Move to Jagran APP

Lok Sabha Elections : भाजपा-बीजद का 15 साल पहले क्यों टूटा था गठबंधन, क्या इस लोकसभा चुनाव में फिर आएंगे साथ?

ओडिशा में लोकसभा चुनाव से पहले बीजेडी-बीजेपी के गठबंधन की चर्चाएं जोरों पर हैं। राज्‍य की हाल ही की राजनीतिक गतिविधियों से गठबंधन के स्‍पष्‍ट संकेत मिल रहे हैं। ओडिशा में 1998 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बीजू जनता दल (बीजद) के बीच गठबंधन हुआ और उस अवधि के दौरान दो-दलीय गठबंधन ने तीन संसदीय चुनाव और दो विधानसभा चुनाव लड़े।

By Sheshnath Rai Edited By: Arijita Sen Updated: Thu, 07 Mar 2024 01:28 PM (IST)
Hero Image
पीएम मोदी और नवीन पटनायक की फाइल फोटो।
शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। ओडिशा में 1998 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बीजू जनता दल (बीजद) के बीच गठबंधन हुआ और उस अवधि के दौरान दो-दलीय गठबंधन ने तीन संसदीय चुनाव और दो विधानसभा चुनाव लड़े। दोनों पार्टियों ने 4:3 सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर राज्य में शासन किया। आगामी चुनावों से पहले फिर से संभावित गठबंधन की अटकलों के बीच गठबंधन शासन और उसके बाद हुई कड़वाहट पर एक नजर डालना जरूरी है।

ओडिशा की राजनीति में शून्यता का दौर

1997 में पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक का निधन हो गया, जिससे राज्य की राजनीति में नेतृत्व शून्य पैदा हो गया।बीजू पटनायक समर्थक और कांग्रेस विरोधी खेमे के तत्कालीन दिग्गज नेता नेतृत्व की कमान सौंपने को लेकर दुविधा में थे।

बीजू बाबू के बाद किसे कमान सौंपी जाए, इसका निर्णय नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में वे बीजू पटनायक के परिवार के सदस्यों में से एक को उनकी राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जिस पर ज्यादातर लोग सहमत भी दिखे।

दिलचस्प बात यह थी कि बीजू बाबू के परिवार से किसी भी सदस्य राजनीति ने हाथ नहीं आजमाया था। अंत में बीजू बाबू के सबसे छोटे बेटे नवीन पटनायक को उस समय राजनीति में लाया गया। उस समय भाजपा, कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही थी।

भाजपा के कुछ दिग्गजों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) नामक एक नए क्षेत्रीय राजनीतिक दल के निर्माण के साथ नवीन पटनायक को नेता के रूप में पसंद किया।

1998 में गठबंधन में शामिल हुई बीजेडी

1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनी थी और बीजेडी गठबंधन में शामिल हो गई। उसी साल देश में लोकसभा चुनाव हुए थे। नवीन पटनायक (आसिका से) सहित बीजद से नौ नेता तथा भाजपा से सात नेता लोकसभा के लिए चुने गए थे, लेकिन दुर्भाग्य से वाजपेयी सरकार 1999 में गिर गई और एक साल के भीतर आम चुनाव कराने की जरूरत पड़ी। तब बीजेडी ने 10 लोकसभा सीटें जीती थीं, जबकि 9 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं।

4:3 सीट शेयरिंग फॉर्मूला

2004 के आम चुनावों में, बीजद ने 11 लोकसभा सीटें और भाजपा ने सात सीटें जीतीं। दोनों दलों ने 2004 का विधानसभा चुनाव भी 4:3 के फॉर्मूले पर लड़ा था, जिसमें बीजद ने 84 विधानसभा सीटों पर और भाजपा ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा।बीजद ने 61 और भाजपा ने 32 सीटें जीती। वर्ष 2000 में बीजद ने 68 और भाजपा ने 38 सीटें जीती थीं।

1998 से 2004 के बीच बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक राजग सरकार में दो साल तक इस्पात एवं खनन मंत्री रहे। बीजद के अर्जुन सेठी जल संसाधन मंत्री थे, ब्रज किशोर त्रिपाठी इस्पात मंत्री थे और दिलीप रे इस्पात और कोयला मंत्री थे। भाजपा के देबेंद्र प्रधान भूतल परिवहन मंत्री थे और जुएल ओराम जनजातीय मामलों के मंत्री थे।

तनावपूर्ण संबंध

हालांकि, 2008 में दोनों दलों के बीच संबंध तनावपूर्ण होने लगे, खासकर कंधमाल दंगों के बाद। भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने गठबंधन को बचाने की कोशिश की और नवीन निवास में नवीन पटनायक के साथ कई दौर की बैठकें कीं, लेकिन वे समझौता कराने में विफल रहे। 9 मार्च, 2009 को बीजद ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और गठबंधन टूट गया!

भाजपा के तत्कालीन ओडिशा प्रभारी चंदन मित्रा को नवीन को मनाने में विफल रहने के बाद निराश लौटना पड़ा था। बीजद ने घोषणा की कि उसने खुद को सांप्रदायिक ताकत से दूर कर लिया और 2009, 2014 और 2019 के आम चुनावों में अकेले गई।

पुन: गठबंधन से दोनों पार्टी के नेताओं में नहीं है उत्साह

तब से लेकर अब तक दोनों ही दलों के स्थानीय नेताओं के बीच संबंधों की दूरी काफी आगे बढ़ गई है और ओडिशा का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है। दोनों दलों के नेताओं में फिर से गठबंधन बनाने को लेकर असंतोष है।

दोनों पार्टियां लोगों को कैसे समझाएंगी? बीजद का एक शक्तिशाली समूह गठबंधन नहीं चाहता है।इसी तरह, भाजपा के कई नेता और कैडर गठबंधन के खिलाफ हैं।हालांकि इन सबके बावजूद गठबंधन होना लगभग तय हो गया है, सिर्फ औपचारिक घोषणा बाकी है।

भाजपा के 400 पार के मिशन को मिलेगा बल

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 प्लस लोकसभा सीटें जीतने का नारा दिया है। ऐसे में वे ऐसे राज्यों की ओर देख रहे हैं जहां भाजपा की अच्छी जीत की संभावनाएं हैं। ओडिशा उन राज्यों में से एक है। वहीं अब दोनों दल गठबंधन के खिलाफ नेताओं को समझाने की कवायद कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें: क्‍या ओडिशा में होने जा रहा भाजपा-बीजेडी का गठबंधन? दिल्‍ली से आई नेताओं की बुलाहट, नवीन पटनायक भी करेंगे बैठक

यह भी पढ़ें: PM Modi Odisha Visit: लोकसभा चुनाव से पहले एक्टिव मोड में पीएम मोदी, एक महीने में दूसरी बार करेंगे ओडिशा का दौरा

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।