Move to Jagran APP

जानिए, पूर्व इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन के जीवन से जुड़ी ये खास बातें...

सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 को फांसी की सजा दी गई थी।

By Mohit TanwarEdited By: Updated: Sat, 31 Dec 2016 11:38 AM (IST)
Hero Image
सद्दाम हुसैन (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, जेएनएन। सद्दाम हुसैन को दुनिया के सबसे बदनाम कातिलों में से एक माना जाता है, जिसने अपनी तानाशाही के बल पर लाखों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया था। सद्दाम इराक का पांचवां राष्ट्रपति था, जिसने इराक पर लगभग 30 सालों तक राज किया। 30 दिसंबर 2006 को पूर्व इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ाया गया था।

आज हम आपको उनसे जुड़े कुछ तथ्य बताते हैं...

- सद्दाम का पूरा नाम सद्दाम हुसैन अब्द अल-मजीद अल-टिकरी था।

- सद्दाम का जिस परिवार में जन्म हुआ था वो एक भूमिहीन सुन्नी परिवार था, जो पैगम्बर मोहम्मद के वंशज होने का दावा किया करते हैं।

- सद्दाम की मां का नाम तुलफा-अल-मुस्स्लत और पिता का नाम हुसैन आबिद-अल-मजीद था।

- सद्दाम ने अपने पिता को कभी नहीं देखा और न कभी उसके बारे में जान पाया। क्योंकि उसके जन्म के छह माह पहले ही वो घर से गायब हो गया था। बाद में उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई।

- पिता के गायब होने के समय सद्दाम गर्भ में ही था और उसकी मां ने आत्महत्या करने के साथ ही गर्भपात का भी विचार बना लिया था, लेकिन किसी तरह से यह फैसला टल गया। इस वजह से ही इस बच्चे को सद्दाम नाम मिला।

- सद्दाम के जन्म के कुछ दिनों बाद ही सद्दाम के बड़े भाई की कैंसर से मौत हो गई, जो केवल 13 साल का था।

- इसके बाद सद्दाम को उसके मामा खैरअल्लाह तलफ के पास बगदाद भेज दिया गया और उसे तब तक वापस नहीं लाया गया जब तक कि वह तीन साल का नहीं हो गया।

- 1957 में 20 साल की उम्र में सद्दाम स्कूल की पढ़ाई छोड़कर क्रांतिकारी अरब बाथ पार्टी में शामिल हो गया था। इस दौरान सद्दाम ने कुछ समय स्कूल में अध्यापक का काम भी किया था।

- 1958 में इराक में तख्तापलट हुआ और सद्दाम को चचेरे भाई की हत्या के आरोप में जेल में डाल दिया गया था, लेकिन 10 माह के बाद सबूतों के अभाव में उसे रिहा कर दिया गया।

- 1979 में सद्दाम हुसैन ने खराब स्वास्थ्य के नाम पर जनरल अहमद हसन अल बक्र को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया और खुद देश का राष्ट्रपति बन बैठा।

- विभिन्न रिपोर्ट्स के अनुसार, सद्दाम हुसैन ने खुद के खून से कुरान की एक प्रति लिखवाई थी। कहते हैं कि 90 के दशक में इसे लिखने में 27 लीटर खून का इस्तेमाल हुआ। खून में कुछ केमिकल्स भी मिलाए गए थे। धार्मिक मुस्लिमों के बीच अपना समर्थन हासिल करने के लिए ऐसा किया गया। हालांकि, कई लोगों ने इसे एक गैर धार्मिक कदम समझा।

- अजीबोगरीब बात ये थी कि हुसैन की मौत के बाद अधिकारियों को यह तय करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी कि इसका क्या किया जाए। एक पवित्र किताब को नष्ट करना भी ठीक नहीं था और सद्दाम के खून से लिखी किताब को संभालकर रखना भी अधिकारी नहीं चाहते थे। हालांकि, बाद में इसे संरक्षित किया गया।

- जाम्बिया के पहले प्रेसिडेंट केनेथ कौन्डा और सद्दाम हुसैन के बीच बेहद खास रिश्ता था। एक बार सद्दाम ने कौन्डा को खुश करने के लिए एक बोईंग 747 विमान में ढेरों गिफ्ट भेज दिया। इस विमान में कीमती कालीन, गहने और अन्य सामान भरे गए थे। इसके बदले में कौन्डा ने अपने निजी जादूगर को सद्दाम के पास भेज दिया। सद्दाम की रुचि तब अंधविश्वासों में काफी बढ़ने लगी थी। उस जादूगर ने उन्हें यह बताया था कि उनके खिलाफ काफी साजिश रचने की कोशिश की जा रही है, जो आगे चलकर सच भी साबित हुई।

- यूनेस्को ने माना था कि सद्दाम हुसैन ने इराक में लोगों का लिविंग स्टैंडर्ड बेहतर बनाया, इसलिए उन्हें अवार्ड दिया गया।

- सद्दाम हुसैन ने इराक में मुफ्त स्कूल खोलने और निरक्षरता दूर करने के अलावा सैनिकों के परिवार की मदद, किसानों को सहायता और हेल्थ फैसिलिटी सुधारने के लिए कदम उठाए थे। हालांकि, यूनेस्को की ओर से अवार्ड दिए जाने से पहले सद्दाम को लोग कम ही जानते थे।

- सद्दाम ने सजा से बचने की अपील भी की, लेकिन उसकी अपील खारिज कर दी गई। 30 दिसंबर 2006 को उसे फांसी की सजा दे दी गई। उसकी अंतिम इच्छा थी कि उन्हें फांसी की बजाय शूट करके मारा जाए, ताकि वो सम्मान की मौत मरे, लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं की गई। सद्दाम की फांसी के बाद उसको पैतृक गांव में दफन कर दिया गया।

सद्दाम हुसैन को लेकर क्या सोचते हैं इराक के लोग

एक अंगेजी चैनल ने लोगों से सद्दाम हुसैन को लेकर बात की, तो लोगों ने उनके बारे में अलग-अलग प्रतिक्रिया दी।


अमीना अहमद ने कहा कि सद्दाम हुसैन तानाशाह जरूर था, लेकिन उसे फांसी देना पूरे इराक के लोगों को फांसी देने जैसा है। अमीना का कहना है सद्दाम हुसैन इराक का राष्ट्रपति था। दूसरे देश से आकर एक राष्ट्रपति को इस तरह फांसी देना ठीक नहीं था।

23 वर्षीय ज़ैद रिदा का कहना है कि जिस दिन हुसैन को फांसी हुई थी, वह उनके परिवार के लिए खुशी का दिन था। सद्दाम हुसैन के शासन काल में रिदा के परिवार को काफी नुकसान हुआ था।

निवेने ने से बात करते कहा जब सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई, तब वह 18 साल की थी और टीवी में सद्दाम हुसैन की फांसी का प्रसारण देखा। निवेने का कहना है सद्दाम हुसैन को फांसी से वह खुश नहीं थी। फांसी के दौरान उसके परिवार के कई लोग रोने लगे थे। निवेने का कहना है सद्दाम हुसैन ने उसके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था।