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Puri Jagannath Rath Yatra 2024: लाखों भक्तों संग वापस अपने धाम पहुंचे भगवान जगन्नाथ, मंदिर के सामने लगे तीनों रथ

सोमवार को जगन्नाथ महाप्रभु की वापसी रथयात्रा निकाली गई और इस दौरान महाप्रभु ने भाई-बहन के साथ गुंडिचा मंदिर जन्म बेदी से रत्न बेदी को प्रस्थान किए। इसके बाद से पूरा बड़दांड जन सैलाब में तब्दील हो गया। निर्धारित नीति से 1 घंटे पहले रथ पर विराजमान करने की नीति शुरू हुई और निर्धारित समय से लगभग आधे घंटे पहले रथ खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई।

By Sheshnath Rai Edited By: Shoyeb Ahmed Updated: Mon, 15 Jul 2024 10:30 PM (IST)
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जगन्नाथ मंदिर के सामने पहुंच चुके हैं तीनों रथ

जागरण संवाददाता, पुरी। Puri Jagannath Rath Yatra 2024 जगत नियंता जगन्नाथ महाप्रभु की लीला खेला सोमवार को जन्म बेदी में संपन्न हो गई।महाप्रभु आज भाई-बहन के साथ गुंडिचा मंदिर जन्म बेदी से रत्न बेदी को प्रस्थान किए।पूरा बड़दांड जन सैलाब में तब्दील हो गया था।

भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए जल, थल, नभ हर जगह सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। सीसीटीवी कैमरे से सुरक्षा व्यवस्था पर पैनी नजर रखी जा रही थी। जानकारी के मुताबिक महाप्रभु की वापसी यात्रा को शांतिपूर्ण एवं व्यवस्थित ढंग से संपन्न करने के लिए रीति-नीति पहले से ही निर्धारित की गई थी।

इतने बजे शुरू हुई रथयात्रा

हालांकि पहले से निर्धारित रीति नीति से 1 घंटे पहले चतुर्धा विग्रहों की पहंडी बिजे अर्थात गुंडिचा मंदिर से रथ पर विराजमान करने की नीति शुरू हुई। पहंडी बिजे एवं रथ के ऊपर गजपति महाराज के छेरा पहंरा आदि नीति सम्पन्न होने के बाद निर्धारित समय से लगभग आधे घंटे पहले 3:30 बजे रथ खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई।

सबसे पहले प्रभु बलभद्र जी के तालध्वज रथ एवं इसके पीछे देवी सुभद्रा जी के दर्प दलन तथा अंत में जगन्नाथ महाप्रभु के नंदीघोष रथ को खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई। लाखों की संख्या में भक्त जय जगन्नाथ के जयकारे के साथ खींचते हुए पहले बलभद्र जी के तालध्वज एवं फिर देवी सुभद्रा जी के दर्प दलन रथ को जगन्नाथ मंदिर के पास पहुंचा दिया।

वहीं जगन्नाथ महाप्रभु का रथ जैसे ही राजनअर के पास पहुंचा और रुक गय। इसके बाद श्रीमंदिर से माता लक्ष्मी जी को पालकी में लाया गया और गजपति महाराज दिव्य सिंहदेव ने माता लक्ष्मी एवं जगन्नाथ महाप्रभु की मुलाकात करवाई।

पुन: रथ को खींचकर मंदिर के सामने लाया गया

महाप्रभु एवं माता लक्ष्मी के बीच रहने वाले असंतोष को गजपति महाराज ने कम करवाने का प्रयास किया। इस मुलाकात को मां लक्ष्मी एव नारायण भेंटघाट कहते हैं। इसके बाद पुन:जगन्नाथ जी के रथ को भी खींचकर श्रीमंदिर के सामने ला दिया गया है। जानकारी के मुताबिक आज रात में चतुर्धा विग्रह रथ पर विराजमान रहेंगे।

मंगलवार को भी चतुर्धा विग्रह रथ पर ही विराजमान रहेंगे और रथ के ऊपर ही प्रभु की तमाम रीति नीति सम्पन्न की जाएगी।बुधवार शाम को महाप्रभु का रथ के ऊपर सोना वेश होगा। चतुर्धा विग्रहों को सोने के वेश में सजाया जाएगा। महाप्रभु के इस अनुपम सोना वेश को देखने के लिए प्रदेश ही नही बल्कि देश भर से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं।

