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पैसों की कमी के आगे झुका टैलेंट, बकरी चरा रही है राज्य महिला कबड्डी खिलाड़ी, जैसे-तैसे हो रहा गुजारा

पैसों की कमी के आगे इंसान किस हद तक मजबूर हो जाता है इसका जीता जागता उदाहरण है आदिवासी लड़की नमिता भोई। 23 साल की नमिता कबड्डी में कई दफा जीत हासिल करने के बाद भी आज दूसरों के घरों में काम करने और बकरियां चराने पर मजबूर हैं। साल 2014 में उन्‍होंने ओडिशा अंडर-14 कबड्डी टीम की कप्तानी भी की थी।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Fri, 27 Oct 2023 03:26 PM (IST)
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खेल में जीतने केबाद मिले प्रमाणपत्र को दिखाती नमिता भोई।
जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा महिला कबड्डी टीम का प्रतिनिधित्व करने वाली एक खिलाड़ी आज खेतों में काम करने के साथ बकरी चराने को मजबूर है। बलांगीर जिले के गुडभेला ब्लॉक के गंभारीगुडा गांव की 23 वर्षीय आदिवासी लड़की नमिता भोई अपार क्षमता होने के बावजूद वित्त और परिस्थितियों के दबाव से पीछे छूट गई हैं।

ओडिशा अंडर-14 कबड्डी टीम की थी कप्‍तान

इतना ही नहीं, किस्मत ने नमिता को खेत में काम करने, बकरियां चराने और आसपास के घरों में काम करने को मजबूर कर दिया है। गंभारीगुड़ा गांव के चतुर्भुज भोई और वैदेही भोई की बेटी नमिता संइतला हाई स्कूल में पढ़ती थीं।

उस समय वह खेल में रुचि के कारण कबड्डी खेलने लगी। 2014 में उन्होंने ओडिशा अंडर-14 कबड्डी टीम की कप्तानी की और छत्तीसगढ़ में खेली गई प्रतियोगिता में अपने प्रतिभा के बल पर सबका ध्यान आकर्षित किया।

आर्थिक तंगी से बीच में छोड़नी पड़ी पढ़ाई

बलांगीर जिले में विभिन्न स्थानों पर आयोजित प्रतियोगिता के अलावा उन्होंने झारसुगुडा, सुंदरगढ़, अनुगुल, तालचेर, भुवनेश्वर और संबलपुर में भी कबड्डी में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। खेल के साथ अध्ययन चल रहा था, लेकिन पैसे की कमी ने उन्हें पढ़ाई करने से रोक दिया।

तरवा के पास चारभटा कॉलेज में पढ़ाई करते समय प्लस दो से पढ़ाई बंद हो गई। उनके परिवार में उनके सहित पांच भाई-बहन हैं। माता-पिता बुजुर्ग हैं और काम करने में असमर्थ हैं। उनके पास कुछ जमीन है, जिसमें काम करके वह अपना और अपने परिवार का गुजारा कर रही हैं। 

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गरीबी ने छीन ली कला

गरीबी ने उनसे खेल जैसी कला छीन ली है। हालांकि, नमिता अलग-अलग जगहों पर कबड्डी खेलने की यादों को भूली नहीं हैं।

पुरस्कार और प्रमाण पत्र उन्होंने एक गंदे फटे बैग में पैक किए हैं और इसे मिट्टी की दीवार पर लटका दिया है। नमिता के खेल कौशल को देखने के बाद शतमुख विद्यालय के छात्र-छात्राएं, शिक्षक एवं ग्रामवासी उत्साहित थे।

पेट भरने के लिए खेत में करती काम

नमिता को लेकर कई सपने देखने वाले उसके माता-पिता ने सोचा था कि उनकी बेटी देश में कबड्डी के खेल में नाम कमाएगी, लेकिन अभाव के आगे ये सपने अधूरे रह गए।

नमिता समझती है कि उसे कबड्डी के कभी न भूलने वाले स्वर को भूलाकर अपना पेट भरने के लिए खेत में काम करना होगा, लेकिन खेल के बारे में कुछ करने की उम्मीद अभी भी खत्म नहीं हुई है।

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