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Odisha Cancer Cases : ओडिशा में हर साल बाल कैंसर के मिल रहे इतने नए केस, रिपोर्ट कर देगी हैरान

Odisha Cancer Cases ओडिशा में बाल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में ऑन्कोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट ने बीमारी से सुरक्षित करने को लेकर अध्ययन और नीति की मांग की है। बताया जा रहा है कि पिछले पांच सालों में बाल कैंसर के 1100 मरीजों का इलाज किया गया है जिसमें 800 का इलाज मेडिकल की टीम ने की है।

By Rajesh SahuEdited By: Shashank ShekharUpdated: Mon, 16 Oct 2023 03:35 PM (IST)
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ओडिशा में हर साल बाल कैंसर के मिल रहे इतने नए केस, रिपोर्ट कर देगी हैरान
संवाद सहयोगी, अनुगुल/भुवनेश्वर। ओडिशा में कैंसर के नए मामलों में से पांच से दस प्रतिशत बाल चिकित्सा घातक होने के कारण है। ऑन्कोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट ने भविष्य की पीढ़ी को बीमारी के चंगुल से सुरक्षित करने के लिए एक व्यापक अध्ययन और निश्चित नीति की मांग की है।

डॉक्टरों का कहना है कि पड़ोसी राज्यों की तुलना में ओडिशा में बाल कैंसर का प्रसार ज्यादा है। हालांकि, राज्य-व्यापी जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्री की अनुपस्थिति के कारण बचपन के कैंसर के सटीक बोझ के बारे में कोई विशिष्ट आंकड़े नहीं हैं।

कुछ प्रमुख उपचार अस्पतालों से इकट्ठा किए गए आंकड़ों से पता चला है कि बाल चिकित्सा घातकता की व्यापकता राष्ट्रीय औसत पांच प्रतिशत ऊपर हो सकती है।

'150 से 200 बच्चों में कैंसर का पता चला'

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और सम अस्पताल में बाल चिकित्सा हेमेटोलॉजी और ऑन्कोलॉजी इकाई के प्रभारी प्रोफेसर सरोज पंडा ने कहा कि हर साल 150 से 200 बच्चों में कैंसर का पता चलता है और यह आंकड़ा नए कैंसर के मामलों का लगभग सात से दस प्रतिशत है।

उन्होंने कहा कि हमने पिछले पांच वर्षों के दौरान बाल कैंसर के 1,100 से अधिक मामलों का निदान किया, जिनमें से लगभग 800 मामलों का इलाज मेडिकल टीम द्वारा किया गया था। चिंताजनक बात यह है कि मरीजों की संख्या हर साल बढ़ रही है।

'2018 से हर साल 250 से 300 नए बाल कैंसर के मामले दर्ज'

एम्स, भुवनेश्वर ने 2018 से हर साल 250 से 300 नए बाल कैंसर के मामले दर्ज किए हैं। हालांकि, अस्पताल ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और झारखंड के मरीजों को इलाज करता है, लेकिन इलाज करने वाले डॉक्टरों ने कहा कि पड़ोसी राज्यों की तुलना में राज्य में बाल आबादी में कैंसर का प्रसार अधिक है।

एम्स में मेडिकल ऑन्कोलॉजी/हेमेटोलॉजी की अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. सोनाली महापात्रा ने कहा कि बच्चों में कैंसर के मामलों में वृद्धि अब एक बड़ी चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा कि चूंकि अधिकांश बाल कैंसर के मामले इलाज योग्य हैं, इसलिए हमने हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण शुरू करके एम्स में उपचार को मजबूत करने का फैसला लिया है, जिसकी प्रक्रिया जल्द ही शुरू हो जाएगी।

हालांकि, आचार्य हरिहर पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर (एएचपीजीआईसी) द्वारा ओडिशा में बचपन के कैंसर के क्लिनिकोडेमोग्राफिक प्रोफाइल के एक हालिया विश्लेषण में पाया गया कि जनवरी 2013 से दिसंबर 2020 के दौरान रिपोर्ट किए गए सभी कैंसर में बचपन की घातकता 1.6 प्रतिशत से दो प्रतिशत तक थी।

इन जिलों में इतने मरीज मिले

बचपन में कैंसर की सबसे अधिक आवृत्ति मयूरभंज (10.41 प्रतिशत) में थी, इसके बाद गंजाम (7.91 प्रतिशत), कटक (6.59 प्रतिशत), जाजपुर (6.2 प्रतिशत), बालेश्वर(5.27 प्रतिशत), बलांगीर (5.14 प्रतिशत), पुरी (5 प्रतिशत) और खुर्दा (4.87 प्रतिशत)थे।

वहीं, एएचपीजीआईसी में भर्ती कराए गए बचपन की घातक बीमारी के केवल 0.26 प्रतिशत मामले देवगढ़ जिले से थे। विभिन्न कैंसरों में बचपन का ल्यूकेमिया सबसे सामान्य प्रकार का घातक कैंसर था, जो 22.8 प्रतिशत था।

इसके बाद घातक हड्डी के ट्यूमर (18 प्रतिशत) और लिम्फोमा (16.1 प्रतिशत) थे। सबसे कम सामान्य दुर्दमता केवल रेटिनोब्लास्टोमा (1.4 प्रतिशत) थी।

प्रोफेसर पंडा ने कहा कि एएचपीजीआईसी कम मामलों की रिपोर्ट करता है, क्योंकि उसके पास बाल चिकित्सा ऑन्कोलॉजी में कोई विशेषज्ञ नहीं है। अब समय आ गया है कि हमें व्यापक अध्ययन करना चाहिए और उपचार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि इलाज की दर अब 80 प्रतिशत से अधिक है।

चिंता का कारण

ओडिशा में बाल चिकित्सा घातकता की व्यापकता राष्ट्रीय औसत से अधिक हो सकती है। हर साल 150 से 200 बच्चों में कैंसर का पता चलता है। 2018 से हर साल एम्स, भुवनेश्वर में 250 से 300 मामले सामने आते हैं।

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