33 करोड़ देवी देवता करेंगे प्रसाद के सेवन

गुरुवार शाम को रथ के ऊपर ही महाप्रभु की अधरपणा नीति संपन्न की जाएगी। यह नीति 33 करोड़ देवी देवताओं के लिए की जाती है। महाप्रभु को पणा भोग लगाने के बाद मटके को तोड़ दिया जाता है, जिससे मान्यता है कि रथ पर विराजमा 33 करोड़ देवी देवता इसे प्रसाद के रूप में सेवन करते है।

शुक्रवार को नीलाद्री बिजे करेंगे महाबाहु। महाप्रभु शुक्रवार के दिन जगन्नाथ मंदिर के गर्भ गृह रत्न सिंहासन पर विराजमान करेंगे। हालांकि महाप्रभु रत्न सिंहासन पर बिजे करने से पहले ही मंदिर के अंदर मुख्य द्वार माता लक्ष्मी एवं महाप्रभु के संवाद होता है।

माता हो जाती हैं प्रसन्न

क्योंकि भगवान मौसी के घर बिना बताए ही चले गए थे, जिससे माता लक्ष्मी नाराज थी। संवाद के दौरान प्रभु माता लक्ष्मी को मनाते है और रसगुल्ला खिलाने के साथ एक साड़ी उपहार के रूप में देते हैं। इसके बाद माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं और प्रभु को रत्न सिंहासन पर जाने के लिए अनुमति देती हैं।

गौरतलब है कि महाप्रभु की इस वापसी यात्रा को देखने के लिए पुरी जगन्नाथ धाम में आज सुबह से ही लाखों भक्तों का समागम होना शुरू हो गया था। दोपहर होते होते पूरा बड़दांड जनसमुंद में तब्दील हो गया है। हरि बोल, जय जगन्नाथ की ध्वनि से पूरा जगन्नाथ धाम प्रकंपित हो रहा था।

चतुरर्धा विग्रहों को किया रथ पर विराजमान

विभिन्न वेश भूषा में सज धजकर श्रद्धालु नृत्य गीत करते नजर आ रहे है। घंट-घंटा की ध्वनि से पूरा श्रीक्षेत्र धाम प्रकंपित हो रहा था। एक-एक कर चतुरर्धा विग्रहों पर रथ पर विराजमान किया गया है। सबसे पहले महाप्रभु चक्रराज सुदर्शन जी को पहंडी बिजे में लाकर देवि सुभद्रा जी के दर्प दलन रथ पर विराजमान किया गया है।

इसके बाद प्रभु बलराम जी को पहंडी में लाकर तालध्वज रथ पर विराजमान किया गया है। सबसे अंत में जगत नियंता जगन्नाथ महाप्रभु को पहंडी में लाया गया और प्रभु जगन्नाथ जी को नंदीघोष रथ पर विराजमान कि गया है।

रथ पर तमाम रीति नीति आगे बढ़ने के साथ ही गजपति महाराज रथ पर पहुंचे और सोने के झाडू से झाड़ू लगाए अर्थात छेरा पहंरा किए। तीनों रथों में तमाम रीति नीति सम्पन्न होने के बाद सबसे पहले प्रभु बलभद्र जी के रथ को खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई।

लाखों भक्तों का हुआ समागम

लाखों लाख भक्तों के समागम एवं हरिबोल की ध्वनि के बीच भक्तों ने बलभद्र जी के तालध्वज रथ को खींचना शुरू किया। इसके बाद देवी सुभद्रा जी के दर्प दलन एवं फिर महाप्रभु जगन्नाथ जी के रथ को खींचने की प्रक्रिया शुरू की गई।सुबह से ही बड़दांड में जगन्नाथ प्रेमी भक्त भक्ति में शराबोर होकर नृत्य गीत कर रहे हैं। हर तरफ जगन्नाथ जी के जय घोष से बड़दांड गूंजायमान रहा।

महाप्रभु की रथ यात्रा को सफल बनाने के लिए जगन्नाथ धाम में जमीन से लेकर आसमान तक सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। रथ यात्रा के दौरान हुए अघटन को ध्यान में रखते हुए मंदिर प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद रही।रथ से लेकर पथ एवं नभ तक हर जगह सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे।इतना ही नहीं सरकार के दो-दो मंत्री पुरी में रहकर तमाम व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे थे।

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