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जीना इसी का नाम है: दो पैर गंवा कर भी अपने बलबूते खड़े मोहन बने मिसाल, मेहनत की रोटी कमाकर पूरी कर रहे जिम्‍मेदारी

राउरकेला में गुरुंडिया ब्लाॅक के जर्डा गांव के रहने वाले मोहन नायक के सिर उस समय गाज आ गिरी जब हाई वोल्‍टेज बिजली के तार की चपेट में आकर वह अपने दोनों पैर गंवा बैठे। हालांकि मोहन ने हिम्‍मत नहीं हारी। उन्‍होंने अपना दुकान खोलकर अपने परिवार का भरण पोषण जारी रखा और हर जिम्‍मेदारी बखूबी निभाई। आज लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Wed, 25 Oct 2023 02:56 PM (IST)
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दिव्‍यांग होने के बाद भी मोहन नायक ने नहीं मानी हार।
जागरण संवाददाता, राउरकेला। गुरुंडिया ब्लाॅक के जर्डा गांव निवासी मोहन नायक गरीबी के कारण परिवार का भरण पोषण करने के लिए बस में खलासी का काम कर रहे थे। साल 2006 में जब उनकी उम्र 16 साल थी, तब जर्डा से राउरकेला आ रही बस से साइकिल उतार रहे थे।

इस तरह से मोहन ने गंवाए अपने दोनों पैर

इसी दौरान असावधानीवश 11 किलोवाट बिजली के तार की चपेट में आने पर उनका दायां पैर काटना पड़ा एवं बायां पैर बेकार हो गया।

दो पैर गंवाने के बाद भी माेहन ने हिम्मत नहीं हारी। चाय की दुकान से लेकर अब बड़ा दुकान खोल कर वह परिवार का भरण पोषण करने के लिए सक्षम हैं।

2006 में करंट लगने से मोहन की हालत बिगड़ गई थी। मुश्किल से जान ताे बच गई, पर दोनों पैर खोने पड़े। तब उनके पास कोई उपाय नहीं था। परिवार का भरण पोषण के लिए कमाने वाला भी कोई नहीं था। इसके बाद भी उन्‍होंने हिम्मत नहीं हारी।

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बिना किसी सहारे के हर जिम्‍मेदारी बखूबी निभाई 

साल 2007 में उन्होंने एक पान की दुकान खोली। इसके बाद चाय-नाश्ते की दुकान लगाई। इसी बीच दो बहनों की शादी भी कराई। उन्‍होंने खुद भी शादी की और उनके दो बच्चे भी हैं। अब उनकी दुकान में घरेलू उपयोग के सारे सामान मिलते हैं।

दुकान से हर महीने 10 से 15 हजार रुपये की आय होती है, जिससे परिवार का भरण पोषण ठीक से हो रहा है। पैर गंवाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी एवं दूसरों के सामने कभी हाथ नहीं फैलाया। उसे दिव्यांग भत्ता भी मिलता है।

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मोहन कई लोगों के लिए है मिसाल

मोहन दुकान में आने वाले ग्राहकों के साथ इज्‍जत से पेश आते हैं और उन्‍हें तुरंत सामान दे देते हैं। दिव्यांग होने के बाद भी वह इस तरह से काम करते हैं जैसा करना किसी साधारण इंसान के लिए भी संभव न हो।

लोग मोहन को देखकर प्रेरणा भी लेते हैं कि यदि हिम्मत से काम लें तो दिव्यांग भी सम्मान के साथ जीने के लिए अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।

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