Lok Sabha Elections : भाजपा-बीजद का 15 साल पहले क्यों टूटा था गठबंधन, क्या इस लोकसभा चुनाव में फिर आएंगे साथ?
ओडिशा में लोकसभा चुनाव से पहले बीजेडी-बीजेपी के गठबंधन की चर्चाएं जोरों पर हैं। राज्य की हाल ही की राजनीतिक गतिविधियों से गठबंधन के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। ओडिशा में 1998 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बीजू जनता दल (बीजद) के बीच गठबंधन हुआ और उस अवधि के दौरान दो-दलीय गठबंधन ने तीन संसदीय चुनाव और दो विधानसभा चुनाव लड़े।
शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। ओडिशा में 1998 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बीजू जनता दल (बीजद) के बीच गठबंधन हुआ और उस अवधि के दौरान दो-दलीय गठबंधन ने तीन संसदीय चुनाव और दो विधानसभा चुनाव लड़े। दोनों पार्टियों ने 4:3 सीट बंटवारे के फॉर्मूले पर राज्य में शासन किया। आगामी चुनावों से पहले फिर से संभावित गठबंधन की अटकलों के बीच गठबंधन शासन और उसके बाद हुई कड़वाहट पर एक नजर डालना जरूरी है।
ओडिशा की राजनीति में शून्यता का दौर
1997 में पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक का निधन हो गया, जिससे राज्य की राजनीति में नेतृत्व शून्य पैदा हो गया।बीजू पटनायक समर्थक और कांग्रेस विरोधी खेमे के तत्कालीन दिग्गज नेता नेतृत्व की कमान सौंपने को लेकर दुविधा में थे।बीजू बाबू के बाद किसे कमान सौंपी जाए, इसका निर्णय नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में वे बीजू पटनायक के परिवार के सदस्यों में से एक को उनकी राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जिस पर ज्यादातर लोग सहमत भी दिखे।
दिलचस्प बात यह थी कि बीजू बाबू के परिवार से किसी भी सदस्य राजनीति ने हाथ नहीं आजमाया था। अंत में बीजू बाबू के सबसे छोटे बेटे नवीन पटनायक को उस समय राजनीति में लाया गया। उस समय भाजपा, कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही थी।भाजपा के कुछ दिग्गजों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) नामक एक नए क्षेत्रीय राजनीतिक दल के निर्माण के साथ नवीन पटनायक को नेता के रूप में पसंद किया।
1998 में गठबंधन में शामिल हुई बीजेडी
1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनी थी और बीजेडी गठबंधन में शामिल हो गई। उसी साल देश में लोकसभा चुनाव हुए थे। नवीन पटनायक (आसिका से) सहित बीजद से नौ नेता तथा भाजपा से सात नेता लोकसभा के लिए चुने गए थे, लेकिन दुर्भाग्य से वाजपेयी सरकार 1999 में गिर गई और एक साल के भीतर आम चुनाव कराने की जरूरत पड़ी। तब बीजेडी ने 10 लोकसभा सीटें जीती थीं, जबकि 9 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं।
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