Kawach System रहता तो नहीं होता झारखंड रेल हादसा, ओडिशा में भयावह ट्रेन एक्सीडेंट के समय भी इसकी चर्चा हुई थी
Railway Kawach System देशभर में बीते कुछ दिनों में कई मालगाड़ियों के बेपटरी होने के मामले सामने आए हैं। वहीं कुछ यात्री ट्रेनों में भी बड़े हादसे होते-होते रह गए लेकिन मंगलवार को झारखंड में हावड़ा मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन बेपटरी हुई मालगाड़ी से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यदि रेलवे का कवच सिस्टम वहां एक्टिव रहता तो यह हादसा नहीं होता और दो लोगोंं की जान नहीं जाती।
शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। भारतीय रेलवे तेजी से अपना दायरा बढ़ा रही है। यह एशिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है, जिसमें रोजाना लाखों यात्री सफर करते हैं।
झारखंड चक्रधरपुर रेल मंडल बड़ाबाम्बो के पास हुए रेल हादसे के बाद रेलवे में सुरक्षा के लिए उपयोग होने वाला कवच सिस्टम फिर चर्चा में है, क्योंकि अगर उक्त रूट पर कवच सिस्टम लगा होता तो शायद इस हादसे को रोका जा सकता था।
रेलवे का यह कवच सिस्टम अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन (आरडीएसओ) द्वारा बनाया गया है। आइए आपको बताते हैं कि क्या है कवच सिस्टम और कैसे ट्रेन हादसों को रोकने में ये हो सकता है मददगार।
क्या होता है कवच सिस्टम
कवच सिस्टम एक स्वेदेशी एंटी प्रोटेक्शन सिस्टम (एपीएस) है।इसे खासतौर पर रेल हादसे रोकने के लिए तैयार किया गया है, जिससे जान-माल का नुकसान न हो सके। कवच प्रणाली आपातकालीन स्थिति में खुद-ब-खुद ट्रेन को रोक सकती है यानी ब्रेक लगा सकती है।
किसी भी कारणवश जब ट्रेन का ड्राइवर समय पर ब्रैक नहीं लगा पाता है, तब ये सिस्टम तुरंत एक्टिव हो जाता है।ऐसे में बड़े रेल हादसे होने से रुक सकते हैं।रेलवे इस सिस्टम को पूरे रेल नेटवर्क में स्थापित करने का प्लान बना रही है। हालांकि, अभी तक बेहद कम रूट पर इसे लगाया जा सका है।
अभी कहां-कहा लगा है कवच सिस्टम
रेलवे से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्तमान समय में कवच सिस्टम की कवरेज 1500 किमी. तक सीमित है। इस वर्ष इसे 3000 किमी. तक पहुंचाने का टारगेट रखा गया है।
हालांकि, रेलवे की कुल 68 हजार रेल नेटवर्क में इसे लगाना किसी चुनौती से कम नहीं है। रेलवे बजट में बताया गया है कि अंतरिम बजट 2024-25 में रेलवे में कवच की लगाने के लिए 557 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया गया है।
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इस प्रोजेक्ट को मूल रूप से ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम (टीसीएएस) नाम दिया गया था।
प्रारंभिक प्रमाण 2012 में तैयार किया गया था, जबकि सिस्टम के डिजाइन और निर्माण के लिए विकास आदेश 2013 में जारी किया गया था।2014 के दौरान, लाइन के 265 किमी सेक्शन पर प्रारंभिक परीक्षण प्रणाली की तैनाती शुरू हुई, जिसके बाद कवच का पहला वास्तविक मूल्यांकन किया गया।2014 से अब तक 1500 किमी. रेल लाइन को इस कवच के अंदर शामिल कर लिया गया है।2015 से 2017 के बीच, सिस्टम के फील्ड परीक्षण किए गए। इन परीक्षणों से एकत्र किए गए डेटा और अनुभवों का उपयोग विनिर्देश को परिष्कृत करने के लिए किया गया, जिसे मार्च 2017 में औपचारिक रूप दिया गया।
सिस्टम की अंतिम स्वीकृति 2019 में जारी की गई, जिससे औपचारिक रोलआउट और संचालन शुरू होने से पहले रेलवे कर्मचारियों को कवच पर प्रशिक्षण देने की अनुमति मिल गई।4 मार्च 2022 को सिकंदराबाद डिवीजन के गुल्लागुडा और चिटगिड्डा रेलवे स्टेशनों के बीच कवच का एक हाई प्रोफाइल लाइव प्रदर्शन किया गया।भारतीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव एक दिशा में यात्रा कर रहे एक लोकोमोटिव में यात्रा कर रहे थे, जबकि भारतीय रेलवे के अध्यक्ष और सीईओ विनय कुमार त्रिपाठी उसी ट्रैक पर विपरीत दिशा में दूसरे लोकोमोटिव में यात्रा कर रहे थे, जबकि कवच चालू था।
इसने सफलतापूर्वक पता लगाया कि दोनों लोकोमोटिव एक ही ट्रैक पर थे और दोनों ट्रेनों पर स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर प्रतिक्रिया दी, जिससे संभावित टक्कर टल गई।16 फरवरी 2024 को आगरा डिवीजन में सिस्टम का एक और ट्रायल किया गया था। सुबह 9:30 बजे मथुरा और पलवल के बीच यह ट्रायल शुरू हुआ था। दोपहर 2 बजे तक पूरी प्रक्रिया अप और डाउन दोनों दिशाओं में दोहराई गई थी।यह ट्रायल आठ कोच वाली वंदे भारत ट्रेन पर किया गया था। ट्रायल के दौरान, वंदे भारत 160 किमी प्रति घंटे की गति से दौड़ रही थी और सिस्टम लोको पायलट द्वारा ब्रेक लगाए बिना लाल सिग्नल से 10 मीटर पहले ट्रेन को रोक दिया।
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