ओडिशा में गैस्ट्रिक कैंसर के तेजी से बढ़ रहे मामले, आसानी से नहीं लग पाता पता, शुरुआती स्टेज में अच्छे से हो जाता इलाज
ओडिशा में गैस्ट्रिक कैंसर का तेजी से प्रसार हो रहा है। इसका पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया गया जिसमें कुल 1033 व्यक्तियों को शामिल किया गया। पता चला कि अगर शुरुआती स्टेज में इसका पता लगा लिया जाए तो निदान संभव है। इसके लिए एंडोस्कोपिक थेरेपी की भी मदद ली जा सकती है। भारत में गैस्ट्रिक कैंसर पांचवां सबसे आम कैंसर है।
संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। भारत में किए गए अपनी तरह के पहले अध्ययन में गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट और हेपेटोलॉजिस्ट के एक समूह ने ओडिशा में प्रारंभिक गैस्ट्रिक कैंसर केतेजी से हो रहे प्रसार का पता लगाया है।दुनिया भर में बढ़ती घटनाओं और मृत्यु दर के साथ गैस्ट्रिक कैंसर एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभर रहा है।
भारत में गैस्ट्रिक कैंसर के कई हैं मामले
भारत में गैस्ट्रिक कैंसर पांचवां सबसे आम कैंसर है, जो पूर्वोत्तर राज्यों में सर्वाधिक घटना वाले सभी मामलों का 7.2 प्रतिशत है, जो विश्व स्तर पर उच्च घटना वाले क्षेत्रों में से एक है।
अमेरिका स्थित मेयो क्लिनिक और जापान के ओसाका इंटरनेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के सहयोग से भुवनेश्वर स्थित साई इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड लिवर साइंसेज (एसआईजीएलएस) द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि राज्य में प्रारंभिक गैस्ट्रिक कैंसर की व्यापकता दर लगभग 0.6 प्रतिशत थी। अब तक गैस्ट्रिक कैंसर देश में एक ऐसी ज्ञात स्वास्थ्य चिंता थी, जिसका शीघ्र पता लगाना दुर्लभ था।
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1,033 व्यक्तियों पर किया गया शोध
एसआईजीएलएस के संस्थापक डॉ. आशुतोष महापात्र ने कहा, हमने पहली बार किए गए अध्ययन के दौरान एंडोस्कोपिक निदान के साथ प्रारंभिक गैस्ट्रिक कैंसर का पता लगाया है। अध्ययन में पेट के लक्षणों वाले कुल 1,033 व्यक्तियों को शामिल किया गया जिन्होंने अस्पताल में रिपोर्ट किया था।
इन रिपोर्ट किये गए लोगों में 65 प्रतिशत पुरुष और 52 वर्ष की औसत आयु के लोग शामिल थे। जबकि 25 (2.4 प्रतिशत) में गैस्ट्रिक कैंसर पाया गया, छह (0.6 प्रतिशत) में शुरुआती गैस्ट्रिक कैंसर पाया गया जिसमे से दो रोगियों को दो या दो से अधिक स्थानों पर कैंसर था। सभी प्रारंभिक गैस्ट्रिक कैंसर रोगी औसतन 66 वर्ष की आयु वाले पुरुष थे।
कई की हुई सफल रिकवरी, एक ने तोड़ा दम
पेट के कैंसर में हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण (एक प्रकार का जीवाणु संक्रमण) और गंभीर एट्रोफिक गैस्ट्रिटिस की उपस्थिति के साथ डिस्टल का पता चला था।
प्रारंभिक गैस्ट्रिक कैंसर वाले छह रोगियों में से पांच को एंडोस्कोपिक सबम्यूकोसल विच्छेदन से गुजरना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप उनकी सफल रिकवरी हुई, जबकि एक रोगी को कुछ अन्य कारणों से कोई इलाज नहीं मिला और उसने दम तोड़ दिया। इसके अलावा, अध्ययन अवधि के दौरान 19 रोगियों (1.8 प्रतिशत) में उन्नत गैस्ट्रिक कैंसर का निदान किया गया।
एंडोस्कोपिक थेरेपी से हो सकता है निदान
डॉ. महापात्र ने कहा कि निष्कर्षों से पता चला है कि भारत में प्रारंभिक गैस्ट्रिक कैंसर का एंडोस्कोपिक से पता लगाना संभव है। उन्होंने कहा कि एंडोस्कोपिक निदान पर इष्टतम प्रशिक्षण से ऐसे घावों का पता लगाने और ठीक होने की दर में सुधार हो सकता है और अगर एंडोस्कोपिस्ट को इसकी विशेषताएं पता हो, तो गैस्ट्रिक कैंसर का शुरुआती निदान मुश्किल नहीं है।
इसे सर्जरी की आवश्यकता के बिना एंडोस्कोपिक थेरेपी से ठीक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि गैस्ट्रिक कैंसर में उपचार से अंग संरक्षण किया जा सकता है बशर्ते इसका शीघ्र पता लगाकर उचित समय पर उपचार होना चाहिए।
अध्ययन में देश में शुरुआती गैस्ट्रिक कैंसर के लिए एंडोस्कोपिक स्क्रीनिंग कार्यक्रम लागू करने का सुझाव दिया गया है। हैदराबाद स्थित एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और कोलकाता स्थित अपोलो ग्लेनेगल्स हॉस्पिटल भी उस अध्ययन में शामिल थे जो हाल ही में पीयर-रिव्यू मेडिकल जर्नल डेन ओपन में प्रकाशित हुआ है।
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