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Kawach System रहता तो नहीं होता झारखंड रेल हादसा, ओडिशा में भयावह ट्रेन एक्‍सीडेंट के समय भी इसकी चर्चा हुई थी

Railway Kawach System देशभर में बीते कुछ दिनों में कई मालगाड़ि‍यों के बेपटरी होने के मामले सामने आए हैं। वहीं कुछ यात्री ट्रेनों में भी बड़े हादसे होते-होते रह गए लेकिन मंगलवार को झारखंड में हावड़ा मुंबई एक्‍सप्रेस ट्रेन बेपटरी हुई मालगाड़ी से टकराकर दुर्घटनाग्रस्‍त हो गई। यदि रेलवे का कवच सि‍स्‍टम वहां एक्टिव रहता तो यह हादसा नहीं होता और दो लोगोंं की जान नहीं जाती।

By Sheshnath Rai Edited By: Prateek Jain Updated: Wed, 31 Jul 2024 08:29 PM (IST)
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झारखंड रेल हादसे का एरियल व्‍यू। फाेटो- जागरण
शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। भारतीय रेलवे तेजी से अपना दायरा बढ़ा रही है। यह एशिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है, जिसमें रोजाना लाखों यात्री सफर करते हैं।

झारखंड चक्रधरपुर रेल मंडल बड़ाबाम्बो के पास हुए रेल हादसे के बाद रेलवे में सुरक्षा के लिए उपयोग होने वाला कवच सिस्टम फिर चर्चा में है, क्योंकि अगर उक्त रूट पर कवच सिस्टम लगा होता तो शायद इस हादसे को रोका जा सकता था।

रेलवे का यह कवच सिस्टम अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा बनाया गया है। आइए आपको बताते हैं कि क्या है कवच सिस्टम और कैसे ट्रेन हादसों को रोकने में ये हो सकता है मददगार।

क्या होता है कवच सिस्टम

कवच सिस्टम एक स्वेदेशी एंटी प्रोटेक्शन सिस्टम (एपीएस) है।इसे खासतौर पर रेल हादसे रोकने के लिए तैयार किया गया है, जिससे जान-माल का नुकसान न हो सके। कवच प्रणाली आपातकालीन स्थिति में खुद-ब-खुद ट्रेन को रोक सकती है यानी ब्रेक लगा सकती है।

किसी भी कारणवश जब ट्रेन का ड्राइवर समय पर ब्रैक नहीं लगा पाता है, तब ये सिस्टम तुरंत एक्टिव हो जाता है।ऐसे में बड़े रेल हादसे होने से रुक सकते हैं।रेलवे इस सिस्टम को पूरे रेल नेटवर्क में स्थापित करने का प्‍लान बना रही है। हालांकि, अभी तक बेहद कम रूट पर इसे लगाया जा सका है।

अभी कहां-कहा लगा है कवच सिस्टम

रेलवे से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्तमान समय में कवच सिस्टम की कवरेज 1500 किमी. तक सीमित है। इस वर्ष इसे 3000 किमी. तक पहुंचाने का टारगेट रखा गया है।

हालांकि, रेलवे की कुल 68 हजार रेल नेटवर्क में इसे लगाना किसी चुनौती से कम नहीं है। रेलवे बजट में बताया गया है कि अंतरिम बजट 2024-25 में रेलवे में कवच की लगाने के लिए 557 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया गया है।

कवच सिस्टम ऐसे करता है काम

कई बार ड्राइवर की भूलवश या किसी तकनीकी खराबी के कारण कोई ट्रेन रेड सिग्नल क्रास कर जाती है।ऐसी स्थिति को खतरे में सिग्नल पास किया गया (एसपीएडी) माना जाता है। ऐसे में कवच सिस्टम एक्टिव होकर ट्रेन में आटोमेटिकक ब्रेक्स को रिलिज करता है, जिससे ट्रेन की रफ्तार बेहद कम हो जाती है।

इसके बाद कोई बड़ा हादसा होने से टल जाता है। वहीं, अगर कोई ट्रेन तय रफ्तार से तेज चल रही होती है, तब भी यह सिस्टम एक्टिव हो जाती है।मौसम खराब होने की स्थिति में भी यह सिस्टम बेहद मददगार साबित होता है।यह सिग्नल सिस्टम की मदद से लोको-पायलट की ट्रेन को ऑपरेट करने में भी मदद करता है।

