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Jagannath Puri Rath Yatra 2020: पिछले 452 साल के इतिहास में 32 बार नहीं हुई महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा

Jagannath Puri Rath Yatra 2020 कोरोना संक्रमण के कारण इस बार महाप्रभु की रथ यात्रा पर रोक लग गई है लेकिन इससे पहले भी 452 साल के इतिहास में 32 बार हो चुका है।

By Babita kashyapEdited By: Updated: Thu, 18 Jun 2020 04:11 PM (IST)
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Jagannath Puri Rath Yatra 2020: पिछले 452 साल के इतिहास में 32 बार नहीं हुई महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा
भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। प्रदेश में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के आयोजन पर इस साल सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दीी है। सुप्रीमकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा है कि यदि इस साल रथयात्रा के लिए हम अनुमति देते हैं तो फिर महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी हमें क्षमा नहीं करेंगे। हालांकि महाप्रभु की रथयात्रा के बंद होने की यह पहली घटना नहीं है, इससे पहले अनेकों बार महाप्रभु की रथयात्रा नहीं हो पायी है। मध्ययुग ए​वं मुगल कालीन भारत में रथयात्रा को अनेकों पर बंद करना पड़ा था। 

 अफगान शासक एवं फिर दिल्ली में मुगल शासकों ने कई बार पुरी श्रीजगन्नाथ जी मंदिर को टार्गेट किया था। उन्‍होंने श्रीमंदिर पर हमला करने के साथ लूटपाट की थी। अनेकों बार महाप्रभु को छिपाकर रखा गया था। इसी कारण से अनेकों बार रथयात्रा का आयोजन नहीं हो सका था। जानकर आपको आश्चर्य होगा की करीबन 452 साल के इतिहास में 32 बार महाप्रभु की रथयात्रा नहीं हो पायी थी। एक नजर आज इसी पर डालते हैं कि कब-कब और किसकी वजह से रथयात्रा नहीं पायी थी।

   

कलापहाड़ के लिए 9 वर्ष बंद थी रथयात्रा

 1568 ईस्वी-सन में कलापहाड़ श्रीमंदिर के ऊपर हमला करने से चिलिका के पास मौजूद छपल्ली नामक एक स्थान पर चतुर्धा विग्रह को छिपाकर रखा गया था। किन्तु कलापहाड़ खबर पाकर वहां से श्रीविग्रहों को लाकर उसमें आग लगा दी और गंगा नदी में बहा दिया। इसके बाद एक वैष्णव विशर महांती ने उस अर्धजले कलेवर से ब्रह्म संग्रह कर पूजा अर्चना किए। इस समय सीमा के दौरान 1568 से 1577 ईस्वी-सन तक 9 साल रथयात्रा नहीं हो सकी थी। 

 मिर्जा खुरम के लिए बंद हुई थी रथयात्रा

 1601 ईस्वी-सन में मिर्जा खुरम ने श्रीमंदिर पर हमला किया था। इससे पुरी से 14 किमी. दूर मौजूद कपिलेश्वरपुर शासन गांव के पंचमुखी गोसाली मंदिर में श्री विग्रहों अवस्थापित किया गया। इसके बाद यहां पर दोलयात्रा होने के बाद भार्गवी नदी में श्रीविग्रह चाप के ऊपर 8 महीने तक बिजे किए थे। इससे इस साल रथयात्रा नहीं हो पायी थी। 

  सूबेदार हासिम खां का पुरी पर हमला

 1607  ईस्वी-सन  में सूबेदार हासिम खां ने पुरी श्रीमंदिर के ऊपर हमला किया था जिसके चलते श्रीमंदिर से श्रीविग्रहों को स्थानान्तर कर खुर्दागड़ के गोपालजी मंदिर में अवस्थापित किया गया था। एक साल बाद ठाकुर को 1608  ईस्वी-सन  में श्रीमंदिर को लाया गया और इस साल रथयात्रा नहीं हो पायी।

  हिन्दू बना महाप्रभु का दुश्मन

 1611 ईस्वी-सन में कल्याण मल्ल ने श्रीमंदिर के ऊपर हमला किया और परिणाम स्वरूप श्री विग्रहों को जलमार्ग के जरिए चिलिका चिकोनासी को स्थानान्तरित किया गया। इससे इस साल रथयात्रा नहीं हो पायी। कल्याण मल्ल ने दुबारा हमला किया तो श्री विग्रहों को चिलिका गुरूबाइगड़ को स्थानांतरित किया गया है और उस साल रथयात्रा नहीं हो सकी थी। 

  अंधारीगड़ में छिपाकर रखे गए महाप्रभु

 1621  ईस्वी-सन  में सुबेदार अहमद बेग ने श्रीमंदिर के उपर हमला किया था जिससे श्री विग्रहों को वाणपुर माल क्षेत्र के अंधारीगड़ में स्थानान्तरित कर दिया गया था। वहां पर गोपनीय तरीके से ब्रह्म पदार्थ को लाकर मूर्ति निर्माण एवं ब्रह्म पदार्थ संस्थापन किया गया। इससे दो साल रथयात्रा बंद रही थी। 

 एकराम खां के लिए 13 साल बंद रही थी रथयात्रा

 1692  ईस्वी-सन में सूूबेदार एकराम खां ने श्रीमंदिर के ऊपर हमला किया था। इससे श्री विग्रहों को विमला मंदिर एवं चिलिका स्थित गड़कोकल गांव में कुछ दिन के लिए रखे जाने के बाद वहां से वाणपुर हंतआड़ गांव में रखा गया। इस समय 13 साल तक महाप्रभु की रथयात्रा नहीं निकल पायी थी। 

  मोहम्मद तकी खां के लिए नहीं हो पायी थी रथयात्रा

 1731 एवं 1733  ईस्वी-सन  में मोहम्मद तकी खां श्रीमंदिर के ऊपर आक्रमण किया था। इससे श्रीविग्रहों को छिपा दिया गया और उनकी पूजा अर्चना की गई, मगर रथयात्रा नहीं हो पायी। कहा जाता है कि 1733 से 1735 तीन साल तक रथयात्रा बंद थी। 1737 मई महीने में श्रीमंदिर को ठाकुर को विराजमान किया गया और इस अति आनंद के साथ महाप्रभु की रथयात्रा सम्पन्न की गई। 

 यहां उल्लेखनीय है कि तब किसी अन्य देश के शासकों के आक्रमण के कारण महाप्रभु की रथयात्रा नहीं हो पायी थी, मगर अब कोरोना संक्रमण के कारण महाप्रभु की रथयात्रा को बंद करना पड़ा है।

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