Move to Jagran APP

नाराज हैं मां लक्ष्‍मी, तोड़ दी रसोई...जानें क्‍यों हर साल 12 दिनों तक बंद रहता है रोसा घर, दिलचस्‍प है कहानी

पुरी में श्रीमंदिर की महारसोई में बिना किसी पूर्व सूचना के हर रोज लगभग पचास हजार भक्‍तों के लिए महाप्रसाद बनता है। ऐसी मान्यता है कि यह माता महालक्ष्मी की रसोई है और वह खुद इस रसोई में खाना बनाती हैं और वहां सभी उनके नौकर हैं। महाप्रसाद पकाने के लिए ईंधन के रूप में केवल लकड़ी का उपयोग किया जाता है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Thu, 22 Jun 2023 10:38 AM (IST)
Hero Image
भगवान जगन्नाथ की दिव्य रसोई का दिलचस्‍प किस्‍सा।
संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। ओडिशा के जगन्नाथ पूरी में परमब्रह्म भगवान जगन्नाथ की दिव्य रसोई घर दुनिया की सबसे बड़ी रसोई घर है, जो जगन्नाथ मंदिर के परिसर के भीतर स्थित है। यह प्रतिदिन लगभग पचास हजार भक्तों को बिना किसी पूर्व सूचना के महाप्रसाद प्रदान करता है।

माता महालक्ष्मी खुद इस रसोई में पकाती हैं खाना

12वीं शताब्दी का यह मंदिर महाप्रसाद पकाने के एक बहुत ही अनोखे और पारंपरिक तरीके का पालन करता है! ऐसी मान्यता है कि यह माता महालक्ष्मी की रसोई है और वह खुद इस रसोई में खाना बनाती हैं और वहां सभी उनके नौकर हैं।

इस रसोई के 32 कमरों में 250 मिट्टी के चूल्हे हैं और यह 100 फीट चौड़ाई और 20 फीट ऊंचाई के साथ 150 फीट की लंबाई में फैला हुआ है। भोग तैयार करने के लिए लगभग 600 सूरा (रसोइया) और 400 सहायक प्रतिदिन यहां सेवा करते हैं।

इस रसोई की अग्नि को वैष्णव अग्नि के रूप में जाना जाता है और माना जाता है कि इसका उपयोग स्वयं भगवान विष्णु की सेवा के लिए किया जाता है। वैष्णव अग्नि की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यह कभी बुझती नहीं है।

मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है महाप्रसाद

महाप्रसाद केवल मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है, जो पुरी के कुम्‍हारपाड़ा और आसपास के क्षेत्रों के कुम्हारों द्वारा प्रदान किया जाता है। महाप्रसाद पकाने के लिए ईंधन के रूप में केवल लकड़ी का उपयोग किया जाता है।

पहले राज्य के विभिन्न वनों से आवश्यक लकड़ी की आपूर्ति की जाती थी, लेकिन वनों के राष्ट्रीयकरण के बाद राज्य वन निगम ईंधन के लिए इमारती लकड़ी उपलब्ध करा रहा है। महाप्रसाद पकाने के लिए पानी का इस्तेमाल मंदिर परिसर के रसोई के पास स्थित गंगा और जमुना नामक दो कुओं से लाया जाता है।

महारसोई में हर कोई नहीं कर सकता प्रवेश

यहां महाप्रसाद पकाने की प्रक्रिया बहुत ही अनूठी है। इस प्रक्रिया में चूल्हे पर एक के ऊपर एक मिट्टी के पांच बर्तन रखे जाते हैं, जिसमे सबसे निचले बर्तन पर चूल्हे की आंच लगती है, जबकि अन्य बर्तन सबसे निचले बर्तन से उत्पन्न भाप से गर्म होते हैं।

हैरान करने वाली बात है कि सबसे ऊपर वाले मिट्टी के बर्तन का महाप्रसाद सबसे पहले पक जाता है। केवल 600 रसोइयों (सुराओं) को ही इस महारसोई के अंदर जाने की अनुमति होती है, जो सीधे महाप्रसाद पकाने में लगे हुए होते हैं। सहायक जो पानी लाते हैं, चावल धोते हैं और सब्जी काटते हैं, वे बाहर रहते हैं और उनके महारसोई में प्रवेश करने पर रोक है।

हर रोज तैयार किए जाते हैं 110 तरह के पकवान

इसके अलावा देवताओं को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद में छप्पन भोग भी होता है, लेकिन वास्तव में रसोई घर में घी चावल, जीरा चावल, मीठे चावल और विभिन्न प्रकार की दाल और पीठा चीनी, गुड़, गेहूं का आटा, घी, दूध आदि से बने सूखे मिठाइयों सहित 110 प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं।

त्योहारों के मौके पर श्रद्धालुओं द्वारा महाप्रसाद की मांग बढ़ जाती है। महारसोई में पका हुआ भोजन पहले भाई-बहन समेत भगवान जगन्नाथ को और फिर देवी बिमला को अर्पित किया जाता है, जिसके बाद यह महाप्रसाद बन जाता है और इससे चारों ओर एक दिव्य सुगंध फैल जाती है।

गुस्‍से में आकर माता लक्ष्‍मी ने तोड़ दी पूरी रसोई

इसके बाद महाप्रसाद को श्रीमंदिर प्रांगण में स्थित दुनिया के सबसे बड़े भोजनालय 'आनंद बाजार' में भेज दिया जाता है। यहां भक्त उचित मूल्य पर आनंद के साथ महाप्रसाद का सेवन करने के साथ अपने परिजनों के लिए भी ले सकता है।

श्री गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर जाने वाले रथ यात्रा की अवधि के दौरान हर साल लगभग 12 दिनों के लिए रोशा घर या मंदिर की महारसोई बंद रहती है। ऐसी मान्यता है कि देवी लक्ष्मी गुस्से में रसोई को नष्ट कर देती हैं क्योंकि भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहनों के साथ अपनी मौसी के घर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं।

प्रभु जगन्‍नाथ रसगुल्‍ला खिलाकर मनाएंगे

रोसा घर के मिट्टी के चूल्हे इस दौरान तोड़कर कुछ दिनों के बाद फिर से नए सिरे से बनाए जाते हैं । लोककथाओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश पाने के लिए देवी लक्ष्मी को मनाने या प्रसन्न करने के लिए उन्हें रसगुल्ला खिलाते हैं। इस विशेष अनुष्ठान के बाद भगवान जगन्नाथ के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए जाते हैं और अगले दिन से मंदिर की रसोई फिर से काम पर लग जाती है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।