गौरतलब है कि मौजूदा सिस्टम को खरीदने और स्थापित करने के बजाय, भारतीय रेलवे द्वारा घरेलू स्तर पर एक उपयुक्त एटीपी सिस्टम विकसित करने की परियोजना को आगे बढ़ाया गया। 2011 के दौरान, कवच बनने वाले प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ ; इस प्रोजेक्ट को मूल रूप से ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम (टीसीएएस) नाम दिया गया था।

प्रारंभिक प्रमाण 2012 में तैयार किया गया था, जबकि सिस्टम के डिजाइन और निर्माण के लिए विकास आदेश 2013 में जारी किया गया था।2014 के दौरान, लाइन के 265 किमी सेक्शन पर प्रारंभिक परीक्षण प्रणाली की तैनाती शुरू हुई, जिसके बाद कवच का पहला वास्तविक मूल्यांकन किया गया।

2014 से अब तक 1500 किमी. रेल लाइन को इस कवच के अंदर शामिल कर लिया गया है।2015 से 2017 के बीच, सिस्टम के फील्ड परीक्षण किए गए। इन परीक्षणों से एकत्र किए गए डेटा और अनुभवों का उपयोग विनिर्देश को परिष्कृत करने के लिए किया गया, जिसे मार्च 2017 में औपचारिक रूप दिया गया।

सिस्टम की अंतिम स्वीकृति 2019 में जारी की गई, जिससे औपचारिक रोलआउट और संचालन शुरू होने से पहले रेलवे कर्मचारियों को कवच पर प्रशिक्षण देने की अनुमति मिल गई।

4 मार्च 2022 को सिकंदराबाद डिवीजन के गुल्लागुडा और चिटगिड्डा रेलवे स्टेशनों के बीच कवच का एक हाई प्रोफाइल लाइव प्रदर्शन किया गया।

भारतीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव एक दिशा में यात्रा कर रहे एक लोकोमोटिव में यात्रा कर रहे थे, जबकि भारतीय रेलवे के अध्यक्ष और सीईओ विनय कुमार त्रिपाठी उसी ट्रैक पर विपरीत दिशा में दूसरे लोकोमोटिव में यात्रा कर रहे थे, जबकि कवच चालू था।

इसने सफलतापूर्वक पता लगाया कि दोनों लोकोमोटिव एक ही ट्रैक पर थे और दोनों ट्रेनों पर स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर प्रतिक्रिया दी, जिससे संभावित टक्कर टल गई।

16 फरवरी 2024 को आगरा डिवीजन में सिस्टम का एक और ट्रायल किया गया था। सुबह 9:30 बजे मथुरा और पलवल के बीच यह ट्रायल शुरू हुआ था। दोपहर 2 बजे तक पूरी प्रक्रिया अप और डाउन दोनों दिशाओं में दोहराई गई थी।

यह ट्रायल आठ कोच वाली वंदे भारत ट्रेन पर किया गया था। ट्रायल के दौरान, वंदे भारत 160 किमी प्रति घंटे की गति से दौड़ रही थी और सिस्टम लोको पायलट द्वारा ब्रेक लगाए बिना लाल सिग्नल से 10 मीटर पहले ट्रेन को रोक दिया।

कवच की तैनाती

कवच को 144 इंजनों, 1,445 किमी मार्ग और दक्षिण मध्य रेलवे क्षेत्र में 134 स्टेशनों पर लागू किया गया है जबकि अप्रैल 2022 से 1200 किमी पर कार्यान्वयन जारी है।

भारतीय रेलवे द्वारा किए जा रहे मिशन रफ़्तार परियोजना के हिस्से के रूप में कवच को अपग्रेड किया जाएगा, ताकि यह 3000 किमी ट्रैक पर लागू होने से पहले 160 किमी प्रति घंटे तक की गति से ट्रेनों को संभाल सके, जिसमें नई दिल्ली-मुम्बई मुख्य लाइन और हावड़ा-दिल्ली मुख्य लाइन का अधिकांश हिस्सा शामिल है।

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के केन्द्रीय बजट में 2000 किलोमीटर ट्रैक पर कवच के तेजी से कार्यान्वयन के लिए धन आवंटित किया गया है, जबकि स्वर्णिम चतुर्भुज रेल मार्ग के 34,000 किलोमीटर ट्रैक पर इसके बाद के कार्यान्वयन को भी मंजूरी दी गई है।

जानकारों का कहना है कि कि अगर कवच को 2023 के ओडिशा ट्रेन टक्कर के स्थल पर तैनात किया गया होता तो यह प्रणाली दुर्घटना को होने से रोक सकती थी।

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