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ओडिशा में गेमचेंजर हो सकती है 'मोदी गारंटी', बढ़ेगी BJD की मुश्किलें; पार्टी बदल सकती है रणनीति

ओडिशा में विपक्षी दल हमेशा बीजद पर केंद्रीय राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा को बी-टीम बताते आ रहा है। हालांकि बीजद और भाजपा दोनों ने इस तरह के आरोपों से इनकार किया। भाजपा ने सोची-समझी रणनीति और चुनावी वादों को मोदी गारंटी का नाम देकर हिंदी भाषी राज्यों में बड़ी जीत दर्ज की है। वहीं तीन राज्यों में मिली जीत के बाद बीजेडी के नेता तनाव में आ गए हैं।

By Sheshnath RaiEdited By: Shashank ShekharPublished: Tue, 05 Dec 2023 02:01 PM (IST)Updated: Tue, 05 Dec 2023 02:01 PM (IST)
ओडिशा में गेमचेंजर हो सकती है 'मोदी गारंटी', बढ़ेगी BJD की मुश्किलें

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। ओडिशा में विपक्षी दल हमेशा बीजद पर केंद्रीय राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा को बी-टीम बताते आ रहा है। हालांकि, बीजद और राज्य भाजपा नेतृत्व में दोनों ने इस तरह के आरोपों से इनकार किया है।

भाजपा ने सोची-समझी रणनीति और चुनावी वादों को 'मोदी गारंटी' का नाम देकर हिंदी भाषी राज्यों में बड़ी जीत दर्ज की है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और विशेष रूप से पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में सभी को चकमा देकर भाजपा ने अपने सर्वकालिक रिकॉर्ड सीटों पर कब्जा कर लिया है।

वहीं, मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री मोदी को जीत की भले ही बधाई दी है, लेकिन इस जीत के बाद ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजेडी के नेता तनाव में आ गए हैं। पिछले दो दशकों से राज्य में सत्ता में बने रहने के लिए बीजद द्वारा अपनाए गए हथकंडे अब बेअसर होते जा रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक का ये है अनुमान

यदि सब कुछ ठीक रहा और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व बीजद के प्रति अपने ढीले रवैये में बदलाव करता है तो ओडिशा में नवीन का गढ़ ढहने में देर नहीं लगेगी। राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि बीजद को सत्ता से बाहर करने के लिए राज्य में अनुकूल माहौल है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, 2019 के आम चुनाव के बाद से बीजेपी और बीजेडी के शीर्ष नेतृत्व के बीच राजनीतिक संबंधों की परिभाषा बदल गई है। बीजू जनता दल ने केंद्र की भाजपा सरकार को हर तरह का समर्थन कर रही है यहां तक कि राज्यसभा की एक सीट देने से भी पीछे नहीं हटी।

बीजू जनता दल ने पिछले साढ़े चार साल से केंद्रीय बीजेपी नेतृत्व की सामने अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी है। इतना ही नहीं, इस अवधि के दौरान बीजद ने अपने कट्टर क्षेत्रवाद के रुख और केंद्रीय लापरवाही के मुद्दे से भी किनारा कर लिया है।

ओडिशा में भाजपा प्रमुख मुख्य विपक्षी दल

प्रदेश में भाजपा प्रमुख मुख्य विपक्षी दल है। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ बीजद प्रवक्ता हों या विधायक-सांसद, प्रतिकूल टिप्पणी करने से बचते रहे हैं।

हालांकि, राज्य भाजपा नेतृत्व विभिन्न मुद्दों पर सत्तारूढ़ बीजद की आलोचना कर रहा है और हर दिन सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा है। नवीन पटनायक ने रविवार को पीएम मोदी को फोन किया और हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की शानदार जीत पर उन्हें बधाई दी।

राज्य की कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी पार्टियों ने बीजद को भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाते रही हैं। हालांकि, बीजद और राज्य भाजपा नेतृत्व दोनों ने इस तरह के आरोपों से इनकार किया है।

हालांकि, आम चुनाव से ठीक चार महीने पहले चुनावी सेमीफाइनल में बीजेपी की अभूतपूर्व जीत के बाद बीजेडी की टेंशन बढ़ गई है। इसे लेकर बीजेडी पर दबाव बढ़ने की भी आशंका की जा रही है। भाजपा राज्य में दोस्ताना मैच खेलेगी या एकतरफा सत्ता हासिल करने की रणनीति पर काम करेगी, इसे लेकर भी बीजद को दुविधा में डाल दिया है।

चार राज्यों के नतीजों ने बीजेडी को टेंशन में क्यों डाल दिया है?

1. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भाजपा अपने चुनावी वादे 'मोदी गारंटी' के नाम पर जनता के बीच पहुंच बनाने में सफल हुई है। खासकर मातृ वंदन योजना के तहत प्रत्येक महिला को सालाना 12 हजार रुपये देने के लिए भाजपा उम्मीदवारों ने घर-घर घूमकर फार्म भरवाया, जो भाजपा के लिए गेम चेंजर साबित हुआ है।

ओडिशा में इसी तरह की घोषणाओं से 'मोदी गारंटी' की मुहर लगने पर पर नवीन सरकार का बैकफुट पर जा सकती है। क्योंकि ओडिशा सरकार की सबसे बड़ी ताकत मिशन शक्ति महिला स्वयं सहायता समूह है, जिसमें भाजपा सीधे तौर पर सेंध लगा लेगी और महिला मतदाताओं का भाजपा की ओर रुख बढ़ने की संभावना होगी।

2. विभिन्न आरोपों के बावजूद बीजेडी ने अपने दागी विधायकों और मंत्रियों का साथ दिया है। पार्टी अब तक नेताओं के प्रति नाराजगी को नजरअंदाज करती रही है। पार्टी इस बार कम से कम 70 प्रतिशत नेताओं (बेटे या पत्नी के विकल्पों सहित) को फिर से टिकट दे सकती है। इसलिए लोगों का गुस्सा बढ़ेगा, जो पार्टी के लिए उल्टा पड़ सकता है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और तेलंगाना में बीआरएस ने भी इसी तरह की चूक की और अधिकांश विधायकों को फिर से नामित किया।

3. बीजेडी ने राज्य के लोगों का विश्वास जीतने के लिए जितनी भी लुभावनी योजनाएं इस्तेमाल कीं, वे अब लोगों को आकर्षित नहीं कर पा रही हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के पास आगामी चुनावों के लिए ऐसी 'गेमचेंजर' योजना भी नहीं है।

चाहे वह मध्य प्रदेश में 'लाडली बहना' हो या छत्तीसगढ़ में 'मातृ बंदन' योजना। बीजद सरकार राज्य के करीब 60 लाख गरीब परिवारों के बुजुर्गों को मिलने वाले मासिक भत्ते में बढ़ोतरी नहीं कर पाई है। हालांकि, पड़ोसी राज्यों में यह भत्ता 1,000 से 4,000 रुपये तक पहुंच गया है।

4. बीजेडी के भीतर गुटबाजी अभी तक तो खुलकर सामने नहीं आयी है, मगर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि फाइव टी अध्यक्ष वी. के. पांडियन की राजनीति में एंट्री से असंतोष सामने आने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। चुनाव नजदीक आने पर यह असंतोष विस्फोटक मोड़ ले सकता है, जो विपक्षी भाजपा को रास आएगा।

5. बीजेडी यहां उसी तरह से काम कर रही है, जैसे बीआरएस तेलंगाना में लोकप्रिय योजनाओं के साथ सरकारी मशीनरी को अपने एजेंट के रूप में इस्तेमाल करता था। बीआरएस शासन के तहत तेलंगाना की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे अधिक है। अधिकतम रोजगार, आईटी क्षेत्र में अपार संभावनाएं, बिजली आपूर्ति में प्रगति सहित कई जनोन्मुखी योजनाएं थीं।

उसके बावजूद तेलंगाना की जनता ने इस बार कांग्रेस को मौका दिया। तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के बाद बीजेडी चिंतित है। पार्टी को यह एहसास करने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि केवल पुरानी योजनाओं, नवीन की छवि और सरकारी मशीनरी के दम पर चुनाव जीतना संभव नहीं होगा।

6. वहीं, आगामी आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी से ओडिशा में 'मोदी गारंटी' को लेकर चुनावी वादों के साथ काम करता है तो अगले 3-4 महीने बाद होने वाले चुनाव में भाजपा को बड़ा लाभ मिल सकता है।

7. हालांकि, तीन राज्यों के चुनाव नतीजे को देखने के बाद बीजद भी अपने चुनावी रणनीति में बदलाव करे, इसकी प्रबल सम्भावना है। यदि भाजपा अपना रुख बदलती है तो बीजेडी भी इसी तरह 'प्लान-बी' पर आगे बढ़ेगी।

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