अभियान में लगे। लखनऊ मे विश्व कप के लिए भारतीय टीम का कैम्प लगवाया और जीत भी दिलाई। अपने जीवन के अंतिम 20 वर्षों में उनकी दूसरी पारी खेल के लिए कम उपयोगी नहीं रही।

कोच के रूप में भी कुशल रणनीतिकार : खिलाड़ी के रूप में चीते जैसी चपलता तथा बाज जैसी फुर्ती के साथ विपक्षी के ऊपर हावी होने वाले केडी सिंह 'बाबू' कोच के रूप में उत्कृष्ट रणनीतिकार थे। वह देश के पहले ऐसे कोच थे, जिन्होंने विपक्षी टीम की चाल को समझने के लिए प्रैक्टिकल के साथ थ्योरी पर काम किया। वह विपक्षी की चाल को समझाने के लिए ब्लैकबोर्ड का इस्तेमाल किया था।

खेलों को विकसित करने की दूरगामी सोच : दूरगामी सोच की शख्सियत केडी सिंह 'बाबू' ने उत्तर प्रदेश में हाकी के स्पोर्ट्स हास्टल और स्पोर्ट्स कालेज के साथ जिलों में हाकी की नर्सरी विकसित की। जिनसे देश को पांच दर्जन से अधिक ओलंपियन और सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी मिले। उत्तर प्रदेश मे खेल निदेशालय की स्थापना कर पहले निदेशक बने और हर जिले में स्टेडियम, मल्टी परपस हाल तथा तरणताल बनवाए। उत्तर प्रदेश में खेल की प्रगति की जो योजनाएं उन्होंने सत्तर के दशक में तैयार कीं, प्रदेश आज भी उन्हीं पर चल रहा है। उन्होंने पचास के दशक में उत्तर प्रदेश खेल परिषद का गठन करवाया। वह इसके मुखिया रहे। 1974 में यह प्रदेश खेल निदेशालय में परवर्तित हुआ। केडी सिंह बाबू उसके पहले निदेशक बने।

लगातार चढ़ते रहे सफलता के शिखर : शाही परिवार में जन्मे केडी सिंह 'बाबू' ने 14 वर्ष की उम्र से ही हॉकी स्टिक से जादू बिखेरना शुरू कर दिया था। 1938 के आसपास वह लखनऊ आए। लखनऊ यंगमैन एसोसिएशन की टीम से उन्होंने खेलना शुरू किया। बाबू 16 वर्ष की उम्र में ही उत्तर प्रदेश की टीम के कप्तान बने। 1948 लंदन ओलिंपिक में भारतीय हाकी टीम के उपकप्तान थे तो 1952 में हेलसिंकी ओलिंपिक में कप्तान बने। केडी सिंह बाबू क्रिकेट के भी बेहतरीन खिलाड़ी थे। उन्होंने लखनऊ में आयोजित होने वाली अखिल भारतीय शीशमहल क्रिकेट प्रतियोगिता में देश ने नामचीन गेंदबाजों के सामने तीन शतक जमाए थे। वह क्रिकेट बैट की जगह पर हाकी की स्टिक से बल्लेबाजी करते थे।

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