Puri Jagannath Temple: श्रीमंदिर में महाप्रसाद का अस्थायी रेट चार्ट तैयार, जानें अब चुकानी होगी कितनी कीमत
Odisha News महासुआर निजोग ने पुरी श्रीमंदिर के महाप्रसाद के लिए एक अस्थायी दर चार्ट तैयार किया है ताकि 12वीं सदी के इस मंदिर के आनंद बाजार में भक्तों को महाप्रसाद की सुचारू बिक्री सुनिश्चित हो सके। हालांकि अस्थायी चार्ट पर अभी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। इसे लेकर अभी विचार-विमर्श किया जाएगा। मंदिर प्रशासन को अभी तक यह चार्ट नहीं मिला है।
By Jagran NewsEdited By: Arijita SenUpdated: Thu, 17 Aug 2023 10:46 AM (IST)
जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। Odisha News: महासुआर निजोग ने पुरी श्रीमंदिर के महाप्रसाद के लिए एक अस्थायी दर चार्ट तैयार किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, 12वीं सदी के मंदिर के आनंद बाजार में भक्तों को महाप्रसाद की सुचारू बिक्री सुनिश्चित करने के लिए रेट चार्ट तैयार किया गया है।
महाप्रसाद के लिए भक्तों को चुकानी होगी इतनी कीमत
श्रद्धालुओं के लिए अभड़ा (चावल), डाली (दाल), बेसर (सब्जी) आदि वाली थाली की कीमत 120 रुपये होगी। इसी तरह अन्य सभी वस्तुओं के साथ साग (पत्तेदार सब्जियां) वाली एक और प्लेट की कीमत 150 रुपये तय की गई है। महाप्रसाद की 11 वस्तुओं वाली थाली की कीमत 200 रुपये होगी। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) को अभी तक महासुआर निजोग द्वारा तैयार किए गए अस्थायी दर चार्ट प्राप्त नहीं हुए हैं।
महाप्रसाद के रेट पर अंतिम फैसला लेना है बाकी
एक सेवादार ने कहा कि अस्थायी दर चार्ट संतुलित तरीके से तैयार किया गया है। हालांकि, यह अंतिम दर चार्ट नहीं है क्योंकि अंतिम दर चार्ट की औपचारिक घोषणा से पहले अधिक विचार-विमर्श किया जाएगा।पिछले महीने, एसजेटीए ने आनंद बाजार में महाप्रसाद का रेट चार्ट प्रदर्शित करने का फैसला किया। एसजेटीए के मुख्य प्रशासक रंजन कुमार दास की अध्यक्षता में हुई अनुशासन समिति की बैठक में यह फैसला किया गया। बैठक में महासुआर निजोग के प्रतिनिधियों, मंदिर प्रबंध समिति के सदस्यों और जिला पुलिस ने भाग लिया।
क्यों प्रसाद कहलाता है महाप्रसाद
श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है जबकि अन्य तीर्थों के प्रसाद को सामान्यतः प्रसाद ही कहा जाता है। श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के द्वारा मिला। कहते हैं कि महाप्रभु बल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उनके एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुँचने पर मन्दिर में ही किसी ने प्रसाद दे दिया।महाप्रभु ने प्रसाद हाथ में लेकर स्तवन करते हुए दिन के बाद रात्रि भी बिता दी। अगले दिन द्वादशी को स्तवन की समाप्ति पर उस प्रसाद को ग्रहण किया और उस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ। नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद विशेष रूप से इस दिन मिलता है।
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