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ओडिशा में दिव्यांग बना मिसाल, कभी खुद थे लाचार... अब हर दिल के रोगी का करेंगे इलाज

ओडिशा के ढेंकानाल जिले के एक दिव्यांग युवक ने दूसरे व्यक्तियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है जो अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए अपने भाग्य को कोसते रहते हैं। उन्होंने अपनी मेहनत के बदौलत नीट क्रैक किया और एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला लिया है। वह भारत में सर्वश्रेष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञों में से एक बनना चाहता है।

By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Wed, 09 Aug 2023 05:28 PM (IST)
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दिव्यांग युवक ने दूसरे व्यक्तियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया

संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल: ओडिशा के ढेंकानाल जिले के एक दिव्यांग युवक ने दूसरे व्यक्तियों के लिए एक उदाहरण स्थापित किया है, जो अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए अपने भाग्य को कोसते रहते हैं। उन्होंने अपनी मेहनत के बदौलत नीट क्रैक किया और एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला लिया है। वह भारत में सर्वश्रेष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञों में से एक बनना चाहता है।

हर माता-पिता की तरह ढेंकानाल जिले के गोंदिया ब्लॉक अंतर्गत अंबापाड़ा गांव के अश्रुमोचन नायक के माता-पिता भी उस समय बहुत खुश हुए, जब उनके यहां एक बेटे ने जन्म लिया और उन्होंने खुशी जाहिर करते अपने परिजनों में मिठाइयां बांटी।

हालांकि, कुछ दिनों बाद उनकी खुशियों पर दुख के काले बादल छा गए, जब उन्हें पता चला कि उनका बेटा एक दिव्यांग बच्चा है। समय बीतने के साथ अश्रुमोचन के माता-पिता ने सत्य को स्वीकार कर लिया और प्यार से अश्रुमोचन का लालन पालन करते हुए उसके पुकार का नाम 'जग्गा' रख दिया।

कड़ी मेहनत से सफलता मिली

अपने नाम के अर्थ को साकार करते हुए अश्रुमोचन ने समय के साथ लगन और मेहनत से खूब पढ़ाई किया किया। दृढ़ निश्चय के बल पर अश्रुमोचन ने डॉक्टर बनने के लक्ष्य का निर्धारण किया। वहीं, परिवारवालों ने भी उनके लक्ष्य को पूरा करने में जुट गए।

अश्रुमोचन ने अपनी पढ़ाई ऑनलाइन की। दोनों पैरों से लाचार अश्रुमोचन ने 'जब चलना मुश्किल हो तो राहें भी कठिन हो जाती हैं' वाली कहावत को झुठलाते हूए नीट क्रैक किया और एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला लिया है। वह भारत में सर्वश्रेष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञों में से एक बनना चाहता है।

रोजाना 10 से 12 घंटे करता था पढ़ाई

आत्मविश्वास की भावना से भरे अश्रुमोचन ने बताया कि मैं रोजाना 10 से 12 घंटे पढ़ता था, क्योंकि मैं जानता था कि बिना मेहनत के हम सफलता हासिल नहीं कर सकते। बचपन से ही मैंने अपना लक्ष्य डॉक्टर बनने और गरीबों का मुफ्त इलाज करने का रखा था। अब परिवार के लोग अश्रुमोचन पर गर्व महसूस कर रहे हैं।

अश्रुमोचन की मां बिरंजनी नायक ने बताया कि वह बचपन से ही कड़ी मेहनत से पढ़ाई करता है, जब उसने नीट क्रैक किया तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हम सभी खुश हैं कि उसका डॉक्टर बनने का सपना पूरा होने जा रहा है।

मरीजों को मुफ्त इलाज देना सपना 

इसी बात को दोहराते हुए उनकी बहन विष्णुप्रिया नायक ने कहा, "डॉक्टर बनना और मरीजों को मुफ्त इलाज देना उनके बचपन का सपना रहा है।

हम उनकी उपलब्धि से खुश हैं। अपने लक्ष्य को हासिल कर अश्रुमोचन ने साबित कर दिखाया कि जब दिल मे जुनून हो तो कोई भी मंजिल कठिन नही होती।"

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