Jagannath Rath Yatra इस वर्ष तीनों रथों को 8 जुलाई को खींचकर श्रीगुडिचा मंदिर तक लाया जाएगा। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आमतौर पर स्नान पूर्णिमा के दिन 108 घड़ा सुगंधित जल से स्नान करने के बाद प्रभु 14 दिन के लिए बीमार हो जाते हैं। हालांकि इस बार पुरी जगन्नाथ मंदिर पांचांग के अनुसार महाप्रभु की अणवसर अवधि एक दिन कम यानी 13 दिनों की हुई है।
शेषनाथ राय, भुवनेश्वर।
पुरी जगन्नाथ धाम में इस वर्ष एक दिन नहीं बल्कि दो दिन तक महाप्रभु के रथ खींचने का अवसर मिलेगा। 53 वर्षों के अंतराल के बाद ऐसा हो रहा है। पिछली बार 1971 में ऐसा किया गया था और भक्त तब महाप्रभु के नवयौवन वेश का दर्शन नहीं कर पाए थे।
मंदिर पंजिका के अनुसार रथ पर आज्ञा माला बिजे 6 जुलाई को ही किया जाएगा। नव यौवन वेश, नेत्रोत्सव और रथयात्रा तीनों एक ही दिन 7 जुलाई को पड़ रही है, ऐसे में अनुष्ठान के लिए 7 जुलाई को रथों को थोड़ी दूर तक खींचा जाएगा।
14 दिन के लिए बीमार हो जाते हैं प्रभु
तीनों रथों को 8 जुलाई को खींचकर श्रीगुडिचा मंदिर तक लाया जाएगा। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आमतौर पर स्नान पूर्णिमा के दिन 108 घड़ा सुगंधित जल से स्नान करने के बाद प्रभु 14 दिन के लिए बीमार हो जाते हैं। हालांकि इस बार पुरी जगन्नाथ मंदिर पांचांग के अनुसार महाप्रभु की अणवसर अवधि एक दिन कम यानी 13 दिनों की हुई है।
इस वजह से नेत्रोत्सव, नवयौवन वेश और रथ यात्रा एक ही दिन होंगे।
मंदिर के विद्वानों की सर्वोच्च पीठ मुक्ति मंडप के एक सदस्य ने बताया कि इस अणवसर का समय 13 दिन का होने के बावजूद, बामदेव संहिता और नीलाद्री महोदया अभिलेखों के अनुसार इसे 15 दिन का मनाया जाना चाहिए। स्नान पूर्णिमा 22 जून को थी जबकि 15 दिन का अणवसर 6 जुलाई को समाप्त हो जाएगा।
हालांकि जगन्नाथ मंदिर की पंजिका के अनुसार नेत्रोत्सव, नव यौवन दर्शन एवं रथयात्रा एक ही दिन पड़ रहा है, ऐसे में सभी नीतियों को पुनर्निर्धारित किया गया है। दइतापति सेवक विनायक दासमहापात्र ने कहा है कि 53 वर्ष के अंतराल के बाद ऐसा हो रहा है कि नव यौवन दर्शन, नेत्रोत्सव एवं रथयात्रा तीनों एक ही दिन 7 जुलाई को पड़ रही है।
7 जुलाई को रात 2 बजे होगी मंगल आरती
आमतौर पर नवयौवन दर्शन से एक दिन पहले रथों को सिंहद्वार की ओर खींचने के लिए महाप्रभु से आज्ञा माला लायी जाती है। हालांकि इस साल स्थिति अलग है। चूंकि नेत्रोत्सव, नव यौवन दर्शन और रथयात्रा एक ही दिन है इसलिए सेवकों के पास श्रीरंग सेवा करने के लिए बहुत कम समय मिलेगा, जो कि चतुर्धा विग्रहों का गुप्त अनुष्ठान है, नेत्रोत्सव और कई अन्य अनुष्ठान जो रथ यात्रा पर जाने से पहले चतुर्धा विग्रहों के किए जाते हैं।
यही कारण है कि इस बार त्रिदेवों के नव यौवन दर्शन की अनुमति नहीं दी गई है।
1971 में भी ऐसी ही स्थिति बनी थी जब दो दिनों तक रथ खींचने का काम किया गया था। इस रथयात्रा के लिए 1971 की समय-सारिणी का पालन किया जाएगा। 7 जुलाई को रात 2 बजे मंगल आरती होगी।
इसके बाद भोर 4 बजे नेत्रोत्सव वंदना की जाएगी। 7:30 से दोपहर 12 बजे तक देवताओं को पहंडी में लाने की तैयारी की जाएगी। दोपहर 2:30 बजे देवताओं की पहंडी बिजे शुरू होगी। छेरा पहंरा सहित रथ पर होने वाली अन्य नीति सम्पन्न करने में 3 से 4 घंटे लगते हैं।
ऐसे में रथ खींचने की प्रक्रिया शाम 7 से 8 बजे शुरू हो पाएगी। ऐसे में इस दिन रथ को प्रतीकात्मक रूप से केवल थोड़ी दूर तक खींचा जाएगा और फिर अगले दिन 8 जुलाई को रथ खींचकर गुंडिचा मंदिर तक लिया जाएगा। ऐसे में इस बार भक्तों को दो बार रथ खींचने का अवसर मिलेगा।
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